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पिटने का मौसम

 

आम का मौसम आ गया। आम अब पिलपिले होने लगे हैं। आम हर साल आते हैं। आम का मौसम भी हर साल आता है। आम यानी आम आदमी। आम आदमी हमेशा आम की तरह पिलपिला है। जब आम का पेड़ तीन साल पुराना हो जाता है तो आम अकड़कर खास हो जाता है। उसका स्‍वभाव बदलने लगता है। वह मौसम की तरह बदलने लगता है। नंगा को जब पीतल मिल जाती है तो वह बौरा जाता है। नंगा सोचता है कि इसे भीतर धरुं या बाहर। आम जब ज्‍यादा पक जाता है तो उसके मालिक की स्थिति भी नंगा की तरह हो जाती है, वह आम को संभाले या उसके खास हो जाने को संभाले।

आम से खास बनने के लिए आम को पहले बौराना पड़ता है। आम का पेड़ बौराए बिना फल नहीं देता। अब आम नहीं बौरा रहे हैं। आम से जो खास हो गए हैं वे ही बौराने लगे हैं। उन्‍हें अपनी खास जगह, खास सीट चाहिए, उन्‍हें उनकी सीट के लिए भले ही किसी भी आम को पीटना पड़े या अखाड़े में उतरना पड़े तो शर्म नहीं है। उन्‍हें तो बौराना है। एक बार जनता ने आम से खास बना दिया फिर क्‍या। अब जनता को तो अधिकार नहीं है कि खास को फिर से आम बना सके। सड़कों पर दौड़ा सके। उन्‍हें कनुआ, भनुआ के नाम से बुला सके। अब तो उन्‍हें साहब ही कहना होगा।

आम पहले बौराए थे, अब पगला गए हैं। अब उन्‍हें अजीरण होने लगा है। वजन बढ़ने लगा है। अभी तो कुछ साल और बाकी हैं। पेट को बढ़ने दो, चर्बी को चढ़ने दो, जनता को रोने दो, सड़कों को टूटने दो, आम को फलने दो, फलों को पकने दो, अनाज को सड़ने दो, बिजली तो आने दो, पानी बरसने दो, सूखा पड़ने दो, अकाल घोषित होने दो, किसान तो अभी जिन्‍दा है, कर्ज माफी योजना लागू होने दो, क्रिकेट में हारने दो, अभी तो आम आदमी जिन्‍दा है, उसे ठठरी पर कसने दो।

अब तो उड़ने का मौसम है। मौसम में उड़ने दो। महंगे पंख लगने दो, सस्‍ते पंख से नहीं सजेगा विमान, कर्मचारियों को पिटने तो दो, हमें कुश्‍ती के मैदान में जाने तो दो, पटखनी खाने तो दो। आम के मौसम में आम की क्‍या औकात हैं। खास औकात हमारी है। हम कर्मचारियेां को पीटेंगे, कुश्‍ती में पिटेंगे। कर्मचारियों को कागजादेश नहीं डंडादेस देंगे। कुश्‍ती में हम भले ही पिट जाएं, लेकिन हमारा अधिकार है आम आदमी को पीटना।

कानून ने पटटी खोल ली है, उसे आम आदमी की आंखों पर बांध दिया है, जिससे आम आदमी पिटते हुए पीटने वाले को न देख सके,जो देख सकता है, वह बोल नहीं सकता, जो बोल सकता है, वह पिटने से डरता है। कानून में कोई आम आदमी का अधिकार नहीं, बस उसे दूसरे की अवमानना नहीं करना चाहिए। उसका अपमान उसका सम्‍मान है और यह सम्‍मान जब सांसद के द्वारा दिया जाता है तो वह धन्‍य हो जाता है।

उसका पिटते हुए बार-बार चैनलों द्वारा दिखाया जाना उसकी टी आर पी बढ़ाता है। कैमरामेन आपसे पूछता है पिटने का बाद आप कैसा महसूस कर रहे हैं, इससे आपको भविष्‍य में कौन-कौन से फायदे होने वाले हैं, इस तरह पिटने के बाद आप जनता को क्‍या संदेश देंगे। युवाओं के लिए क्‍या संदेश होगा, महिलाओं/युवा महिलाओं को क्‍या संदेश देंगे। इससे देश की सुरक्षा कितनी मजबूत होगी। पिटने की संभावनाओं के बारे में विस्‍तार से बतायें।

कैसे पिटा जाता है इस पर देश में आन्‍दोलन होने चाहिए, चर्चा होनी चाहिए, रैली होनी चाहिए। इसके लिए विदेश यात्राएं होनी चाहिए। पिटना उसे आम आदमी से कैसे खास बनाता है। आपको भी पिटने का शौक है तो हवाई सुन्‍दर बन जाइए या अखाड़े में कूद जाइए। आपका अपमान देश का सम्‍मान बढ़ाता है, आपके सम्‍मान से देश गर्व से आम के पेड़ की तरह झूम उठता है।

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