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धमकी और बहिष्कार की अंधी सुरंग में घुट रही तेज़ाब पीड़िताओं की सांसें

पिछले दिनों वैशाली में एक तेज़ाब पीड़िता की खुदकुशी की खबर ने उस अंधेरी सुरंग के दरवाजे का परदा उठा दिया है, जिसके पीछे बिहार की कई ऐसी युवतियां और किशोरियां घुट-घुट कर जी रही हैं। ज्यादातर मामलों में आरोपी जमानत पर छूट जाते हैं और उन्हें और उनके परिजनों को धमकाते रहते हैं। इनके प्रति अमूमन समाज का व्यवहार भी बेहतर नहीं रहता। इन्हें न ठीक-ठाक सरकारी मुआवजा मिलता है न समुचित इलाज हो पाता है। हर तरफ अंधेरा देख कर कई पीड़िताएं हिम्मत हार जाती हैं। अगर इन्हें वाजिब हक औऱ न्याय दिलाना है, तो सरकार को अतिरिक्त संवेदना का प्रदर्शन करना होगा, जिनकी ये हकदार हैं।

पिछले पखवाड़े की बात है। वैशाली जिले के अनवरपुर गांव में एक तेज़ाब पीड़िता ने बिजली के नंगे तार को पकड़ कर जान दे दी। तेजाब से झुलसी हुई वह किशोरी समाज के व्यंग्यबाण से तो परेशान थी ही, जमानत पर छूटे आरोपियों की धमकी ने भी उसे परेशान कर रखा था।कमजोर तबके से आने वाली वह युवती इन दवाबों को सह नहीं पायी और उसने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उसकी खुदकुशी ने उन सवालों को सामने ला दिया है, जिससे तेज़ाब पीड़ित लड़कियां लगातार दो-चार हो रही हैं। ज्यादातर मामलों में आरोपी आसानी से जमानत पर छूट जा रहे हैं। वे इन्हें धमकाते हैं, छींटाकशी करते हैं और जमानत का जश्न मनाते हैं, जबकि पीड़िताएं अपने परिवार के साथ घरों में कैद हो जाती हैं। सामाजिक अलगाव झेलती हैं और बिखर चुके जीवन को फिर से संवारने की कोशिश करती हैं। बिहार की इन तेजाब पीड़िताओं के साथ न पुलिस प्रशासन खड़ा होता है, न सरकारी व्यवस्थाएं।

ऐसा ही एक मामला नवादा की एक किशोरी है। उस पर तेज़ाब फेंका गया, तो तेज़ाब के छींटे उसके मां-बाप और छोटी बहन पर भी पड़े। वे भी गंभीर रूप से जख्मी हुए, मगर मुआवजा सिर्फ उस किशोरी को मिला। आरोपी कुछ ही दिनों में जमानत पर छूट गये। और छूटते ही उन्होंने किशोरी के घर में घुस कर मारपीट की। उसकी छोटी बहन की चोटी पकड़ कर उसे नचाते रहे। माता-पिता और खुद पीड़िता पर भी बल प्रयोग किया। उसने इसकी शिकायत पुलिस प्रशासन में हर स्तर पर की, मगर आरोपियों का जमानत खारिज नहीं हुआ।

अपनी बहन सोनम के साथ मनेर की चंचल। जिसने मुकदमा लड़ कर देश भर की तेजाब पीड़िताओं को हक दिलाया।

पटना जिले के मनेर की चंचल जो बिहार की तेज़ाब पीड़ित युवतियों के लिए रोल मॉडल सरीखी हैं। जिसके मुकदमे की वजह से तेजाब पीड़िताओं को दिव्यांग की श्रेणी में रखने, सरकारी और निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज कराने और बर्न परसेंटेज के आधार पर मुआवजा हासिल करने का हक मिला है, वह भी लगातार प्रताड़ना की शिकार हो रही है। सारे आरोपी जमानत पर छूट गये हैं। वे उसके घर के सामने खड़े होकर उसका मजाक उड़ाते हैं, गालियां देते हैं।

चूंकि चंचल ने लड़ कर ठीक-ठाक मुआवज़ा हासिल किया है और सामाजिक संस्थाओं के लोग भी अक्सर उनसे मिलने आते हैं, सो समाज में यह बात फैला दी गयी है कि वह अपने ज़ख्मों को दिखा कर माल बटोर रही है। आसपास की महिलाएं पीठ पीछे कहती हैं कि इन लोगों ने अब इसे धंधा बना लिया है। कोई उसे अपने घर बुलाता नहीं है। लोग कहते हैं, मुहल्ला छोड़ कर कहीं और चली जाओ। हालांकि इसके बावजूद चंचल डटी हुई है और पूरा परिवार उसका साथ दे रहा है। उसने अपना इलाज कराते हुए पढ़ाई भी जारी रखा है। इस साल उसने बीए पार्ट वन की परीक्षा उत्तीर्ण की है।

चंचल के मामले की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाली वर्षा जवलगेकर कहती हैं, ज्यादातर मामलों में आरोपी दंबग पृष्ठभूमि वाले होते हैं और पीड़िता कमजोर वर्ग की। इसलिए इन्हें डराना-धमकाना आसान हो जाता है। हमलोगों ने कई बार आईजी (कमजोर वर्ग) से शिकायत कर ऐसे आरोपियों का जमानत रद्द करने का अनुरोध किया। हर बार भरोसा दिलाया गया, मगर कभी कार्रवाई नहीं हुई।

वैशाली में खुदकुशी करने वाली किशोरी के भाई शशि, कहते हैं, इन गुंडों की वजह से उनकी बहन की पढ़ाई छूट गयी। उसके पिता चीना शाह कहते हैं, इनके आरोपियों में से एक अपराधी है, वह अक्सर जान से मारने की धमकी देता है। कहता है, अगर जमीन बेचना होगा तो बेच देंगे, मगर किसी को छोड़ेंगे नहीं।

चंचल कहती हैं, पिछले महीने में एक आरोपी की धूम-धाम से शादी हुई और पूरा मोहल्ला उसकी शादी में शामिल हुआ। जबकि यही समाज उसे और उसके परिवार वालों को किसी फंक्शन में नहीं बुलाता। इसका मतलब तो यही न हुआ कि कसूरवार हमलोग हैं और अन्याय उनके साथ हुआ कि उन्हें जेल जाना पड़ा।

हैरत की बात यह भी है कि किसी लड़की के परिवार वालों ने कैसे ऐसे लड़के के साथ अपनी बेटी का ब्याह कर दिया। सरकार का भी वही हाल है। पिछले दिनों जब वे अपना मामला लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार में गयीं, तो उसे यह कह कर लौटा दिया गया कि आज इस मुद्दे पर शिकायतें नहीं सुनी जायेंगी। एक ओर लक्ष्मी जैसी युवती है, जिसे सरकार और समाज दोनों सम्मान देते हैं। दूसरी तरफ मैं हूं, जिसने अदालत में एक बड़ी लड़ाई जीती है और सभी पीड़ितों के लिए हक हासिल किया है, मगर मुझे न सरकार नोटिस करती है, न समाज। उल्टे लोग कहते हैं, मोहल्ला छोड़ कर चली जाओ।

आरोपियों का जमानत पर छूटना और पीड़िताओं को धमकाना तो जारी है ही, इनके इलाज और मुआवजे के स्तर पर भी कई मामलों में लापरवाही बरती जाती है। वर्षा कहती हैं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, पीड़िताओं को मुआवजा बर्न परसेंटेज के आधार पर मिले, उदाहरण के लिए उन्होंने चंचल का मुआवजा दस लाख तय कर दिया, जो 28 फीसदी बर्न का शिकार थी, मगर बिहार में ज्यादातर पीड़िताओं को तीन लाख के पुराने रेट से ही मुआवजा मिला है। पीड़िताओं का मुफ्त इलाज होना है और दिव्यांग वाला प्रमाणपत्र भी बनना है, मगर व्यावहारिक तौर पर ऐसा हो नहीं पा रहा।

वैशाली में खुदकुशी करने वाली तेज़ाब पीड़िता के पिता चीना शाह के हाथ में पीड़िता की तस्वीर।

वे कहती हैं, वैशाली की पीड़िता ने खुदकुशी समाज, अदालत और सरकार से समुचित सहयोग नहीं मिलने की वजह से की है, यह खुदकुशी नहीं, व्यवस्थागत हत्या है। ये पीड़िताएं शारीरिक रूप से अक्षम तो रहती ही हैं, मानसिक रूप से भी टूटी रहती हैं। इन्हें हर तरह के मानसिक सपोर्ट और संरक्षण की जरूरत है। सरकार को आगे बढ़ कर यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए। अदालत को ऐसे मामलों में जमानत देते वक्त सौ बार सोचना चाहिए और कई शर्तें रखनी चाहिए। पीड़िताएं लगातार इलाज में व्यस्त रहती हैं, इसलिए कई बार अदालती कार्रवाइयों से अनुपस्थित रह जाती हैं। अदालत को भी ऐसी व्यवस्था रखनी चाहिए कि अस्पताल से भी इनका बयान या गवाही हो सके। सरकार और अदालतें एसिड अटैक के मामले में संवेदनशील नहीं हुई, तो ऐसे हादसे बार-बार होंगे।

बीते 15 मार्च को भी बिहार के नवादा में एसिड अटैक की घटना सामने आई। जहां एक युवती पर पहले से घात लगाए उसके ही पड़ोसी ने तेज़ाब डाल दिया। पड़ोसी पहले से युवती को तंग करता था जिसका विरोध युवती और उसका पती भी करते थे। विरोध के दौरान बेचू(आरोपी) को कई बार जलील किया गया था। और इसी का बदला निकालने के लिए उसने युवती पर तेज़ाब डाल दिया। युवती का इलाज सदर अस्पताल में करवाया जा रहा है। लेकिन अभी तक प्रशासन से उदासीनता ही देखने को मिली है।

क्यों अत्यधिक तनाव में हैं बिहार की तेज़ाब पीड़िताएं
– आरोपी जल्द जमानत पर छूट जाते हैं और उन्हें धमकाते हैं।
– पूरा मुआवजा नहीं मिलता, मुआवजा हासिल करने में परेशानियां होती हैं।
– समुचित इलाज नहीं हो पाता, नियम के बावजूद मुफ्त इलाज नहीं होता।
– सामाजिक अलगाव की स्थिति बन जाती है, पढ़ाई-लिखाई छूट जाती है।
– निर्देश के बावजूद नहीं बनता दिव्यांग का प्रमाणपत्र।

सुप्रीम कोर्ट का तेज़ाब पीड़ितों के मामले में खास निर्देश
– तेज़ाब पीड़ितों को दिव्यांग की श्रेणी में रखा जाये।
– उन्हें बर्न परसेंटेज के हिसाब से मुआवजा मिले।
– सरकारी और निजी दोनों अस्पताल उनका मुफ्त इलाज करें।
(ये निर्देश बिहार के चंचल के केस में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2015 में जारी किये हैं। चंचल की ओर से पटना की संस्था परिवर्तन केंद्र ने मुकदमा किया था।)

(प्रभात खबर की एक रिपोर्ट पर आधारित)

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