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BHU में IIT की स्थिति दादा जी के घर में पापा जैसी है

हम उत्तर प्रदेश की जिस संस्कृति से संबंध रखते हैं वहां मिश्रित परिवार के भीतर युगल परिवार का प्रचलन है। अधिक व्याख्या करें तो अर्थ यह है कि एक बड़ा सा मकान होता है- पिता जी, चाचा जी, ताऊ जी सब उसी मकान में रहते हैं। अर्थात सब एक छत के नीचे मगर सबका चूल्हा-चौका और खर्चा-पानी अलग होता है। ये ठीक वैसे ही है जैसे एक विश्विद्यालय हो और उसके अंदर ढेरों फैकल्टीज़।

एक बड़ी समस्या होती है कि ऐसे घरों में मुखिया दादा जी होते हैं। पिता जी के नियम कानून उनके बेडरूम तक और बाकी पूरे मकान में दादा जी के नियम कानून चलते हैं। समस्याएं तब और बढ़ जाती हैं जब पिता जी के बच्चे आईआईटियन हो जायें या गांव से बाहर निकलें (अर्थात् विश्विद्यालय की कोई फैकल्टी विशेष दर्जा पा जाए)।

एक दिन वो पिता जी से बोली- “पापा जीन्स पहननी है?”

पिता जी बोले- “देखो बिटिया ऊ का है ना कि हम तो अलाऊ कर दें लेकिन ई दादा जी को अच्छा नहीं लगता”

हम बोले- “ऐ पापा हमको कोहली कटिंग करवाना है ऊ फईसन में है… सब लौंडे बनाये घूमते हैं”

पिता जी बोले- “देखो बाबू तोहरा को पता नइखे अभी हम दादा जी के अंडर में हैं। हम खुद का फैसला केवल अपने बेडरूम तक चला सकते हैं… पूरे मकान में तुम फईसन बनाये नहीं घूम सकते”

हम बोले- “पापा हमका नया टीवी चाहिए… दादा जी दिन भर संस्कार देखते हैं… हम आईआईटियन हो गये… हमरे के GOT देखना है”

पिता जी बोले- “ऐ बुड़बक गोट देखने खातिर टीवी?… बकरी नहीं देखे कभी?”

हम प्रोटेस्ट किये- “अरे पापा गोट नहीं जीओटी… टीवी धारावाहिक का नाम है…”

पिता जी बोले- “देखो बेटा दादा जी का टीवी से अच्छा टीवी नहीं मिलेगा… दूरदर्शन देखो औ’ एक बात और सुन लो कान खोल के अगर नया टीवी खरीदना भी चाहो ना तो दादा जी परमीसन नहीं देंगे”

पिता जी से बोली- “पापा-पापा किताब लेने जाना है बेडरूम से बाहर जाऊं क्या?”

पिता जी बोलेंगे- “देखो बिटिया दस बज गया है अभी ना जाओ बिकॉज़ दादा जी बोलते हैं कि हम सेकोरिटी नहीं दे पायेंगे इतनी रात में”

हम कितनी ही जिद करते हैं पिता जी से- कभी लैन कनेक्शन मांगते हैं, तो कभी चौबीस घंटे पढ़ने के लिये बेडरूम से बाहर जाने की इजाज़त। और जब पिता जी नहीं मानते तो बैठ जाते हैं हम हड़ताल पर “मुझे खाना नहीं खाना पहले मुझे वो चाहिए।”

चलो मान लेते हैं कि बच्चों की हर मांग जायज़ नहीं होती। इसलिए पिता जी बहाना बना देते हैं कि हो जायेगा, कर तो रहे हैं, थोड़ा वेट करो, हमारे हाथ में नहीं, वक्त लगता है, दादा जी ने मना कर दिया इत्यादि। लेकिन थोड़ा सा समझिये कि ये सभी सुविधाएं हमारा अधिकार हैं, हर सुविधा पर हमारा हक़ बनता है। हम हर बार ये कायरतापूर्ण उत्तर नहीं सुन सकते कि ‘हमारे हाथ में नहीं है।’

अब पिता जी को सोचना पड़ेगा कि वो दादा जी नहीं हैं। वो उनसे तीस साल आगे की पीढ़ी हैं और हम पिता जी से भी तीस साल आगे की पीढ़ी होना चाहते हैं। किन्तु इसके लिये हमें हमारी स्वतंत्र शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं चाहिए। पिता जी को समाज में जो विशेष सम्मान मिला है उन्हें वो बनाये रखना होगा। पिता जी को आईआईटी वाला स्तर बनाये रखना होगा।

यदि हम दादा जी की हर सही-गलत परम्परा स्वयं पर थोपते रहे तो बाकी आईआईटीज़ से बहुत पीछे रह जायेंगे। पिता जी यदि आप पिछली पीढ़ी से इतना बंधे रहे तो आपके आने वाली पीढ़ी का भविष्य खतरे में है। इस दुनिया में हर समस्या का हल है, इस समस्या का भी होगा। हमें विश्वास है कि पिता जी अपने बच्चों को दुखी नहीं देख सकते।

हम पिता जी के प्रशासन की मजबूरी समझते हैं। वो दादाजी के पुश्तैनी मकान से अलग खुद का मकान नहीं बनवा सकते और ना ही अपने बेडरूम के सामने एक दीवार खड़ी कर सकते हैं, क्योंकि दादा जी को नहीं पसंद की उनके घर में दीवार उठे। दादा जी की संस्कृति से बंधे रहने में भी हमें कोई दिक्कत नहीं, लेकिन हमें भी नहीं पसंद कि हमारे पिता जी के बेडरूम में कोई भी घुस आये।

फिर भी अगर दादा जी नहीं मानते तो ‘पिताजी का प्रशासन’ भी आये हमारे साथ और दादाजी से कहें कि जब तक मांगे पूरी नहीं होती ‘पिताजी का प्रशासन’ भी खाना नहीं खाएगा। हम तो अपनी मांगें ही रख सकते हैं, करना तो पिताजी को ही है। और हां! हम कुछ ‘अज्यूम’ नहीं कर रहे, जो है वो सच है।

 

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