राजनीति में गधों का कितना महत्व है, पिछले चुनावों में साबित हो गया। अब दोबारा उस पर बहस करके मैं गधों का अपमान नहीं करना चाहता। इस चुनाव में टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में हम गधों का जिस बेहरमी से इस्तेमाल किया गया है वह बहुत अगधावीय है। जो गधा नहीं है वह भी हमारे बारे में बोल रहा है और जो गधा है, वह अपने आपको गधा श्रेष्ठ साबित करने के लिए गधों की मर्यादा को तोड़ रहा है।
हम गधों की अपनी विशिष्ट परपम्पराएं हैं, उनका सम्मान किया जा रहा है और आज भी बुद्धिजीवी वर्ग गधा परम्परा के अनुकूल आचरण कर रहा है, लेकिन ये चुनाव में खड़े-बैठे, लटके सभी हमारी परम्पराओं का मखौल उड़ा रहे हैं। वे क्या जाने गधा क्या होता है? गधा पर जो भी लिखा जा रहा है उससे हमारी गधा जाति को बहुत मानसिक कष्ट हो रहा है। खुद अपनी मूर्खताओं की जिम्मेदारी हम गधों पर लाद कर खुश हो रहे हैं।
अरे ये इतने पढ़े-लिखे लाल बत्ती वाले लोग कुत्तों की तरह लड़ रहे और तोहमत हम गधों पर लगा रहे हैं। इनको कोई नाखून वाला जानवर नहीं मिला क्या? उसके बारे में बोल कर दिखाये तो इनको दो मिनट में औकात समझ में आ जाए। इतिहास गवाह है-गधों ने रैली नहीं की, गधों ने अपनी मांगों के समर्थन में हड़ताल नहीं की, बैंक वाले हड़ताल हर साल करते हैं, पार्टियां आए दिन रैली करके जाम करती हैं, हमें पीटा जाता है, हमारे अधिकारों का हनन किया जाता है, हमारा मखौल उड़ाया जाता है, लेकिन हमने कभी विरोध दर्ज नहीं कराया। गधों की छोटी उंगली जितनी भी तमीज अगर इनमें आ जाए तो देश का उत्थान/विकास एक साथ हो जाए।
अफसोस तो इस बात का है कि इन्होंने हमारे होली के महत्व को भी राजनीति का हिस्सा बना लिया। ये हमारा दुर्भाग्य है कि होली चुनाव परिणाम के बाद है। जिनका सम्मान होली पर हमारे नाम से होना था, उनका तो 11 मार्च को सम्मान हो गया, फिर होली पर क्या आप हमारे सम्मान के लिए रुके थोड़े रहेंगे। होली हमारा सबसे बड़ा त्योहार होता है। इस दिन गधों को गधों पर बिठाया जाता है। मुंह काला किया जाता है।
इस दिन काले धन वाले/गोर चेहरे वाले/बुद्धिजीवी/नेताओं के परजीवी/रिश्वतखोर/व्यभिचारी/चोर-डाकू आदि का एक ही रंग होता है। सभी रंगे सियार होते हैं। वैसे होली के पहले और होली के बाद या होली के दिन भी इन सियारों को पुलिस तक नहीं पहचान पाती।
होली के दिन गधों की इज्जत अफजाई होती है, मुकुट पहनाया जाता है। मिठाई खिलाई जाती है। गले में फूलों की (जूतों की) माला पहनाई जाती है। कवि हमारे सम्मान में कविता पाठ करते हैं। मधुप पांडे से लेकर सुनील जैन राही तक सब हमारे गुणों का वर्णन अपने काव्य में करते हैं। हमारी जाति की उन्नति के लिए किए जाने वाले प्रयासों के लिए खोजी पत्रकार आलेख अखबारों में लिखते हैं। राजकपूर से लेकर अमिताभ बच्चन तक इस अवसर पर अपने सुरों की तुलना हमारे गंदर्भासुर से करने से नहीं चूकते हैं। गंदर्भ राग में राग प्रस्तुत करते हुए अपने आपको महानायक ही नहीं विश्वनायक तक मान लेते हैं।
राजनीति में गधों को जो महत्ता मिली है, उसका श्रेय होली को जाता है। होली में गधे के महत्व के कारण ही आज राजनीति में गधों का महत्व अचानक बढ़ गया है। यह देश, समाज और विश्व के लिए शोध का विषय है कि हम गधों के जीवन से सीख लेकर देश की सुरक्षा/शांति और अखण्डता कायम रख सकते हैं।
बिना गधों के होली वैसी ही है जैसे बिना दुल्हन के डोली, बिना कुर्सी के नेता या टाई के बगैर अफसर। होली पर गधों का वही महत्व है जो बारात में दूल्हें का, पार्टी में नेता का, ऑफिस में बॉस का, खेती में किसान का और घर में पति का।