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“सासंद से गाना गवाती है मूर्ख औरत, दूर हो जा नज़रो से”

देश के उज्ज्वल भविष्य की बात करते हो,बड़े-बड़े दावे और वादे भी करते हो। शिक्षा को बढ़ावा देने की बात करते हो,शिक्षित समाज की बात करते हो। बात करते हो “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान की। कभी गौर किया है यह सब किसके भरोसे होगा ? किसके कंधे पर है यह जिम्मेदारी ? कौन तुम्हारे इस मिशन को सफल बनाने हेतु जी-जान से जुटा है ?

आपको इसकी समझ कहां से आएगी माननीय मनोज तिवारी जी। आप ने कभी शिक्षा की अहमियत को जाना ही नहीं है,आपने यह समझने की कभी कोशिश ही नहीं की कि आख़िर शिक्षक होने का मतलब क्या है ? एक शिक्षक आप जैसे हजारों लोगों को पैदा करता आया है,कर रहा है और आगे भी करता रहेगा मगर आप ! क्या कर सकते हैं ? सिवाय सरकारी सुविधा लेने के! आपका मिशन और आपका सपना जो है न, वह आप जैसों से पूरा नहीं होगा। शिक्षक होना सम्मान की बात है,एक दायित्व है जो इस समाज को बेहतरी की तरफ लेकर जाता है और बीजारोपण करता है इस समाज में अच्छाइयों का,संस्कारों का,तमीज़ का और तहजीब का।
आपको पता है तिवारी जी…

इस देश में नारी पूजा की बात की जाती है और आपने क्या किया ? कभी अकेले में बैठकर सोचियेगा जब आपका गुरुर आपके सर पर चढ़कर नहीं नाच रहा होगा तब आपको समझ आयेगा कि आपने क्या किया ? आपने पूरे देश के शिक्षकों का मान-मर्दन किया है,आपको क्या लगता है? आपकी यह बद्तमीजी वाली हरकत बस कुछ लोगों ने देखा होगा ? जरा सोचिए न तिवारी जी जिन शिक्षकों ने आपकी यह हरकत देखी होगी उनकी मनःस्थिति इस समय क्या होगी ? क्या चल रहा होगा उनके मन में ? आपके बारे में और आपके जैसों के बारे में उनके ख़्याल क्या होंगे ?

इस देश के सिस्टम ने ऐसे ही शिक्षकों के जिम्मे न जाने कितने काम दे रखे हैं,आदमियों की गणना शिक्षक करेगा,जाती प्रमाण पत्र शिक्षक बनायेगा,गाय,बैल,गदहा,बकरी सब वही गिनेगा यानी जितने काम कहो शिक्षक पुरे तन्मयता से लगा रहता है मगर आप जैसे लोग क्या करते हैं इन शिक्षकों के साथ ?

इतनी सारी जिम्मेदारियों के बाद भी एक शिक्षक अपने बच्चों को पढ़ाता है,उनको सबल बनाता है,दृढ बनाता है उनको और उनकी मानसिकता को पुष्ट करता है। पिछले दो साल से राजस्थान में हूँ सरकारी विद्यालयों के साथ काम करता हूँ और मैंने देखा है कि शिक्षक तमाम असुविधाओं और परेशानियों के बाद भी पूरी तन्मयता से लगे हुए हैं,अपना बेहतर देने की कोशिश हमेशा करते रहते हैं। बच्चों के घर तक जाते हैं जब बच्चे विद्यालय नहीं आते,उनको समझाते हैं,उनके माता-पिता को समझाते हैं और शिक्षित होने का अर्थ बताते हैं,उनको विद्यालय तक लेकर आते हैं। शिक्षक तो आप जैसे लोगों को बच्चों के बीच उदाहरण के रूप में भी रखते हैं मगर अब क्या होगा ? क्या कोई शिक्षक किसी राजनेता को उदाहरण स्वरूप बच्चों के समक्ष रखेगा ?

आदरणीय मनोज तिवारी जी शिक्षक ही एक मात्र वह जरिया है जिसके बदौलत कुछ बदलाव लाया जा सकता है और उसके बाद उस बदलाव का हवाला देकर आप जैसे लोग ख़ुद प्रोजेक्ट कर पाने में सक्षम होंगे। आप जैसे लोग कुछ और न करें बस शिक्षकों का सम्मान हर करें और आपका यह सम्मान उनको ऊर्जा देगा,उनको बेहतर करने की शक्ति देगा मगर आपने जो दिल्ली में एक एक शिक्षिका के साथ जो किया वह मनोबल तोड़ने वाला था और अगर ऐसा ही चलता रहा,आपके जैसे लोग सियासत और सत्ता में आते रहे तब वह दिन दूर नहीं जब “काला अक्षर भैंस बराबर” वाली कहावत चरितार्थ होकर रहेगी।

आपको इस कृत्य के लिए मुआफी माँगना चाहिए क्योंकि आपने जो किया है वह अक्षम्य है। उस शिक्षिका ने सिर्फ आपको गाना गाने के लिए कहा था जो आपका पेशा है और आपने उसको बेइज्जत कर दिया। आप जैसे लोग बड़े लोगों की पार्टियों में मुज़रा करते वक़्त नहीं शर्माते मगर एक शिक्षका ने ससम्मान आपको गान के लिए कह दिया क्योंकि आप उस इलाके के सांसद हैं और गवैया भी। इतनी सी बात और आपने अपनी रंगत दिखा दी। [envoke_twitter_link]तमीज़ आप सीखिये तिवारी जी और तहजीब भी क्योंकि आजकल यह चीजे सियासत से कोसों दूर चली गई हैं।[/envoke_twitter_link]

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