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भारत में लड़कियों के लिए शिक्षा का मतलब ‘संघर्ष” क्यों है?

हमारे देश में शिक्षा की फिलहाल जो हालत है, उसे हर हाल में बदतर ही कहा जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में हालत और भी भयानक है। इस मामले में सबसे खराब स्थिति लड़कियों की शिक्षा को लेकर है। बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ जैसे नारे गांवों तक तो पहुंच गए, लेकिन शिक्षा नहीं पहुंची।

ऐसे देश में जहां शिक्षा बच्चों का मूल अधिकार है, वहां हर 10 अशिक्षित बच्चों में से 8 लड़कियों का होना शर्म की बात है। शिक्षा के लिए जद्दोजहद करती ग्रामीण बालिकाएं बड़ी मुश्किल से यदि स्कूल जाने भी लगें तो भी अपने परिवेश और पारिवारिक हालात उन्हें शिक्षा से दूर करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

साल 2011 के जनगणना आंकड़ों को देखें तो हम पाते हैं कि देश के 78 लाख बच्चों को पढ़ाई के साथ कमाई करनी पड़ती है तो वहीं 8.4 करोड़ बच्चे आज भी स्कूलों से वंचित हैं।

वहीं सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे 2014 की रिपोर्ट (टेबल-3.10) के अनुसार, 15 से 17 साल की लगभग 16% लड़कियां बीच में ही स्कूल छोड़ देती हैं।  गुजरात इस मामले में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है। इस रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में 15 से 17 साल की 26.6% लड़कियां किसी न किसी कारण से स्कूल छोड़ देती हैं। इसका मतलब यह है कि राज्य में 26.6% लड़कियां 9वीं और 10वीं कक्षा तक भी नहीं पहुंच पाती हैं।

छत्तीसगढ़ में 15 से 17 साल की 90.1% लड़कियां स्कूल जा रही हैं, जबकि असम में यह आकड़ा 84.8 % है। बिहार भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा पीछे नहीं है यहां यह आंकडा 83.3 % है। झारखंड में 84.1 %, मध्यप्रदेश में 79.2 %, यूपी में 79.4 % और उड़ीसा में 75.3 % लड़कियां हाई स्कूल के पहले ही स्कूल छोड़ देती हैं। अगर 10 से 14 साल की लड़कियों की शिक्षा की बात करें तो इसमें गुजरात सबसे निचले पांच राज्यों में आता है।

लगभग एक तिहाई सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की सुविधा नहीं है जिस कारण से लड़कियां बड़ी संख्या में स्कूल छोड़ रही हैं। इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, करीब 12 मिलियन यानि 1.2 करोड़ भारतीय बच्चों का विवाह दस वर्ष की आयु से पहले हो जाता है। इनमें से 65% कम उम्र की लड़कियां हैं और बाल विवाह किए गए हर 10 अशिक्षित बच्चों में से 8 लड़कियां होती हैं। आंकड़ों के अनुसार, प्रति 1,000 पुरुषों की तुलना में कम से कम 1,403 ऐसी महिलाएं हैं जो कभी स्कूल नहीं गई।

इस बीच, चौंकाने वाले तथ्य यह भी हैं कि भारत के पांच राज्य तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में महिला साक्षरता की दर सबसे ऊंची है और इन्हीं राज्यों में महिला उद्यमियों की संख्या भी सबसे ज्यादा है। आर्थिक जनगणना 2012 के अनुसार, देश भर में महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे कारोबार में इन पांच राज्यों की 53% की हिस्सेदारी है।

तमिलनाडु में शिक्षित महिलाओं की संख्या 73.4% है। करीब 10 लाख व्यापारिक इकाइयां यहां महिलाओं के द्वारा चलायी जाती हैं जो देश भर में महिलाओं द्वारा चलाये जा रहे व्यापार में सबसे अधिक है। वहीं केरल का इसमें दूसरा स्थान है। यहां भारत की सबसे ज्यादा शिक्षित महिला आबादी है। यहाँ 90% महिलाएं साक्षर हैं और व्यापार की हिस्सेदारी 11% है।

ग्रामीण भारत में कुछ सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या बहुत ज़्यादा है जिससे छात्रों और शिक्षकों का अनुपात बिगड़ जाता है। दिसंबर 5, 2016 को मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, देशभर के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों के 18% पद और माध्यमिक स्कूलों में 15% पद खाली पड़े हैं।

इसे यूं कहें कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक के छह पदों में से एक पद खाली है। यानी करीब 10 लाख शिक्षकों की सामूहिक रुप से भारी कमी है। वहीं, भारत के 2600 लाख स्कूली बच्चों में से 55% बच्चे सरकारी स्कूल जाते हैं। शिक्षकों की कमी झेलते हजारों स्कूलों के पास शौचालय तो क्या क्लास रूम तक नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक, देश में अभी भी करीब 1,800 स्कूल किसी पेड़ के नीचे या टेंटों में चल रहे हैं।

जबकि, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, ओडिशा और भी अन्य राज्यों के प्रत्येक गांव में स्कूल ही नहीं हैं, यानि पढ़ने के लिए छात्रों को दूसरे गांव जाना पड़ता है। इसके चलते माता पिता अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेज पाते और भारत में ग्रामीण शिक्षा विफल रह जाती है।

गरीबी भी एक बाधा है। सरकारी स्कूलों की हालत अच्छी नहीं है और निजी स्कूल बहुत महंगे हैं। इसका नतीजा यह रहता है कि माध्यमिक शिक्षा में सफल रहकर आगे पढ़ने के लिए कॉलेज जाने वाले छात्रों की संख्या कम हो जाती है। इसलिए गांवों में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉप आउट दर बहुत ज्यादा है।

भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाने की नींव प्राथमिक और ग्रामीण स्तर पर रखना ज़रूरी है ताकि शुरू से ही शिक्षा का स्तर बेहतर हो। मुफ्त शिक्षा के बजाय ड्रॉप आउट के पीछे की वजह जानना चाहिए जो कि प्रगति के रास्ते में एक बड़ी बाधा है।

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