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’’गोवा व्यंग्योत्सव-फूटी आंख में तिल’

’’गोवा व्यंग्योत्सव-फूटी आंख में तिल’’

गोवा की पर्यटन उपजाऊ भूमि पर संविधान की धार 1976 की धारा 3 (3) के अंतर्गत आने वाले भाषाई ’’ख’’ क्षेत्र में मडगांव स्थित पार्वती बाई चैगुले काॅलेज के हाल में वाग्धारा, व्यंग्य यात्रा और विंध्य न्यूज नेटवर्क के सौजन्य से व्यंगोत्सव का आयोजन 17 और 18 मार्च को सम्पन्न हुआ।
इस आयोजन में इन संस्थाओं का योगदान अतुलनीय है, लेकिन डाॅ0 लालित्य ललित को इसका जनक/संगठक और मूल तथा सर्वेसर्वा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। दूसरी ओर डाॅ0 वागीश सारस्वत का संयोजन तथा काॅलेज के प्रिंसीपल डाॅ0 सावंत और हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ0 त्रिपाठी तथा एम0ए0 हिन्दी के विद्यार्थियों के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। इतने सारे व्यंग्यकारों/पत्रकारों/सम्पादकों को संभालने और उनका इंतजाम करने तथा उन्हें ससम्मान संतुष्ट करना डाॅ0 लालित्य ललित के नेतृत्व का ही कमाल था।
हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर आए दिन विचार-विमर्श, विमर्श, गोष्ठियां, आयोजन होते रहते हैं, लेकिन केवल व्यंग्य को लेकर इस तरह का आयोजन अनूठा था। जिसमें इतने सारे व्यंग्यकारों, व्यंग्य पर गहरी पैठ रखने वाले सम्पादकों/पत्रकारों को आमंत्रित किया गया हो। सबसे बड़े हर्ष का विषय तो यह है कि गोवा जैसे अहिन्दी भाषी क्षेत्र में इसका आयोजन होना।
17 मार्च को लोटस इन हाॅटेल से व्यंग्यकारों को एक मिनी बस से काॅलेज पहुंचाया गया। नाश्ते के बाद सभी के सम्मान और फिल्मकार/कलाकार श्री कदम के मुख्य अतिथि के रूप में सानिध्य में कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। तमाम औपचारिकताओं के बाद व्यंग्य पाठ हुआ। सभी व्यंग्यकारों का नामचित वर्णन संभवन नहीं है। व्यंग्य क्या है? यह चर्चा का विषय रहा। हर कोई व्यंग्य की परिधि अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना रूपी सांप की लकीर को पीट-पीट कर अपने आपको धन्य मानता रहा। जो राज्य व्यंग्य का पर्याय बन गया हो, जिसकी चर्चा  देश-विदेश में हो रही हो उसी राज्य में व्यंग्योत्सव मनाया जा रहा हो और उसी राज्य गोवा की विडम्बना और उभरी विसंगति का जिक्र एक भी व्यंग्यकार ने नहीं किया। इसके मूल में मुझे तो यही प्रतीत हुआ कि अपनी एकमात्र चर्चित रचना के आसपास व्यंग्यकार घूमतना नजर आया और नये का जोखिम और राज्य सत्ता के भय से अपनी कुंडली से बाहर नहीं निकल पाया।
यह सत्य है आप पेट पालने के लिए सरकारी सेवक हैं, लेकिन बंधक तो नहीं? आपके पास लेखनी/भाषा/वाक्य विन्यास/और माकूल संख्या में प्रतीक मौजूद हैं तब भी आपकी लेखनी गांधी के चश्मे को परख नहीं पाई, जिसमें स्वच्छ भारत के स्थान पर चुनाव के तत्काल बाद जनादेश और धनादेश विराजमान हो गया। अटल जी के संख्याबल ने धनबल का स्थान लिया। वह समय भी था और यह समय भी है, दोनों में संख्या का गणित राजनीति तय कर गया।
व्यंग्य जितना सामयिक होता है उतना ही प्रासंगिक तथा तात्कालिक भी, लेकिन तालियों के मोहजाल से एक भी व्यंग्यकार उभरते नहीं देखा गया, बल्कि एक व्यंग्यकार तो अपनी चार लाईन तीन सुनाकर धन्य हो गए।
अतिथि के रूप में श्री किशोर कदम पहले सत्र के सार्थक और अमूल्य रत्न साबित हुए। उनका शरद जोशी पर किया गया काम/चिन्तन और मनन के साथ-साथ जोशी जी की रचानाओं का कंठस्थ वाचन/अभिव्यक्ति इतनी दमदार और सशक्त थी कि उपस्थित व्यंग्य समाज किमकर्तव्यविमूढ़ साबित हो गया। स्थिति यहां तक बन गई कि उनके शरद जोशी के व्यंग्य पाठ के बाद न तो संयोजक और न ही व्यंग्यकारों में हौसला रहा कि उनकी उपस्थिति में अपना व्यंग्यपाठ कर सकें/अथवा करवा सकंें। अपनी लाज बचाने और कार्यक्रम की सफलता में किसी भी दाग से बचने के लिए दोबारा श्री किशोर कदम को शरद जोशी का व्यंग्य प्रस्तुत करने का आग्रह करना पड़ा।
व्यंग्यकार उपस्थित होकर भी अपने आपको निर्जीव महसूस कर रहे थे। परसाई/जोशी/रविन्द्र त्यागी/श्रीलाल शुक्ल के अलावा अपनी खुद की विचार धारा उनकी मौन रही।
डाॅ0 सूर्यबाला जी की अध्यक्षता में व्यंग्य पर चर्चा के दौरान पढ़े गए शोध पत्रों पर विद्यार्थियों और प्राध्यापकों ने खूब मेहनत की। व्यंग्य के स्वरूप/विस्तार/आवश्यकता/मूल धारा/पूर्व और वर्तमान व्यंग्यकारों के बारे में विस्तार से निष्पक्ष भाव से अपनी भाषा में प्रस्तुत किया। हिन्दी व्यंग्य पर इतनी खुल कर चर्चा करना वह गोवा जैसे अहिन्दी भाषी प्रदेश में हिन्दी के लिए सम्मान की बात है। यह दीगर बात है कि उच्चारण दोष रहा हो लेकिन रबड़ी में अगर मिठास थोड़ी कम हो तो उसे नमकीन तो नहीं कहा सकता। इस सत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि थी-मराठी भाषा में व्यंग्य और व्यंग्यकार-मेघना कुरुंड वाडकर ने मराठी में व्यंग्य के दो सशक्त व्यंग्यकार पु0ल0 देशपाण्डे और व0 पु0काले के जिक्र के साथ-साथ मराठी साहित्य में व्यंग्य की परम्परा, फार्स के माध्यम से व्यंग्य की प्रस्तुति तथा मराठी नाटकों, कहानियों, उपन्यासों में व्यंग्य की अविरल धारा का प्रवाह तथा व्यंग्य की सबसे सशक्त विधा यानी कथा-कथन का जिक्र किया। हिन्दी में कथा-कथन की परम्परा को मैं शरद जोशी से मानता हूं। इससे पहले इस कथा-कथन शैली में किसी भी व्यंग्यकार को इतने ऊंचे आसन पर विराजमान नहीं पाया। वैसे देखा जाए तो यह एक बहुत ही अदभुत संगम था, कि हिन्दी और मराठी व्यंग्य की चर्चा एक साथ हुई हो, यह दीगर बात है कि दोनों भाषाओं का ज्ञान शायद ही कुछ लोगों को होगा। लेकिन भाषा की सहजता ने व्यंग्य का मर्म समझने में अपनी पूरी भूमिका अदा की।
हिन्दी व्यंग्य की चर्चा के दौरान एक व्यंग्यकार का कथन था, व्यंग्य विधा है सुविधा नहीं। मैं इस कथन से सहमत नहीं हूं। व्यंग्य ही एक ऐसी विधा है, जिसमें आपको पूरी सुविधा है। आप छंद मुक्त है, आप अकविता है, आप अकहानी है, आप स्वंय को अकवि भी कहते हुए व्यंग्य बाण से अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। जिस दिन व्यंग्य विधा में बंध जाएगा, उस दिन व्यंग्य कहानी और उपन्यास की मोथरा और अस्थिर हो जाएगा।
इस सत्र में सर्वसुखद क्षण तो तब आया जब उपस्थित सभी व्यंग्यकारों से अपनी पुस्तकों की दो-दो प्रतियां एक टेबल पर सजाकर रखने और बाद में पार्वती बाई चैगुले पुस्तकालय में जमा करने के उद्देश्य से रखने को कहा गया।
शाम हो चुकी थी। व्यंग्य श्रवणकार थक चुके थे। उनको तरोताजा करने और फिर से उनकी श्रवणक्षमता का परीक्षण के लिए शाम को कोवला बीच ले जाया गया। जहां साहित्यकारों ने समुद्र को भी नहीं छोड़ा। अपनी चप्पलों की गंदगी के साथ समुद्र में प्रवेश कर गए अपनी फूलयुक्त काया को समुद्र पर उतराते हुए छोड़ सागर से प्रश्न कर बैठे-तुझे शरम नहीं आती, इतना खारापन रखता है एक बोतल बिसलेरी नहीं रख सकता। समुद्र भी उधार रखने वालों में से नहीं था। उसने भी लहरों के साथ अटटाहस करते हुए कह दिया-कचरा किनारे पर फेंक देता हूं। ज्यादा अंदर घुसने की कोशिश की तो बिसलेरी बोतल की तरह किनारे पर नज़र आओगे।
सागर किनारे एक होटल के पास कवियों की बैठने और सुनाने की व्यवस्था थी। जो पढ़ चुके थे, थक चुके थे और जिनका नाम नहीं था वे जा चुके थे। रचनाएं अच्छी रहीं होंगी, माइक न होने और आवाज हवाओं में कटने से सुनाई भी कटी-फटी ही सुनाई दे रहीं थीं और पहले जो कविताओं को सुन चुके थे उनकी वाह-वाह के शोर से तो सागर भी आहत हो गया। एक युवा कवयित्री की कविता ने अवश्य प्रभावित किया। अपनी कविता के माध्यम से नारी मर्यादा में पुरूष के महत्व को दर्शा दिया।
व्यंग्योत्सव का दूसरा दिन 18 मार्च को ठीक ग्यारह बजे हाॅल में डाॅ0 प्रेम जनमेजय का बर्थ डे मनाना तय पहले हो चुका था। डाॅ0 ललित ने केक का इंतजाम किया और सभी ने डाॅ0 प्रेम जनमेजय का जन्मोत्सव मनाया। इस दौरान उपस्थित बच्चों ने हैप्पी बर्थ डे टू यू सांग गाया। इस दौरान डाॅ0 जनमेजय जी से दो शब्द कहने का आग्रह भी किया गया। लेकिन विडम्बना तो मुझे तो जब महसूस हुई कि कुछ ही देर बाद महामहीम गोवा की राज्यपाल जी द्वारा उनकी पुस्तक-भ्रष्टाचार के सैनिक का विमोचन होना था, अगर उनसे अनुरोध किया जाता कि अपनी नई पुस्तक का उनकी नजर में सर्वश्रेष्ठ व्यंग्य कौनसा है और उसका पठन स्वयं करें तो निश्चित रूप से उनका जन्मोत्सव मेरी नजर में और भी सार्थक हो जाता, साथ ही सार्थक होता गोवा उत्सव और बन जाता सफल स्मरणीय।
जन्मोत्सव के बाद लगभग 9 व्यंग्यकारों ने रचना पाठ किया। हर कोई ज्यादा देर तक मंच पर टिकने का लोभसंवरण नहीं कर पाया। अंतः हद तो तब हो गई जब एक व्यंग्य पाठ के बीच ही श्रोताओं ने तालियां का नाद कर दिया। इस पूरे व्यंग्यपाठ के दौरान मानवीयता तरसती रही, शायद उसे कोई व्यंग्यकार याद कर लेता, लेकिन सभी मूक प्राणियों पर अपनी भड़ास निकालने में लगे थे। अगर महामहीम राज्यपाल जी के आगमन से पूर्व पुलिस के कुत्ते बम सूंघने नहीं आते तो व्यंग्य पाठ चलता रहता। इसी बहाने लंच हो गया।
सभी काॅलेज में सुन्दर शब्दों की तलाश, सुन्दर चेहरों में करने में जुटे थे। महामहीम राज्यपाल डाॅ0 मृदुला सिन्हा के करकमलों से पांच व्यंग्य/कहानी/कविता की पुस्तकों का विमोचन हुआ। उन्होंने कहा-व्यंग्य के इस प्रकार का सम्मेलन होने की सराहना की। आयोजकों को साधूवाद दिया और अंत में अपनी एक रचना से उपस्थित साहित्य मनीषियों को स्पष्ट कर दिया कि व्यंग्य में हास्य जितना महत्वपूर्ण है, उससे ज्यादा उसका मानवीय संवेदनाओं से जुड़े रहना। जो बात पिछले सत्र में नहीं बन पाई थी, उसे महामहीम की रचना की अभिव्यक्ति  ने तालियों की गूंज के बीच पूरा कर दिया।
गोवा में व्यंग्योत्सव का होना व्यंग्य और गोवा तथा पार्वतीबाई चैगुले काॅलेज के इतिहास में मील का पत्थर तो साबित होगा ही इसके साथ ही महामहीम राज्यपाल की रचना से व्यंग्यकारों को निश्चित रूप से दिशा और प्रेरणा मिली होगी। जितनी तालियों का नाद दो दिन में सुनाई नहीं दिया उतना तो केवल उनकी रचना के दौरान ही मिल गया। हिन्दी व्यंग्य साहित्य में यह उत्सव फूटी आंख में तिल साबित हुआ। आयोजक और उपस्थित जनसमुदाय कोटीश बधाई का पात्र है।
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