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भगत सिंह के छवि का इतना समावेशी हो जाना बहुत खतरनाक है |

आप ध्यान से देखें तो आपको दिख जाएगा की आज देश में वो सारी प्रस्थतियाँ मौजूद हैं जो आपको भगत सिंह बनने पर मजबूर कर दें | लेकिन क्या कारण है कि हम बस उनकी तस्वीर, उनके ऊपर बनी फिल्में और उनका टी-शर्ट पहनकर ही अपना मन बहला रहे हैं | यकीन मानिए अगर आप और हम इस दौर में भी जिंदा हैं तो हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं जो भगत सिंह करते |

भगत सिंह के छवि का इतना समावेशी हो जाना और उनके विचारों का हाशिये पर चले जाना , इन दोनों बातों का एक साथ होना वाकई बहुत खतरनाक है | ये इस दौर की सबसे दुखद घटना है | ये बताता है कि हम ऐसे समय में आ गयें हैं जहां अब क्रान्ति की संभावना सब से कम है | आज भगत सिंह का शहादत दिवस है और पूरा देश उन्हें याद करने में लगा है | कल जो न्यूज़ चैनल नजीब को आईएस से जोड़ रहे थे, कन्हईया, उमर को आतंकवादी बतला रहे थे, हर बात पर सरकार का समर्थन कर रहे थे | वही न्यूज़ चैनल आज भगत सिंह का गुणगान कर रहे हैं उनको हीरो बना रहे हैं |

जो कल हमारे स्टेटस पे गालिया दे रहा था आज वो भगत सिंह को नमन कर रहा है | कल जो लोग हर बात पर मौन रहकर उसका समर्थन कर रहे थे आज वो भगत सिंह को अपना प्रोफाइल पिक्चर बना रहे हैं | आपको ये सब खतरनाक नहीं लगता है ? कोइ तो वैचारिक प्रतिबध्त्ता होनी चाहिए | हम सबको कांज्जुम कैसे कर ले रहे हैं ? हम एक साथ योगी आदित्य नाथ [केवल उदाहरण के लिए] और भगत सिंह को कैसे कंज्यूम कर सकते हैं ?

ये समाज ऐसे दौर में पहुच गया हैं जहां अब इसे किसी बात से उस हद तक फर्क नहीं पड़ता है जहां क्रान्ति या बदलाव की कोइ संभावना बची हो | हम जरुरत से ज्यादा लिबरल और नाटकीय हो गयें हैं | विचारों का ये बैलेंस बदलाव की संभवना की हत्या कर रहा है |

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