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और भी मुद्दे हैं इस देश में देशभक्ति की बहस के सिवा

गुरमेहर कौर ने जो बातें कही वो बहुत ही बुनियादी बात है। हमें इसपर गौर करना चाहिये। युद्ध सत्ता द्वारा थोपा जाता है अपने हित के लिये जिसमें हताहत होती है आम जनता, और निर्दोष सैनिक। हमें इसे पाकिस्तान और हिंदुस्तान के नज़रिये से नहीं देखा जाना चाहिये।

अगर भारतीय सैनिक की सीमा पर मौत होती है तो वह पाकिस्तान के सत्ता द्वारा निर्देशित आदेश के कारण होती है जिसमे पाकिस्तानी सैनिक ,आकाओं के आदेश का पालन कर रहा होता है। ठीक वैसे ही अगर सीमा पर हिंदुस्तान द्वारा हमला होता है तो वो हिंदुस्तानी सत्ता द्वारा निर्देशित होता है। आम जनता कभी नही चाहती है कि युद्ध हो क्योंकि वो अपने पिता, भाई, शौहर को खो रहा होता है इस युद्ध में।

पहले राजा , महाराजा अपने सनक और साम्राज्य विस्तार के लिए युद्ध की घोषणा करते थे, जिसमे हजारों लाशें बिछती थी। युद्ध हमेशा भयावह होता है। गुरमेहर का अपने पिता को खोना भी भयावह है। हम बौद्धिक बहस में कितना भी दिमाग लगा ले लेकिन गुरमेहर अपने पिता को खोने के बाद कैसा महसूस कर रही होगी यह फ़ेसबुक पर बहस कर रहे राईट , लेफ्ट, सेंटर को फर्क नही पड़ता है। सब के सब अपने सिद्धांतों को साबित करने में लगे है।

हर कोई सुविधाजनक तर्क का खेल खेल रहा है। जिसे अपने अनुसार फेर बदल कर अपनी बात को सच साबित करने में लगा है। इससे हम कुछ भी हासिल नही कर रहे है। हमारे इस हिंसक बहस से गुरमेहर के विचार दब जायेंगे, वो चुप रह जाना बेहतर समझेगी। और हर बार ऐसा होता है कि जब भी आप कुछ बुनियादी बात कहते है उसे पक्ष और विपक्ष के झगडे अपने राजनितिक बहस के आड़ में दबा देते है।

इससे इतर कुछ और बाते हैं , जिसे समझने की जरूरत है। हम जाने अनजाने इन बहस में कई गलतियां कर रहे हैं। हमें मुद्दे से भटकाया जा रहा है और हम भटक रहे हैं। हमें बार बार देशभक्ति और देशद्रोही के पचड़े में फसाया जा रहा है, और हम फंस रहे हैं।

एक महत्वपूर्ण मसला गरीबी का है , उस पर बहस न हो सके इसलिये फेसबुकिये बहस में आपको उलझा दिया जाता है। बेरोज़गारी पर आप सवाल नहीं करे इसलिये आपको देशद्रोही बता दिया जाता है और आप खुद को देशभक्त साबित करने में लग जाते है। आप अपनी मूलभूत आवश्यकता की कमी का सवाल ना कर सकें इसलिये आपको अन्य हल्के मसले में बार बार उलझाया जाता है। और आप पूरा दिन ट्रोल को जबाब देने में लगे रहते है। गांव तक बिजली पहुंची या नहीं, सड़क आपके घर तक आया या नहीं, शौचालय क्या वाकई घर घर बना है या पेपर में ही सुशोभित हो रहा। किसान तक कौन सी सुविधा पहुंची है, दलितों और वंचित समाज तक इस बार सरकार के कितने वादे पहुँचे है? सवाल यह है।

देशभक्ति और देशद्रोही के बहस में
कुछ तर्क वो इकठ्ठे कर रहे होते है, कुछ तर्क आप।

इसी उठा पटक में कब वो खिसक लेते हैं, और आप ठगे से महसूस करने लगते हैं, खबर तक नहीं होती। पिछले साल भी मुद्दे की गर्माहट कुछ ऐसी ही थी, जब JNU विवाद को तूल दिया गया, क्या हासिल हुआ ? कन्हैया भी बाहर है, और उमर खालिद भी। और आप पूरे साल साबित करते रहे की हम सही और वो गलत।

हमें गौर करना चाहिए कि हम उनको मौका देते हैं यह सवाल कर के कि “क्या देशभक्ति के ठेकेदार आप ही हो”?  वो कह देते है  हाँ हम है।

हम क्यों पूछते हैं कि वो ठेकेदार हैं या नहीं? या जब वो आरोप लगाते हैं कि हम  देशद्रोही हैं तो हम क्यों अपना समय लगा देते हैं ये साबित करने में कि हम देशभक्त हैं। हम क्यों इतना मूल्य देते हैं उनके आरोप का ?

कुछ महीने में यह मामला फिर शांत होगा, हम अब भी उनके साजिश को नहीं समझ सके तो 2018 के फरवरी महीने का फिर इंतजार कीजिये जिसमे वो कोई वीडियो वायरल करेंगे और आप जबाब देते फिरेंगे।

हमने सुना है
कि जिसको चुना है
कहने लगा है
पूछना मना है।

और मैं कहता हूँ…

हमने सुना है
कि जिसको चुना है
कहने लगा है
सोचना मना है।
हम और आप बुनियादी सवालों से हटकर सोशल मीडिया पर उठे सवालो पर सोच विचार कर अपना वक़्त खराब कर रहे, और वो टीवी चैनलों में मुस्कुरा कर बहस कर रहे, जिनका पैसा भी उनको मिल जाता है। और आप जोड़िये एक एक पैसे का हिसाब महंगाई के दौड़ में। गैस की कीमत फिर बढ़ गयी है, और आप उलझे है देशभक्त और देशद्रोह के मसले में।

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