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बेंगलुरु के लिए अब ज़रूरी है ज़्यादा बसें और कम किराया

बेंगलुरु शहर पिछले कुछ समय से निरंतर अलग-अलग मुद्दों पर सिविल सोसाइटी द्वारा चलाए जा रहे अभियानों और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी का गवाह बन रहा है। चाहे वो शहर में बढ़ रहे प्रदूषण का मामला हो या हाल ही में सरकार द्वारा प्रस्तावित स्टील फ्लाईओवर का मसला हो। विभिन्न नागरिक संगठनों द्वारा उनसे जुड़े मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाने और अपना मत प्रकट करने का एक रुझान यहां के नागरिकों में साफ़ तौर पर दिखाई दे रहा है।

इसी कड़ी में बेंगलुरु बस प्रयानिकारा वेदिके (BBPV) तथा सिटीजन फॉर बेंगलुरु (CFB) के नेतृत्व में शहर की यातायात व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए चलाया जा रहा अभियान #BusBhagyaBeku अब ज़ोर पकड़ता दिख रहा है। बेंगलुरु की बदहाल यातायात व्यवस्था के बारे में लगातार अखबारों में भी छपता है और यहां की सड़कों पर लगने वाला जाम नागरिकों की दिनचर्या का एक हिस्सा बन चुका है।

सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था को सुधारने के लिए शुरू किए इस अभियान की मांग है कि, “Half the Fares and Double the Fleet” जिसका मतलब है कि, “बस किराए को आधा किया जाए तथा बसों की संख्या को दुगुना किया जाए।”

इस अभियान के साथ काम कर रहे विनय श्रीनिवासा ने Youth Ki Awaaz से बात करते हुए अपनी मांगों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि अभियान शुरू करने से पहले उन्होंने कई संगठनो से बात की। इस पूरे मुद्दे पर जानकारी एकत्र करने के लिए लोगों द्वारा प्रतिदिन की जाने वाली यात्राओं से सबंधित आंकड़ों का अध्ययन किया।

उन्होंने बताया कि नए-नए फ्लाईओवर बनाकर और सड़कों को चौड़ा करके वर्तमान स्तिथि में किसी तरह का सुधार नहीं लाया जा सकता। इसे सुचारू बनाने का एकमात्र हल यही है कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का विस्तार किया जाए और इसे मजबूत किया जाए।

इसके साथ ही उन्होंने इस पूरे मुद्दे की समस्याओं के बारे में बताते हुए कहा कि पहली समस्या, बसों द्वारा वसूले जाने वाला किराया है। आंकड़ों के आधार पर उन्होंने बताया कि “बैंगलोर में बस किराया पूरे भारत में सबसे अधिक है जिससे कि लोग समूह में कैब और ऑटो से यात्रा करने के विकल्प चुनते हैं और इसके परिणामस्वरूप शहर में निजी वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है।”

विनय ने एक सर्वे के दौरान यहां के गारमेंट उद्योग में काम करने वाली महिलाओं से हुई बातचीत के आधार पर बताया कि उनकी मासिक आय 7000 रुपये है तथा BMTC द्वारा बसों के लिए उपलब्ध मासिक पास का खर्च है 1050 रुपये। इसलिए वो उनकी यात्रा में होने वाले इस खर्चे को उठा पाने में सक्षम नहीं हैं। इस वजह उन्हें प्रतिदिन 4 से 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है या टेम्पो आदि का सहारा लेना पड़ता है, जो सुरक्षा के नियमों को ताक पर रखकर सीमा से अधिक सवारियां बिठाते हैं।

बस किराया अधिक होने के कारणों पर उन्होंने कहा कि, “बेंगलुरु  मेट्रोपोलिटिन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (BMTC) को अन्य राज्यों की तरह सरकार द्वारा यातायात निकायों को मिल रही टैक्स (डीजल टैक्स, रोड टैक्स तथा मोटर व्हीकल टैक्स) की छूट नहीं मिलती। इस कारन यहां किराये में लगातार बढ़ोतरी होती है।” उन्होंने बताया कि 2014 में किराया बढ़ने के परिणामस्वरूप बसों में सफ़र करने वाले यात्रियों की संख्या में 8 प्रतिशत की कमी हुई है।

वर्तमान में बेंगलुरु शहर की जनसंख्या लगभग 1 करोड़ 20 लाख है तथा इतनी बड़ी आबादी पर यहां मात्र 6000 बसें है। इसके उलट दूसरी तरफ यहां निजी वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में शहर में करीबन 12 लाख कारें तथा 42 लाख दोपहिया वाहन हैं। वाहनों की संख्या बढ़ने से यहां प्रदूषण, ट्रैफिक जाम की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।

आबादी और यातायात के ढांचे में इस असंतुलन को कम करने के लिए वो अपने अभियान में बसों की संख्या को दुगुना करने की मांग कर रहे हैं। विनय के अनुसार कई रिसर्च स्टडीज़ बताती हैं कि, “एक बस, करीबन 50 कारों तथा 200 दुपहिया वाहनों की जगह लेने में सक्षम है तथा 1000 यात्रियों की जरूरतों को पूरा कर सकती है। इसलिए बसों की संख्या बढ़ाने और किराया कम करने से लोग सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करेंगे जो कि शहर की यातायात व्यवस्था को सुचारू करने के लिए बहुत ज़रूरी है।”

उनके अनुसार शहर में यातायात व्यवस्था की समस्या उस स्तर तक पहुंच गई है, जहां इसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। यदि अब भी इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में इसके बहुत गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे। अतः अब समय आ गया है कि सरकार इस पूरे मसले पर गंभीरता से सोचे और परिवहन की व्यवस्था को सुचारू करने के लिए ज़रूरी कदम उठाए।

हितेश  Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं। 

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