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कृषि शोध-छात्र की प्रधानमंत्री को चिट्ठी

श्रीमान जी, आप जिस जी-जान से देश की प्रगती पर काम कर रहे हैं, मुझे आपको सुझाव देना उचित नहीं लगता- कृप्या इस पत्र को मेरा छोटा योगदान मान स्वीकारें।

90 के दशक में जब मैं स्कूल में पढ़ता था तो अध्यापक जनसंख्या विस्फोट पर प्रस्ताव लिखवाते थे, ज़ाहिर है योजना बनाने वालों के लिए जनसंख्या गहन चिंता का विषय था। समय बदला देश को समझ आया कि जनसंख्या हमारी संपत्ति है बोझ नहीं। पिछले दिनों जब गृहमंत्री जी लोकसभा में किसान आत्महत्या का कारण बता रहे थे, तो उन्होने सबसे पहले कृषि आश्रित जनसंख्या को बोझ बताया। क्या हम फिर से गलती तो नहीं कर रहे? क्या वाकई कृषि सुधार के लिए लोगों को खेती से निकाल कर उद्योग में लगाना समाधान है? क्यों नहीं हम कृषि में काम कर रही इतनी बड़ी पारंगत जनसंख्या को भारत की मज़बूती की तरह देखते जो किसी और देश के पास नहीं है?

आज जब विश्व भर में सरकारें लोगों को कृषि में रुकने के लिए प्रलोभन दे रही हैं और हम उन्हे कृषि से हटाने की बात सोच रहे हैं। ऐसे में क्या हमने हिसाब लगाया है कि किसान को खेती छोड़ने के कितने वर्षों बाद रोज़गार मिल जाएगा। नीति निर्धारण स्तर पर क्या हमने यह हिसाब लगाया है कि भारत का मॅन्यूफैक्चरिंग उद्योग को चीन, जापान, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशो से मुकाबला पर आने में कितना समय लगेगा? मान लो 10-15 वर्ष में हम उनके बराबर की मशीन बनाने भी लग गये तो उन्हे खरीदेगा कौन? ऐसे समय में जब मशीनो का बाज़ार सैचुरेशन पर है, मांग में कोई बढ़ोतरी नहीं दिख रही तो इस “मेक इन इंडिया” के माल का खरीददार कौन होगा?

आप एक महान उद्यमी भाव रखने वाले राज्य गुजरात से आते हैं, धंधा खूब समझते हैं। आने वाले 30 सालों में सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा देने वाला
धंधा होगा “भोजन”। लगातार घटती ज़मीन, पानी, उर्वरा शक्ति और दूसरी ओर बढ़ती जनसंख्या व खाद्य पदार्थो के बढ़ते दाम भोजन को एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में उभारने वाले हैं। हां हमारी कृषि पर जनसंख्या आश्रित है, पर आज तक कृषि ने 60% जनसंख्या को सम्मानजनक व स्वतन्त्र रोज़गार भी दिया है। आज मुश्किल की घड़ी ज़रूर है, लेकिन हमें सरल रास्तों की बजाय दूरदर्शी व सुदृढ़ समाधान खोजना होगा। हमें ग्रामीण क्षेत्र की बुनियाद मज़बूत करनी होगी, कृषि में निवेश को स्थिर लागत (fixed cost) जैसे सिंचाई या मंडी विकास में लगाना अच्छा है, बजाय उसे प्रवर्तनीय लागत (variable cost) जैसे बीज या कीटनाशक आदि पर लगाया जाए। आपकी प्रधानमंत्री सिंचाई योजना उसी ओर सही कदम है।

किसान के सशक्तिकरण में सूचना का बड़ा योगदान है, आज बिग डाटा के दौर में हर सीज़न से पहले क्यों हम CACP (Commission on Agricultural costs & prices) द्वारा आधारित कीमत घोषित करते हैं? क्या हम हर फसल की डिमांड का अनुमान नहीं लगा सकते और उसी आधार पर उत्पादन हो ताकि उचित दाम मिले। देश में गेहूं की क्या खपत होगी, क्या यह अनुमान लगाना ज़्यादा मुश्किल काम है? इससे भरमार और दुर्लभता की स्थिति ख़त्म होगी ओर किसान को उचित मूल्य मिलेगा।

आपने सही कहा समस्या पुरानी है, बहुत समय से किसान का विश्वास चकनाचूर है। प्रधानमंत्री जी, कृषि में ताज़ा निवेश बहुत ज़रूरी है, कुछ विभाग जिन पर ध्यान देने से तुरंत व स्थाई लाभ मिल सकता है जैसे बीज तकनीकी, सूक्षम वित्तीय सहयोग, सिंचाई व मंडी ढांचा, फसल व आय बीमा, मशीनीकरण, भंडारण, मार्केटिंग और सबसे ज़रूरी है विभागीय तालमेल।

प्रधानमंत्री जी मेरा तज़ुर्बा आपके सामने कुछ भी नहीं पर एक बात मैं यकीन क साथ बोल सकता हूं कि, बुनियादी ढांचा देने के बाद ना तो किसान सब्सिडी मांगेगे और ना ही ऋण माफी। न केवल भारत बल्कि विश्व भर में भारत को अन्नदाता रूप में ख्याति दिलवाएंगे। देश के करोड़ो किसानो के श्रम को सही दिशा दीजिए और खेती को एक सम्मानजनक व्यवसाय बनाइए।

धनयवाद,

विकास सिंह

पीएचडी अभ्यर्थी
बेंगलुरु
फोटो आभार: फेसबुक पेज Ram Aadhar Rathore 
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