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एक माल्या ही नहीं, डिफॉल्टर्स और भी हैं

संसदीय लोक लेखा समिति यानि PAC (पब्लिक एकाउंट्स कमिटी) ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कर्ज़ नहीं चुकाने वाले बड़े कारपोरेट घरानों के नाम सार्वजनिक किये जाने की पहल की है। पीएसी प्रमुख के.वी.थॉमस का मानना है कि ऐसा करने से बड़े व्यवसायी शर्मिंदा होंगे और सार्वजनिक बैंकों से लिया गया भारी-भरकम कर्ज़ चुकाने की दिशा में कदम उठायेंगे।

अगर ऐसा होता है तो PAC का यह प्रयास, देश के मृतप्राय दशा को प्राप्त सार्वजनिक बैंकों के पुर्नरुत्थान के लिए यह रामबाण साबित होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि देश के सार्वजनिक बैंकों से बड़े व्यवसायियों द्वारा लिया गया कर्ज़ (जिसे अब तक नहीं चुकाया गया है) 9.8 लाख करोड़ रुपये तक जा पहुंचा है। निश्चित तौर पर यह कोई मामूली राशि बिलकुल भी नहीं है कि जिसे व्यवसायियों द्वारा देश का औद्योगिक विकास करने के नाम पर माफ कर दिया जाये।

वैसे, हमारे देश भारत को कृषि-प्रधान देश कहा जाता है। प्रत्येक राजनीतिक पार्टी खुद को किसानों का हितैषी बताती है। इस बात की पोल तो काफी पहले से ही खुल चुकी है कि आज तक देश में नेताओं ने किसानों के नाम पर महज अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं। किसानों की समस्याओं को दूर करने में कम ही दिलचस्पी ली है।

अब एक बार फिर यह पोल खुल रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से लिये गये कुल 9.8 लाख करोड़ रुपये को कर्ज़ में से महज एक फीसदी कर्ज़ ही ऐसा है जो किसानों के द्वारा लिया गया है। इसमें से सत्तर फीसदी देश के बड़े कॉर्पोरेट घरानों के द्वारा लिया गया कर्ज़ है व बाकि का अन्य कुछ मझोले व्यवसायियों के द्वारा।

इससे यह स्पष्ट होता है कि नेताओं के द्वारा किसानों को कर्ज़ देने के नाम का केवल ढोल ही पीटा गया है, जबकि असली मजा तो बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने उठा रहे हैं।

यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि जब कोई किसान जाने या अनजाने में लिया गया कर्ज़ तय समय पर नहीं चुका पाता है तो बैंककर्मी कर्ज़ वसूलने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाते हैं। किस प्रकार से ये उन डिफाल्टरों के नाम व तस्वीर तक अखबारों तक में छपवा देते हैं।

मगर यही बात जब बड़े कॉर्पोरेट घरानों को लेकर लागू करने की आती है तो जैसे इन बैंककर्मियों को सांप सूंघ जाता है और ये उनके नाम तक सार्वजनिक नहीं करते।

संसदीय लोक लेखा समिति के प्रमुख के.वी. थॉमस का कहना है कि इस हालत के लिए बड़े कॉर्पोरेट घराने तो जिम्मेदार हैं ही, साथ ही साथ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भी जवाबदेही बनती है। के.वी. थॉमस पूछते हैं कि इन बैंकों को यह बताना चाहिए कि इतनी बड़ी रकम कर्ज़ स्वरुप देते समय इन्होंने गारंटी के रुप में क्या लिया? साथ ही साथ इन्हें यह भी बताना चाहिए कि बड़े डिफॉल्टरों के द्वारा कर्ज़ ना चुकाये जाने पर इन्होंने उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की?

किंगफिशर एअरलाइंस के मालिक विजय माल्या का सार्वजनिक क्षेत्र से लिया गया भारी-भरकम कर्ज़ ना चुकाकर देश से भाग जाना एक बड़ा अपराध है। विजय माल्या बेशक एक भगौड़ा है जो ब्रिटेन में रहकर भारतीय बैंकिग व्यवस्था व कानून की खिल्ली उड़ रहा है। जिस पर देशवासी भी खूब चुटकियां लेकर देख व शेयर कर रहे हैं।

जबकि सचाई यह है कि विजय माल्या के अलावा भी कई बड़े-बड़े डिफॉल्टर्स (भगौड़े) देश में ही पूरी शानो-वो-शौकत से रह रहे हैं। जिनके नाम हम सभी से छुपाये जा रहे हैं। विजय माल्या तो डिफॉल्टर रुपी इस तालाब की मात्र एक बड़ी मछली जाल में आई है। कई और भी छोटी-बड़ी मछलियां हैं जो अभी जाल से बाहर हैं और तालाब को बेखौफ गंदा कर रही हैं।

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