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मायावती की कानून-व्यवस्था का सच!

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में खराब कानून-व्यवस्था का मामला उठाया जा रहा है और बसपा का दावा है कि उसके शासन में अपराधी काबू में रहते हैं। हालांकि सच्चाई ऐसी नहीं है। समय बीत जाने के साथ ही मायावती के शासन में बसपा विधायकों-मंत्रियों और नेताओं की गुंडागर्दी और अपराधों पर चर्चा भले ही न की जा रही हो, लेकिन वे कारनामे ऐसे नहीं हैं कि एकदम ही भुला दिए जा सकें।

मायावती शासन में ही कई बसपा विधायकों और मंत्रियों पर बलात्कार के आरोप लगे और सरकार आरोपियों को बचाने के लिए भरसक प्रयास भी करती रही। यही वो दौर था जब मायावती ने बतौर मुख्यमंत्री बलात्कार पीड़िताओं के लिए 25 हजार रुपए मुआवजे का ऐलान किया था जिस पर जुलाई 2009 में कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने “मायावती के साथ ही बलात्कार हो” जाने का चर्चित बयान दे डाला था।

बयान के बाद रीता गिरफ्तार तो हुई ही थी, साथ ही बसपाइयों ने रीता और कई कांग्रेसियों के घरों पर हमला और तोड़फोड़ करते हुए पूरे प्रदेश में अराजकता की स्थिति पैदा कर दी थी।

मायावती के शासन में एक नहीं, अनेक मामले ऐसे हुए जिनमें बसपा नेताओं पर बलात्कार और हत्याओं के गंभीर आरोप लगे और अपराधियों पर सख्ती बरतने का दावा करने वाली मायावती की सरकार आरोपियों को बचाती रही। कई बार बचानें सफल भी रही और कुछ मामलों में अदालत के दखल के बाद कार्रवाई करनी पड़ी।

आइए, कुछ ऐसे ही काफी चर्चित रहे मामलों पर एक नजर डालते हैं:

फरवरी 2011 में कालपी के बसपा विधायक छोटे सिंह चौहान पर एक दलित महिला ने अपने साथ बलात्कार का आरोप लगाया। आवाज़ उठाने पर महिला की बेटी के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या भी कर दी। छोटे सिंह चौहान फिर से बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।

जनवरी 2008 में बसपा के विधायक योगेंद्र सागर पर एक लड़की के अपहरण और बलात्कार का मामला दर्ज हुआ। योगेंद्र पर आरोप है कि बदायूँ में एक लड़की का अपहरण कर उसे मुजफ्फरनगर और लखनऊ में कई दिनों तक रखा गया और उसके साथ बलात्कार किया गया। शिकायत करने पर लड़की के दो भाइयों के खिलाफ ही एक लड़की के अपहरण का मामला दर्ज करा दिया गया। पुलिस ने जाँच के बाद विधायक को क्लीन चिट दी। कोर्ट के दखल के बाद मामला दर्ज हुआ। बलात्कार पीड़ित लड़की की वकील साधना शर्मा की भी हत्या की करा दी गई। इस हत्या के मामले में भी योगेंद्र सागर नामजद हैं। जब मामला बहुत तूल पकड़ गया तभी मायावती ने उन्हें निकाला। 2012 में योगेंद्र की ही पत्नी को बसपा ने टिकट दे दिया।

1 जनवरी 2009 को मायावती शासन में मत्स्य आयोग के अध्यक्ष राममोहन गर्ग को सीमा चौधरी नाम की महिला के यौन शोषण और मारपीट के मामले में गिरफ्तार करना पड़ा। गर्ग ने नवंबर 2007 में बहुचर्चित ताज कॉरीडोर मामले की सुनवाई लखनऊ से हटाकर सुप्रीम कोर्ट में करने की याचिका डाली थी। बाद में मायावती से उनका समझौता हुआ था और उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया था।

2007 में ही बसपा के टिकट पर डिबाई सीट से विधायक चुने गए गुड्डू पंडित पर मायावती के शासन में ही एक लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा था और वे गिरफ्तार हुए थे। गुड्डू पंडित बलात्कार और हत्या के मामले में 8 साल जेल रह चुके हैं। गुड्डू सपा में होते हुए अब भाजपा में आ चुके हैं। गुड्डू पर शोध छात्रा ने रेप करने और जबरन बंधक बनाने की कोशिश का आरोप लगाया था।

मायावती के शासनकाल में ही 2010 में बाँदा जिले की नरैनी सीट के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी पर बसपा कार्यकर्ता अच्छेलाल निषाद की बेटी शीलू के साथ बलात्कार का मामला सामने आया। शिकायत करने पर शीलू को चोरी के आरोप में जेल भिजवा दिया गया। कैबिनेट सचिव शशांक शेखर तक ने पीड़िता को ही झूठा और चोर बताया था। कोर्ट के दखल के बाद विधायक पर मामला दर्ज हुआ और फिर दस साल की सजा भी हुई।

मायाराज में ही दिसंबर 2008 में औरैया में इंजीनियर मनोज गुप्ता की बसपा विधायक शेखर तिवारी ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इंजीनियर मनोज गुप्ता ने मायावती के जन्मदिन के लिए चंदा देने से मना कर दिया था। विधायक को बाद में इस मामले में उम्रकैद की सजा हुई। उसकी पत्नी को ढाई साल की कैद हुई।

मायावती सरकार में मंत्री रहे आनंदसेन यादव पर एक बसपा कार्यकर्ता की बेटी के अपहरण और हत्या का आरोप लगा। चर्चित शशि हत्याकांड में उन्हें उम्रकैद की सजा भी सुनाई गई लेकिन बाद में हाईकोर्ट से बरी होने में वे सफल रहे। आनंदसेन ने 2007 का चुनाव जेल से ही जीता था और मायावती ने उन्हें जेल में रहते ही उन्हें मंत्री बनाने का ऐलान कर दिया था और जमानत पर छूटने के बाद वो मंत्रीपद की शपथ ले सके थे।

मायावती के शासन में मंत्री रहने के दौरान पिपराइच के विधायक रहे जमुना प्रसाद निषाद ने जून 2008 में महाराजगंज थाने पर अपने समर्थकों के साथ उपद्रव मचाया। बसपा समर्थकों की गोली से एक सिपाही की मौत हुई। बाद में जमुना प्रसाद गिरफ्तार हुए लेकिन जेल में भी नसीमुद्दीन सिद्दीकी समेत कई बसपा नेता उनसे मिलते रहे। जमुना प्रसाद की अब मौत हो चुकी है।

अक्टूबर 2011 में मायावती सरकार में ग्राम्य विकास मंत्री और चित्रकूट से विधायक दद्दू प्रसाद पर एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया और कार्रवाई न होने पर लखनऊ में एसपी ऑफिस के सामने जहर खाकर जान देने की कोशिश की। कैबिनेट मंत्री का पद सँभाल रहे दद्दू पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और वे उस महिला को आरोप वापस लेने पर मजबूर करने में सफल रहे। बाद में दद्दू और मायावती में मतभेद हुए तो दद्दू बसपा से निकाल दिए गए।

जनवरी 2011 में मायावती सरकार में शिक्षा मंत्री राकेश धर त्रिपाठी के भतीजे सुनील मिश्रा पर इलाहाबाद की एक नाबालिग लड़की के साथ अपहरण और सामूहिक बलात्कार का आरोप लगा। मंत्री पर भी लड़की को डराने-धमकाने का आरोप लगा। बाद में पुलिस, सुनील का नाम मामले से अलग करने में सफल रही और अन्य आरोपियों पर कार्रवाई हुई। बड़े पुलिस अधिकारी मंत्री के भतीजे का बचाव करते नजर आए। मंत्री राकेश धर त्रिपाठी बाद में आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल में भी रहे।

इन सभी मामलों को याद करें तो यह कहा जा सकता है कि मायावती के शासन में भी सरकार के संरक्षण में ही अपराध काफी फल-फूल रहे थे और यह केवल भ्रम ही है कि मायावती के मुख्यमंत्री बनने पर अपराध बंद हो जाते हैं और अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई होती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं। पूर्व में सहारा समय टीवी चैनल में काम कर चुके हैं। आकाशवाणी के हिंदी समाचार विभाग से भी वे संबद्ध हैं। संपर्क www.facebook.com/mahendra.yadav.399 और twitter@mnsyadav)

 

 

 

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