Site icon Youth Ki Awaaz

किसी अपने को खो देने के बाद पता चला डिप्रेशन एक गंभीर बीमारी है

साल 2016 तक डिप्रेशन शब्द मेरे लिए बिल्कुल नया था ना इसकी समझ थी ना इसकी पूरी वजह पता थी। बस इतना पता था कि ये किसी को भी हो सकता है और किसी भी उम्र में। गत वर्ष बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण के बारे में काफी कुछ पढ़ा और जाना कि वो किस तरह से डिप्रेशन का शिकार हुई और फिर उससे बाहर आयी। तब भी यही लगा कि फिल्म इंडस्ट्री में हमेशा खुद की सफलता के प्रेशर के कारण शायद वो डिप्रेस हो गयी होंगी। इसी दौरान टेलीविजन एक्टर प्रत्युषा बनर्जी की डिप्रेशन और फिर आत्महत्या की न्यूज़ भी आई पर इन दोनों खबरों को और डिप्रेशन की बात को भी एक आम न्यूज़ की तरह ही मैंने पढ़ा। 

पर कहते हैं ना हम तब तक किसी घटना या बीमारी को गंभीरता से नहीं लेते जब तक उसका असर हमारे जीवन पर नहीं पड़ता। मैंने भी डिप्रेशन की समस्या को तभी समझा जब इसकी वजह से मैंने एक बहुत प्यारी, ज़िन्दादिल और आत्मनिर्भर दोस्त को हमेशा के लिए खो दिया। तब से लेकर आज तक डिप्रेशन से जुड़ी हुई हर छोटी बड़ी बात को समझा और जाना है। कहते हैं डिप्रेशन का सबसे बड़ा और कारगर उपचार है बात करना। अगर कोई परेशान है तो उससे बात करनी चाहिए खासकर जब हमें पता हो कि किसी की लाइफ में परेशानी है। अगर हम कुछ ठीक नहीं कर सकते तो कम से कम उनकी परेशानी सुनने को वक्त निकालें और उन्हें भरोसा दिलाएं कि सब ठीक हो जाएगा। क्योंकि गुज़रा हुआ वक्त और इंसान कभी लौट कर नहीं आते।

हममें से कई लोगों को ये लगता है कि एक डिप्रेस इंसान के साथ रहने से हम पर भी गलत असर पड़ेगा और हमें भी डिप्रेशन हो जाएगा। यह एक गलत और बेवकूफी भरी धारणा है। डिप्रेशन कोई छुआछूत का रोग नहीं है जो एक इंसान से दूसरे को हो जाए। माना कि डिप्रेशन से जूझ रहा व्यक्ति काफी हद तक निगेटिव बातें करता है और उसके मन में कई तरह के निगेटिव ख्याल आते हैं और ये बातें हमें परेशान ज़रूर कर सकती हैं। लेकिन हमेशा याद रखें कि डिप्रेशन एक दलदल है जिसमें फंसे इंसान को मदद की ज़रूरत होती है।

डिप्रेशन की कोई मुख्य वजह नहीं होती है। कई अलग-अलग कारणों से एक साधारण और स्वस्थ व्यक्ति कुछ सवालों के जवाब ढूंढते हुए डिप्रेशन के दलदल में पहुंच जाता है। पारिवारिक कलह, आपसी मतभेद, करियर, नौकरी, रिश्तों का टूटना या टूटने के कगार पर पहुंचना, शारीरिक कमज़ोरी, बीमारी, किसी प्रिय इंसान की मृत्यु, बेरोज़गारी, आशा-निराशा, समाज, कुरीति और उम्मीदों के बोझ के कारणों से डिप्रेशन की स्थिति पैदा हो सकती है।

डिप्रेशन के कई छोटे-बड़े लक्षण भी होते हैं। अपनी मनपसंद एक्टिविटी या हाॅबी में रूचि खोना, अचानक से वज़न का बढ़ना या घटना, आम दिनचर्या में परेशानी होना, खुद में व्यस्त रहना, कम बात करना, किसी से भी मिलने या बात करने की इच्छा ना होना, बेवजह की बात पर गुस्सा आना या रोना और अगले ही पल सामान्य हो जाना, किसी से अपनी बात, परेशानी शेयर ना करना, अक्सर सिरदर्द होना, किसी ज़रूरी मुद्दे पर बार बार अपना निर्णय बदलना, अचानक से अपनों को खो देने का डर सताना, सबकी परेशानी की वजह खुद को समझना और खुद को नापसंद करना, जीने की इच्छा ना होना, आत्महत्या की कोशिश करना आदि। 

रिसर्च ये भी बताते हैं कि जो व्यक्ति एक बार डिप्रेशन का शिकार हुआ है, बहुत हद तक यह खतरा होता है कि वो ज़िंदगी में दुबारा भी इस स्थिति का सामना कर सकता है। कई बार डिप्रेशन की समस्या महीनों से सालों तक बनी रह सकती है और कई बार इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति नॉर्मल लाइफ जीते हुए अंदर से घुटता रहता है। इसका एक बड़ा उदाहरण एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण हैं, जो अपनी ज़िंदगी के सबसे सफल वक्त में डिप्रेशन से जूझ रही थीं। ज़्यादातर मामलों में हम खुद में या किसी अपने के व्यवहार में हो रहे छोटे-छोटे बदलावों को नजरअंदाज़ कर देते हैं और फिर यही बदलाव आगे जाकर गंभीर बन जाते हैं। 

अक्सर देखा जाता है कि आमतौर पर डिप्रेशन को पहचान ही नहीं पाते और अगर पहचान हो जाती है तो उसे इग्नोर कर दिया जाता है। डिप्रेशन नजरअंदाज़ करने की चीज़ नहीं है इसका इलाज संभव और ज़रूरी है। यहां ये बात भी हमें समझनी होगी कि डिप्रेशन के मरीजों को सिर्फ डॉक्टर, दवाइयों और काउंसिलिंग की ज़रूरत नहीं होती उन्हें अपनों के साथ की ज़्यादा ज़रूरत होती है।

डिप्रेशन की शायद मुझे आज भी ज्यादा समझ ना हो पर इतना पता है कि कोई इसका झूठा दिखावा नहीं करता। ऐसी सोच रखने वाले लोगों को भी मदद की ज़रूरत होती है। अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो डिप्रेशन में है तो प्लीज उसे झूठा कह कर उसका मज़ाक मत बनाओ। क्या पता आप खुद या आपका कोई अपना कभी डिप्रेशन का शिकार हो जाए। 

डिप्रेशन को पहचानें, समझें, वक्त निकालें और मदद करें।

#LetsTalk

 

 

Exit mobile version