बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि आज के दौर में हम सभी ‘नॉलेज सोसायटी’ का हिस्सा हैं, जिसमें ज्ञान के एक बड़े हिस्से को समाज के सभी वर्गों तक पंहुचाने की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी मीडिया पर है। भारत में पिछले कुछ सालों से उपजी ‘सूचना क्रांति’ की सबसे सफल संतान ‘मीडिया’ ने सभी ज्ञान परंपराओं को पछाड़ते हुए समाज की शिक्षा की दिशाओं को एक नये ढर्रे में मोड़ दिया है।
मीडिया का रोल आधुनिक जीवन में इतना ज़्यादा है कि दैनिक दिनचर्या में सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक हम मीडिया के ही माध्यम से दुनिया को जीते और सुनते हैं। फिर चाहे वो टेलीविजन के माध्यम से हो, अखबार के माध्यम से हो या नव मीडिया के इस दौर में इन्टरनेट के माध्यम से हों जहाँ खबरों की बमबारी वैश्विक स्तर पर होती है।
इसी क्रम में मीडिया के विभिन्न सोशल प्लेटफॉर्म्स आम लोगों या यूं कहें समूचे जनमानस को मीडिया से जोड़ने में काफी हद तक कामयाब हो रहा है। एक तरफ जहां मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा खबरों और सूचनाओं को लोगों तक पहुंचाया जा रहा है, वहीं फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल नेटवर्क्स ने सामान्य लोगों की पहुंच मीडिया और खबरों तक बहुत आसानी से कर दी। लेकिन सवाल यह उठता है कि इन सब के माध्यमों से सूचनाओं और ज्ञान का जो आदान प्रदान हो रहा है वो सही है या निराधार? मीडिया के समक्ष आज यह बड़ी चुनौती है।
पोस्टट्रुथ के इस दौर में जहां किसी भी चीज़ को अंतिम सत्य माना नहीं जा रहा, ये प्रश्न कठिन है कि सूचनाओं की बाढ़ में क्या सही है और क्या गलत है। क्योंकि मीडिया की कई सीमाओं में सही सूचनाओं को गलत साबित करना या किसी मुद्दे पर ट्रोलिंग या अतिव्यंग्यात्मक रूप से चीज़ों को गलत साबित करना आम बात हो चली है।
किसी भी नैतिक समाज के निर्माण के लिए यह ज़रूरी है कि उसका आधार सही ज्ञान की जड़ों से जुड़ा हो। यदि आज हम पहले से अधिक एक असमान समाज की सच्चाई में जी रहे हैं तो इसकी ज़िम्मेदारी बाज़ार के अलावा मीडिया के ऊपर भी है। आज हर आदमी यह जानने के लिए मजबूर है कि देश और विश्व में इस समय क्या चल रहा है, घटनाएं व्यक्तियों से ज्यादा महत्वपूर्ण लगने लगी हैं।
‘मीडिया साक्षरता’ इस देश के लिए एक नयी अवधारणा है, लेकिन विश्व के कई हिस्सों में विशेषकर विकसित देशों में बहुत सालों से इसको लेकर प्रयोग किये जा रहे हैं। भारत में ‘मीडिया साक्षरता’ पर कितना काम हुआ है और इसके क्या परिणाम दिखाई दे रहे हैं, अभी इस पर कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी। लेकिन यह ज़रूर देखा जा सकता है कि एनसीईआरटी के अलावा अन्य संस्थाओं, स्कूलों के अलावा बड़ी संख्या में अध्यापकों और शिक्षा-शोध से जुड़े लोग इसको लेकर काफी गंभीर हैं।
यह ज़रूरी है कि यह सिर्फ स्कूली या सैद्धांतिक शिक्षा का ही हिस्सा बन कर ही ना रहे। यह मनुष्य के उन सभी व्यवहारगत आयामों से भी संबंधित हो जिसमें वह अपने और दूसरों के लिए मान्यताओं और समानताओं का निर्माण करता है। मीडिया और इन्टरनेट का प्रभाव एक आयामी नहीं है बल्कि वह मस्तिष्क पर स्वयं और समाज से लेकर उसकी सामाजिक पहचान, संघर्ष, हिंसा, भावनाएं और आस-पास के पर्यावरण पर एक साथ और कभी-कभी एक तरफा प्रभाव भी डालती है।
मीडिया साक्षरता के मुद्दे पर बात करते हुए भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली के प्रोफेसर आनंद प्रधान का कहना है कि अब देश में मीडिया साक्षरता की आवश्यकता है। समाचारों को आलोचनात्मक दृष्टि से पढ़ना होगा। सूचना का सच नहीं उसके पीछे के सत्य को समझना होगा।
मीडिया अध्ययन और मीडिया साक्षरता पर गंभीरता से विचार करने वाले यह मानेंगे कि इन दोनों का उद्देश्य मीडियाकर्मी तैयार करना नहीं है। इसका उद्देश्य उन लोगों तक मीडिया के काम करने के तरीकों की जानकारियां पहुंचाना है जो भले ही अपने संदेश वहां से प्रसारित करवाने के लिए या वहां से प्राप्त संदेशों और जानकारियों का फायदा उठाने के लिए मीडिया के उपभोक्ता हैं।
मीडिया साक्षरता का महत्व आज पहले से कहीं अधिक इसलिए भी हो गया है क्यूंकि बाज़ार और व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा की वजह से मीडिया का स्वरूप बहुत बदल चुका है। साथ ही साथ मानव समाज में नव मीडिया इतना घुल-मिल चुका है कि उसे इसके तौर तरीकों से वाकिफ नहीं कराया गया तो ये उसी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।