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An Unexpected Journey

इस शीर्षक को पढ़कर हाबिट मूवी की एक अंसपेक्टेड जर्नी वाली फील मत लाइए | ये मेरी तीन घंटे की “एक अंसपेक्टेड जर्नी” थी | मै हर बार की तरह इस बार भी गुवाहाटी जाने के लिये ट्रेन पकड़ने अपने स्टेशन पर शाम तीन बजे खड़ा था, लेकिन इस बार यात्रा थोड़ी अलग थी | इस बार मुझे गुवाहाटी की ट्रेन पटना मे रात ग्यारह बजे मिलने वाली थी| पटना मे एक मेरा दोस्त था, वो भी आजकल सबलोगो की तरह अपना शहर छोड़ के दिल्ली निकल गया था| मै सोचा होली मे घर आया होगा, उससे मिलता चलूँ | फ़ोन किया तो उसका जवाब नही मिला, मन थोड़ा खीज गया| पटना पहुँचते ही मन नही माना तो दोबारा फ़ोन किया, इस बार जवाब मिला| बस फिर क्या दो घंटे का इंतजार, और फिर तीन घंटे की पटना की एक अंसपेक्टेड जर्नी |

हाँलाकि पटना भारत के व्यस्तम शहरों मे से एक है, लेकिन होली के अगले दिन होने के चलते लोगों ने सड़को को अपनी होली-दीवाली मनाने के लिए छोड़ गये थे| एक मोटरसाइकिल और सुनसान सड़के, बस फिर क्या चलिए घुमाते हैं आपको मेरी नज़रो से | पटना जंक्शन के आँगन से बाहर निकलते ही पटना की चौड़ी सड़को पर हम भी चौड़े होकर निकल गये| मेरे दोस्त का शहर, जो मेरे लिए बिल्कुल नया इसलिये मुझे कुछ फ़िक्र नही था| पहला हॉल्ट था डॉमिनोस मंदिर मे प्रसाद ग्रहण के वास्ते, हमदोनो ने प्रसाद लिए और फिर अपने जिंदगी मे होने और आने वाली रामकाहानी कुछ समय तक साझा किये| उसके बाद हम लोग जल्दी से भागती सड़को की ओर हो लिये| शायद मुझे वो ज़्यादा धार्मिक समझता हो, जो मुझे कहीं से नही लगता, उसने हमे मंदिरो की ओर मोड़ दिया| उसने दूसरा गन्तव्य स्थान शीतला मंदिर और अगम कुआँ निर्धारित किया था| उसे भी मंदिर ठीक से पता नही था, फिर भी हमलोग फ्लाइओवरो के मकाड़जल से होते हुये मंदिर खोज मे निकले| बहुत ढूढ़ने के बाद और समय को देखते हुए ये निर्धारित किया गया की अब बिना मदद के माता के दर्शन नही होने वाले| उसने एक शराब बंदी से मुक्त शांत डगमगाते पैरो वाले भाई साहेब से मंदिर के बारे मे पूछताछ की| उन भाई साहेब ने ऐसा दिशा निर्देश दिया की मंदिर खोज मे उनके ही दो बार दर्शन हुये| खैर हमलोग जैसे-तैसे मंदिर पहुँचे, ज़्यादा देर होने के चलते देवी के दर्शन तो नही हुआ लेकिन अगम कुँआ के दर्शन हुये| अगम कुँआ काफ़ी पुराना है, चारो ओर से दीवारो से क़ैद हुआ शायद आस्था के फेर मे अपनी आज़ादी खो बैठा था| ये सब कार्यक्रम ख़त्म होने पर हम पटना साहेब गुरुद्वारा की ओर निकले| जैसा की मै पहले ही आपको मेरी आस्था वाली बात बताई लेकिन कोई उपाय नही था| जो लोग पटना साहिब के बारे मे नही जानते, कृपया गूगल करते चले| रास्ते मे हमे एक बहुत बड़ा सिख भक्तो का जत्था पटना साहिब जाते हुये मिला| कुछ 15-20 ट्रको मे उन भक्तो के रहने-बैठने की व्यवस्था थी, आगे-आगे पटना पुलिस फिर भक्तो का बैंड, तलवार लिए हुए सिख भक्तो का समूह था| हमलोग बाइक से मचाते हुए गुरुद्वारे पहुँचे| काफ़ी सुंदर दरबार था लेकिन दुर्भगयवश मेरे पास मन और समय दोनो की कमी थी| मै जल्दी-जल्दी दर्शन कार्यक्रम ख़त्म करके वापस बाइक पर सवार हुआ| इनसब के बीच मे, मुझे पटना के फ्लाइओवरों ने कालाजार से पीड़ित इकलौते राज्य के मेडिकल इन्स्टिट्यूट के दर्शन कराये| बहुत ही अजीब वाली शांति थी वहाँ, उस इन्स्टिट्यूट को देखकर यही लग रहा था की वो कालाजार पर विजय को लेकर काफ़ी आसवस्थ था|

मेरे नसीब मे तीन घंटे की पटना यात्रा यही पर सिमट कर रह गयी| हमलोग बाइक भागाते हुये, मोबाइल से समय देखते हुये राजेंद्र नगर टर्मिनल पहुँचे| इन सब के बीच हमदोनो ने शीशे वाली ग्लास मे चाय की चुस्की लगाने का टाइम चुरा लिया था| क्योकि ये वाली चुस्की मुझे अगले 4-5 महीने गुवाहाटी मे नही नसीब होने वाली है| चाय के बाद मै न चाहते हुए भी दोस्त को अलविदा कहते हुए कैपिटल एक्सप्रेस मे जगह बनाया | अगले दिन सुबह मे कटिहार स्टेशन के आसपास, मैने नास्ते के बाद ये छोटी सी तीन घंटे वाली कहानी कलम से निकालकर सूखे पन्नो पर रख दिया |

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