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“लोगों का पैसा अपने प्रचार पर खर्च कर रही है आम आदमी पार्टी”

कंगाली में आटा गीला होने वाली कहावत तो सुनी होगी आपने? नहीं तो आम आदमी पार्टी की समस्या सुन लीजिए कहावत का अर्थ समझ जाएंगे। आम आदमी पार्टी ने पंजाब इलेक्शन में पैसे पानी की तरह बहाए। विज्ञापनों पर छक कर खर्च किया, नतीजन करोड़ों का बैंक बैलेंस लाखों में सिमट गया। सर मु्ंडाते ही ओले आम आदमी पार्टी के सर मुंडाते ही ओले तब पड़े जब दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने केजरीवाल सरकार से  97 करोड़ रुपये वसूलने का फरमान सुना दिया है।

इसकी वज़ह है अरविंद केजरीवाल के चेहरे वाले विज्ञापन पर होने वाला लाखों का खर्चा। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को विज्ञापन संबंधी एक गाइडलाइन दी है, जिसके उल्लंघन की वज़ह से आम आदमी पार्टी पर बैजल का कोड़ा पड़ा है। एलजी ने मुख्य सचिव को अपने हुक्म पर तामील करने के लिए 30 दिन का समय दिया है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय की जांच के बाद दिया गया यह आदेश आम आदमी पार्टी की मुसीबतें बढ़ाने वाला है।

इससे पहले महालेखा अधिकारी ने भी पिछले साल भी ये बात उठाई थी कि विज्ञापन के लिए 526 करोड़ का सरकारी बजट, सरकार के कामकाज पर कम खर्च होकर पार्टी के विज्ञापनों पर ज़्यादा खर्च हो रहा है। विकास कम करो और चिल्लाओ ज्यादा, लोकतंत्र के लिए यही आपात काल है, यह काम केंद्र सरकार भी करती है और राज्य सरकारें भी।

दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली के मुख्य सचिव से कहा कि, “दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने विज्ञापन में जिस तरह से केजरीवाल को प्रोजेक्ट किया गया, वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है। इसलिए इन विज्ञापनों में जो सरकारी पैसा खर्च हुआ उसकी भरपाई आम आदमी पार्टी से 97 करोड़ रुपये वसूल करके की जाए।” दिल्ली के लिए तो ये फरमान एलजी ने सुना दिया लेकिन क्या कोई केंद्र सरकार को भी ऐसी चपत लगा सकता है? शायद नहीं।

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार का विज्ञापन बजट और विज्ञापन में दिए जा रहे संदेश उत्तर प्रदेश में प्रकाशित होने वाले अखबारों में भी खूब छपे। प्रायोजित पृष्ठों की संख्या एक से दो होने लगी, विज्ञापनों पर होने वाले अंधाधुंध खर्च पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी हस्तक्षेप कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार की बनाई गई तीन सदस्यीय समिति को केजरीवाल सरकार के विज्ञापन संबंधी खर्च पर रिपोर्ट सौंपी गई।

इस समिति के सदस्यों में वरिष्ठ पत्रकार और संपादक रजत शर्मा को भी शामिल किया गया। समिति ने कहा कि, “केजरीवाल सरकार ने जिस तरह के संदेश विज्ञापन में दिए वह सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है इसलिए सरकारी खजाने से खर्च हुए पैसे आम आदमी पार्टी से वसूले जाएं।” मुख्य सचिव ने दिल्ली सरकार के डायरेक्टरेट ऑफ इनफार्मेशन एंड पब्लिसिटी से पूछा कि समिति ने जिस- जिस श्रेणी में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का उल्लंघन पाया है उसमें कितना खर्चा हुआ है? विभाग ने जवाब में 97 करोड़ रुपये की रकम बताई है। इस पर लॉ डिपार्टमेंट ने सिफारिश दी कि यह रकम पार्टी से वसूलने के लिए नोटिस दिया जाए और 30 दिन में रकम वसूली जाए।

दिल्ली में एमसीडी चुनावों का दौर शुरू हो गया है। ऐसे में विपक्ष को केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी पर हमले का बढ़िया मौका मिल गया है। वैसे कानूनी आधार पर देखा जाए तो ये मामला बहुत उलझा हुआ है। सरकार और पार्टी दो अलग-अलग कानूनी संस्थाएं हैं, ऐसे में जब पार्टी को पैसे देने का नोटिस आएगा तो पार्टी कह सकती है कि जब हमने प्रचार के लिए कहा नहीं तो हम पैसा क्यों दें? इस मामले का अदालत में जाना तय है।

ख़ैर, राज्य सरकार मनमानी करे तो उस पर लगाम कसा जा सकता है लेकिन क्या कोई ऐसी संस्था है जो केंद्र सरकार के भी मनमानी पर लगाम लगा सके? अगर आप सोच रहे हैं ‘सुप्रीम कोर्ट’, तो आप बिलकुल गलत हैं। कुछ फैसलों को देखने के बाद तो यही लगता है। देखते हैं पारदर्शिता कब भारतीय लोकतंत्र में पदार्पण करती है, न आने तक हम इंतज़ार तो कर ही सकते हैं।

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