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बुलंद दरवाज़े पर आपको लूटने के लिए बैठा है भ्रष्टाचारियों का पूरा गैंग

झम्मन अपने चार लौंडों के साथ यात्रा पर निकल पड़े। बहुत नाम सुना था, उन्होंने अकबर का और उससे ज़्यादा बार लल्लन भाई से बुलंद दरवाज़े का। लल्लन भाई उन्हें कई बार उकसा चुके थे। जब तक बुलंद दरवाज़ा नहीं देखा तब तक कुछ नहीं देखा। यूं तो कई बार रेल से आते-जाते देख चुके थे, लेकिन आमने-सामने की देख हो तो बात ही अलग है। अपने बुलंद इरादों से अपनी जीप में सवार हो वो निकल पड़े। वैसे उन्होंने बहुत टोल दिया, लेकिन फतेहपुर सीकरी से चार किलोमीटर पहले 65 रुपये का टोल मांगा गया तो इच्छा हुई अपने लौंडों से इन टोलवालों को पिटवा दिया जाए। ये कौन सा टोल है भाई जो चार किलोमीटर पहले लगा दिया? इसके बाद नहीं लगा सकते थे? एक आदमी आगरा से लड़खड़ाती सड़क पर ऊंट की सवारी करते हुए आए और आप उससे 65 रुपये वसूल लें। खैर ड्राइवर लौंडे ने बिना हूल हुज्जत के 100 रुपये का नोट पकड़ा दिया।

अभी तीन-चार किलोमीटर चले ही थे कि कुछ लौंडों का झुण्ड दिखाई दिया। जबरदस्ती गाड़ी रोकने की हिमाकत की। अबकी ड्राइवर लौंडा भड़क गया, उसने गाड़ी नहीं रोकी। खैर बुलंद दरवाज़े के लिए ओर बायीं मुड़े तो दो बाइक वाले लौंडों ने आ घेरा। लेकिन इस बार वे दोनों झम्मन मियां की तरफ आकर खड़े हो गए। झम्मन मियां की आधी दाड़ी और 90 किलो का शरीर देख अदब से सलाम ठोका और फिर बोले-मियां साढ़े चार सौ लगेंगे। पूरा बुलंद दरवाज़ा दिखा देंगे। झम्मन ने थोड़ी पूछताछ की और हामी भर दी। इसमें शामिल था-पार्किंग, जूते के पैसे, पुलिस वाले के और न जाने क्या-क्या। अपने एक लौंडे को गाड़ी में आगे झम्मन ने बिठा लिया। एक लड़का आगे-आगे। झम्मन इत्मीनान से बैठे उसे देख रहे थे, उसकी हरकत देख रहे थे और असली सफर तो अब शुरू हुआ।

पार्किंग वाले ने हाथ दिया। पास वाले लौंडे ने उसे दो उंगली दिखाई और चार-पांच के झुण्ड में खड़े पार्किंग वालों ने ऐसे रास्ता दिया, जैसे सी.एम. की गाड़ी आ रही हो। हद तो तब हो गई जब उसने कहा- आरिफ भाई कल का पैसा नहीं आया है। इसे आप भ्रष्टाचार नहीं कह सकते है, यह तो एक व्यवस्था है। अगर आपको सुविधा पानी है तो उसके लिए मूल्य तो चुकाना होगा। वैसे भी बात सही है, बुलंद दरवाज़े के सामने आपकी गाड़ी पार्क हो उसके लिए नज़राना भी नहीं। बादशाह अकबर ने करोड़ों खर्च कर दिए और आप एक 500 रुपये का नोट नहीं खर्च कर सकते।

आगे बढे़ तो देखा बुलंद दरवाज़े की चढ़ाई पर जाने के पहले एक पुलिस का बैरियर लगा था। तीन स्टार वाले थानेदार साहब को देखकर तो ड्राइवर लौंडे के तोते उड़ गए। उसने कल ही एक को धमकाया था, उसी साले ने रपट लिखा दी और अब थानेदार नहीं छोड़ेगा। लेकिन पास वाले लौंडे को देखकर उसे ऐसा लगा जैसे एस.पी. साहब आ गए हों, बड़ी विनम्रता के भाव से हाथ दिया और गाड़ी साइड में लगाने को कह दिया। फिर पूछ ही लिया- कल वाला पैसा अभी नहीं आया है। उसने बीस-बीस के नोट निकाले और साहब की मुट्ठी में रख दिए। इतने में उनका सिपाही आया, रजिस्टर पर नाम, पता, फोन नम्बर, गाड़ी का नम्बर लिखा और चलते-चलते उस लड़के को तर्जनी और अंगूठे से इशारा करके रुपये का भी ज़िक्र करते चला गया।

बुलंद दरवाज़े के सामने गाड़ी पार्क करने के पहले वहां तीन-चार और लौंडे खड़े थे। गाड़ी से बाहर पड़ते हुए उसने ज़ोर से कहा- अब अपनी बाइक हटा ले या ऊपर चढ़वा दूं। धंधे के टाइम बीच में खड़ा मत हुआ कर। झम्मन को पूरे सम्मान के साथ उतारा गया। बुलंद दरवाज़ा देख कर झम्मन मियां की टोपी गिरते-गिरते बची। वैसे ये लड़के 500 रुपये की टोपी पहना चुके थे।  झम्मन सोच रहे थे, कितना व्यवस्थित नेटवर्क है। सरकार के नुमाइन्दे, समाज के नुमाइन्दे कितने तरीके से और कितनी समझदारी से टूरिस्टों को चूना लगा रहे हैं। अगर आप इस भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने जाएंगे तो किससे? जब तीन स्टार वाला वहां खड़ा है, जो वसूली का मसीहा, उसकी डयूटी क्या ऐसे ही लगी होगी। जहां हज़ारों टूरिस्ट आते हैं और चढ़ावा चढ़ा कर जाते हैं, तो उस चढ़ावे का अंशदान तो सभी को मिलता होगा। भ्रष्टाचार में अकेला व्यक्ति भ्रष्ट नहीं हो सकता। ईमानदार अकेला हो सकता है, लेकिन भ्रष्टाचारी नहीं।

बुलंद दरवाज़े पर हौसले बुलंद कर झम्मन ने एक-एक सीढ़ी को गिना, उसकी मजबूती तो ठोक-बजाकर देखा। दरवाज़े के दायीं तरफ जूते उतरवाए गए। गाईड रूपी लड़के की हिदायत थी पैसे नहीं देने हैं। अंदर का नज़ारा बहुत सुन्दर और श्रद्धा से नतमस्तक होने लायक था। गाइड चारों दरवाज़ों की खासियत बताते-बताते रूक गया क्योंकि एक बच्चा वहां के इतिहास की किताब लिए झम्मन को बेचने के लिए पीछे पड़ा था। गाइड का आदेश था हम बताएंगे वहीं से आप कुछ भी खरीदेंगे। कई प्रकार की दुकानों पर वह लेकर गया, लेकिन झम्मन ने कभी अपने बाप की नहीं सुनी तो वह गाइड कहां लगता। झम्मन ने उसी बच्चे से ही इतिहास खरीदा।

मज़ार सफेद संगमर से बनी थी, पहले यह लाल पत्थर की थी। सफेद पत्थर की मज़ार और काले पत्थर की आस्था परोसते गाइड, कितना टूरिज़्म का भला कर पाएंगे? पर इतना तय है कि सरकारी लापरवाही से भले टूरिस्ट लुट रहा हो, लेकिन स्कूल न जाने वाले बच्चों का तो पेट पल ही रहा है।

तंत्र सो रहा है, उसको जगाने वाले टूरिस्ट को सुलाकर पैसा वसूल रहे हैं। बुलंद दरवाज़े से ज़्यादा मजबूत और टिकाऊ उनका भ्रष्ट तंत्र है। यह तंत्र अम्बुजा सीमेन्ट से बना है जो न तो टूटता है और न खत्म होता है। चीन की दीवार से भी लम्बा है भ्रष्ट तंत्र। बरगद से ज़्यादा गहरी हैं इसकी जड़ें और अजगर से ज़्यादा मजबूत है पकड़। गिद्ध से पैनी दृष्टि है टूरिस्टों पर, बाज़ से ज़्यादा तेज़ी से झपटते हैं टूरिस्टों पर। इस तंत्र को तोड़ने के लिए कोई तांत्रिक तैयार नहीं है, अब तक के सभी तांत्रिक फेल हो चुके हैं। अकबर के गुरू की मज़ार आस्था के बजाए भ्रष्टाचार के लिए निष्ठा बन चुकी है। आस्था और ईमान बेचते गाइड तथा पुलिस दोनों, रिश्तों की जमा पूंजी की तरह फलफूल रहे है। धन्य है पर्यटन और मजबूर है पर्यटक।

फोटो आभार: फेसबुक  

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