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रईसों को सुंदर बनाने के लिए जबरन बेची जा रही है नेपाली महिलाओं की चमड़ी

तीन साल पहले सुशीला थापा मुंबई के वैश्यालय से किसी तरह भागी और नेपाल में अपने गांव पहुंची। सुशीला की पीठ पर एक ज़ख्म का निशान था, किसी बड़े ज़ख्म का। लेकिन सुशीला के लिए इन निशानों से ज़्यादा ये मायने रखता था कि वो अपने घर आ गई थी और वो भी ज़िंदा।

सालभर बाद उसे ठीक अपने जैसे ज़ख्म की निशान वाली एक और औरत मिली। सुशीला को अब ये बात पता चल चुकी थी कि ये निशान किसी क्लाइंट की फैंटसी के नहीं बल्कि किसी बड़ी साज़िश के निशान थे। सुशीला ने इस बात की तह तक जाने की हिम्मत जुटाई। तहकीकात की जड़ तक जाने पर पता चला कि सुशीला की त्वचा, अमीर लोगों को सुंदर बनाने के लिए चोरी की गई थी।

सुशीला जिस महिला से मिली थी उसने अपने शरीर का 20 स्कावयर इंच स्किन, एक एजेंट को 10 हज़ार रुपये में बेचा था। लेकिन 10 हज़ार कितने दिन साथ देने वाले थे। फिर वही एजेंट उस महिला को काम दिलाने के बहाने वैश्यालय ले आया। सुशीला ने  बताया “एजेंट ने मुझे बताया कि वो किसी और एजेंट को ये त्वचा बेचता है जो कि आगे प्लास्टिक सर्जरी करने में काम आती है

थामेल की सड़कें 11 बजे रात के बाद सुनसान और डांस बार शबाब पर होते हैं। और इन बार्स में एजेंट हर तरीके की सर्विस ऑफर करते हैं।

सुशीला वैश्यालय से लौटी थी, इसिलिए इस बात की उम्मीद करना कि उसके गांव वाले उसे अपना लेंगे महज़ एक आदर्शवादी कल्पना है। और ठीक उम्मीद के मुताबिक काठमांडू से करीब 75 किमी दूर सिंधुपालचौक गांव के गांववालों ने सुशीला को अपने ही गांव में रहने की इजाज़त नहीं दी।

फिर से एकबार उसी एजेंट का सहारा था। वो एजेंट सुशीला को काठमांडू के टूरिस्ट एरिया थमेल के एक मसाज पार्लर में ले आया। और बदले  में शुरुआती 3 महीने की सुशीला की तन्ख्वाह अपने नाम करवा ली। कोई और चारा होता तो शायद ये सौदा उसे कतई मंज़ूर ना होता। हां एक कसक ज़रूर साथ होती थी सुशीला के साथ कि काश वो ज़ख्म के निशान उसके बदन पर ना होते तो वो इससे बहुत ज़्यादा कमा सकती थी।

सुशीला के क्लाइंट्स ज़्यादातर साउथ एशिया से होते थे। वो अगर कॉन्डम का इस्तेमाल करने को कहती, तो क्लाइंट्स उसे वो 500 रुपये भी नहीं  देते थे जो उसके ज़ख्म के निशान के बाद भी उसे मिल जाया करते थे। वहीं पार्लर में सुशीला के साथ काम कर रही दूसरी महिलाओं को 5000 तक मिलते थे।

इन पार्लर्स में ब्यूटी मसाज की भी सुविधा होती थी, लेकिन साउथ एशियन महिलाओं के लिए ये जगह मुफीद नहीं थी। हालांकि वेस्टर्न कंट्रीज़ से कुछ महिला ट्रेकर्स यहां बॉडी मसाज के लिए ज़रूर आती थी। इसिलिए मैं एक पार्लर में बॉडी मसाज के लिए गई। थापा को एक क्यूबिकल में भेजा गया और ये उसके लिए सेक्स वर्क से ज़्यादा पैसे कमाने का मौका था। मैंने मसाज के दौरान उससे बात करनी शुरु की। शाहरुख खान की फिल्म से लेकर बहुत सी दूसरी बातें करने के बाद मैं वो सवाल उससे पूछने लगी जिसके लिए मैं पार्लर गई थी।

 ”मैं डिमांड में नहीं हूं”  बस इतना कह पाई वो। अगर कुछ और बताया तो उसके साथ और भी बुरा हो सकता है, ये कहते हुए वो चुप हो गई। हालांकि बहुत ही स्वार्थी तरीके से पूछने पर उसने अपने ज़ख्म दिखाते हुए अपनी पूरी कहानी बयां कर दी।

पार्लर की मालकिन ने हमारी बातचीत बीच में ही रोक दी। किसी तीसरे ने हमारी बातचीत सुन ली थी और शिकायत कर चुका/चुकी थी। लेकिन सुशीला तबतक वो बातें मुझे बता चुकी थी जो मेरी तहकीकात को एक मकाम तक पहुंचाने के लिए काफी थी।

काठमांडू या भारत के लिए लास वेगस?

काठमांडू के थामेल की सड़कों पर रात 9 बजे के बाद खरीदने को सबकुछ होता है। थामेल की बार, रेस्टॉरेंट्स और पब्स से आती चकाचौंध रौशनी और संगीत भारतीय मर्दों को मिनी लास वेगस या एम्सटरडैम की झलक और एहसास देता है। थामेल की सड़कों पर भारतीय मर्दों का बर्ताव उन सारी संस्कृति और मर्यादा की बातों की धज्जियां उड़ाता है जिसकी ओट में वो अक्सर भारत के महान होने का दंभ भरते हैं।

सड़क चलते हुए लोगों को, हज़ारों दलाल जिनमें 14-15 साल के बच्चे भी शामिल होते हैं नाईट क्लब की सुविधाओं का लाभ उठाने का न्यौता देते हैं।

भारत-नेपाल सीमा चेकपोस्ट पर धानगढ़ी के गौरीफांटा में बना एक परामर्श केंद्र। इन केंद्रों का लक्ष्य महिला तस्करी को रोकना है, लेकिन तस्कर शायद ही इन रास्तों का इस्तेमाल करते हैं। इस चेकपोस्ट के बिल्कुल पास पीलीभीत(उत्तर प्रदेश) के जंगल हैं, जो तस्करों के लिए एक बहुत आसान रास्ता है।

अपने कुछ मर्द दोस्तों की मदद से मैं ऐसे कुछ बार में 11 बजे रात के बाद भी गई। तीन बाहरी लोगों के साथ एक अकेली लड़की होना मेरी तरफ ना तो किसी का ध्यान खीचता था ना ही मुझपर किसी को शक होता था। क्योंकि वहां आने वाले हज़ारों टूरिस्ट्स के लिए ये एक परंपरा जैसी थी। जहां वो महिलाओं या लड़कियों के साथ होटल रूम जाने से पहले ऐसे बार्स और पब्स में आते थे।

मैंने एक दलाल से पूछा कि क्या मेरी एक रिलेटिव के लिए स्कीन मिल सकती है? मैंने उसे बताया कि उसकी शादी होने वाली है लेकिन काफी बुरे तरीके से वो जल चुकी है। दलाल ने कहा “अगर आप 50000 डाउनपेमेंट करेंगी तो इंतज़ाम हो जाएगा।”

इसके बाद उस दलाल ने फोटो मांगी ताकि वो स्किन कलर मैच कर सके। उसने ब्लड ग्रुप और मेडिकल डॉक्यूमेंट की भी मांग की ताकि वो तसल्ली कर सके कि मैं फर्ज़ि खरीददार नहीं हूं। मैंने उसे एक फर्ज़ी डॉक्यूमेंट दी उस रिलेटिव के नाम की जो सच में थी ही नहीं।

दो दिन के बाद उस एजेंट का मेरे पास दुबारा फोन आया एडवांस पेमेंट के लिए और ये बताने के लिए कि स्किन सैंपल तैयार है।

दलालों की ज़ुबानी

काभ्रेपलाञ्चोक जिला के जिला जेल में सज़ा काट रहे 40 साल के एजेंट प्रेम बासगाी ने बताया-

स्किन बहुत डिमांड में है। 100 स्क्वायर इंच गोरी स्किन का टुकड़ा 50,000 से 1,00,000 तक में बिकती है दिल्ली और मुंबई में। कोई एक एजेंट औरतों को भारत-नेपाल बॉर्डर तक ले जाता है। उस बॉर्डर से कोई दूसरा एजेंट महिलाओं को भारत लाता है और किसी और एजेंट को सौंप देता है। और तीसरा एजेंट ही स्कीन निकालने की पूरी प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाता है। महिलाओं से लिखित में ये ले लिया जाता है कि उन्होंने स्कीन डोनेट किया है ना की बेचा है।”

प्रेम बासगाई को पुलिस ने एक साल पहले किडनी के तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया था।

ये तस्वीर काभ्रेपलाञ्चोक में प्रेम बास्गाई के पहले शिकार की है। इन्होंने 20,000 में अपनी किडनी बेच दी। बास्गाई ने इन्हें झांसा दिया था कि किडनी दुबारा उग आएगी।अब पैसे खत्म हो चुके हैं और देसी शराब की लत लग चुकी है। इन्होंने बताया कि ”कुछ NGO वालों ने वादा किया था कि मेरे बच्चों को मुफ्त शिक्षा देंगे लेकिन वो बस फोटो खिंचवाने आते हैं और चले जाते हैं।”

मानव अंगो की तस्करी नेपाली कानून के अनुसार एक जुर्म है। भारत में ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिशूज़ रुल्स,2014 के अनुसार टिशूज़ और मानव अंगो को बेचना गैर कानूनी है।

कानून के मुताबिक ऐसा तभी  किया  जा सकता है जब डोनर रजिस्टर्ड हो।  हालांकि भारत और नेपाल दोनो देशों में फर्ज़ी दस्तावेज़ बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है। बास्गाई ने ये भी बताया कि यूनीवर्सिटी में पढ़ने वाले कुछ बच्चों ने नकली दस्तावेज़ बनाने में मदद की।

बास्गाई सिर्फ किडनी ही नहीं बल्कि 30 से 50 हज़ार की कीमत पर अगले एजेंट को स्किन भी स्पलाई करता था। और जिस इंसान के शरीर से बास्गाई स्किन लेता था उसे महज़ 5,000 रुपये देता था। इसके बाद  इस नेक्सस में शामिल आगे के एजेंट स्किन को छोटे छोटे पैथोलॉजिकल लैब्स में भेजते थे, जहां स्किन टिशू को प्रॉसेस किया जाता था।

छोटे लैब्स से प्रॉसेस होके स्किन टिशूज़ को बड़े लैब में भेजा जाता था (इनमें नामी लैब्स भी शामिल हैं)। उन लैब्स के पास स्किन प्रॉसेसिंग में निकले उत्पाद को अमेरिका निर्यात करने का लाइसेंस भी होता था। अमेरिका में इन उत्पादों को एलोडर्म या ऐसे ही प्रॉडक्ट में बदला जाता है। इन प्रॉडक्ट्स को आगे कई तरह की सर्जरी में इस्तेमाल किया जाता है। जैसे लिंग बढ़ाने,ब्रेस्ट एनलार्जमेंट,या होठों की सर्जरी के लिए, जिसके लिए भारत अभी एक बड़ा मार्केट है।

इंंसान के स्किन टिशूज़ की तस्करी के बिज़नेस में इतने पैसे मिलते हैं कि बड़ी संख्या में लोग इसे आज़मा रहे हैं। बास्गाई के मुताबिक शुरुआत में बहुत कम ही लोग थे जो इंडिया में मानव अंगों की तस्करी करते थे। लेकिन अब बहुत लोग हो गए हैं।

 ”इन नेटवर्क्स के कई लेवल हैं। ये सबको पता है कि काभ्रेपलाञ्चोक  से 300 किडनियों की तस्करी की गई थी, लेकिन अभी तक महज़ 3 केस ही रजिस्टर किए जा सके हैं। लोगों को ये समझाना पड़ेगा कि उनके स्किन को बेचा जा रहा है और ये गैरकानूनी है तभी जाके हो सकता है कुछ केसेज़ रजिस्टर हो पाएं। और आज तक एक भी कंप्लेन नहीं दायर की गई है”- पूजा सिंह, पुलिस अधिक्षक, काभ्रेपलाञ्चोक 

काभ्रेपलाञ्चोक के लोग पुलिस या मीडिया से बिल्कुल बात नहीं करना चाहते हैं। वो तस्करों/दलालों को बचाते हैं क्योंकि यही तस्कर उनको मानव अंगो के एवज में पैसे देते हैं। अगर कभी इन्होंने बताने कि कोशिश भी की तो लोकल एजेंट्स इन्हें इनके घर से ढूंढ निकालेंगे।

भारत के वैश्यालय हैं स्किन तस्करी की जड़

”किसकी हिम्मत है कि कंप्लेन करे? हमने ऐसी परिस्थितियां और ऐसे जगह देखे हैं जहां ज़िंदगी की कीमत सेक्स की चाह से ज़्यादा नहीं होती। मैंने अपनी आंखों से देखा है कैसे उन लड़कियों को मार के गटर में फेक दिया जाता था जो क्लाइंट को  एंटरटेन करने को मना करती थी या भागने की कोशिश करती थी। एक कस्टमर ने मेरे 2 साल के बेटे की जीभ सिगरेट से जला दी। वो अब सात साल का है लेकिन ठीक से नहीं बोल पाता। जब हमें वहां से छुड़ाकर लाया गया था रिहैबिलिटेशन सेंटर में तो हममें से कोई भी अपने अतीत के बारे में बात नहीं करती थी। हम बस कोशिश करते हैं कि सब भूल जाएं। हम अपने आप से एक झूठ बोलने की कोशिश करते हैं कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं।” – रेखा की ज़ुबानी, उम्र 30 के पार, रेखा की किडनी बेच दी गई थी और उसके बाद मुंबई और कोलकाता के वैश्यालयों में भेज दिया गया था।

कुसुम श्रेष्टा, उम्र 40वें दशक में, ने भी  काठमांडू से 62 किमी दूर नुवाकोट में अपनी स्किन एक एजेंट को बेच दी थी। कुसुम बताती हैं कि एजेंट्स के नेटवर्क इतने मज़बूत होते हैं कि अगर किसी ने पुलिस में जाने की हिम्मत की तो उसका अंजाम उसके पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है।

शरीर से स्किन निकालने से पहले अक्सर महिलाओं को ड्रग दे दिया जाता था। लड़कियों को बेहोश करना आम बात थी। अगर किसी क्लाइंट को कुछ अलग या एडवेंचरस ट्राय करना होता था तो लड़कियों को बेहोश करके बेड से बांध दिया जाता था। लड़कियों में इतना डर होता था कि अगर किसीको बेहोश कर स्किन निकाल लिया जाता था तो होश में आने के बाद सबसे पहले वो अपनी जान बचाने के लिए भागती थी। इस बात की फिक्र बाद में होती थी कि उसके बदन से चमड़ी निकाल ली गई है। मर्दों की अजीब-अजीब कामेच्छाएं होती हैं। और वो लड़की यही सोचती है कि उसके क्लाइंट ने ही ऐसा किया है उसके साथ। 

अक्सर आस-पास के परिवार छोटे-मोटे काम धंधों के लिए भी इन्हीं एजेंट्स पर आश्रित होते हैं। कई बार पीड़ित ही ट्रैफिकर बन जाते हैं। बास्गाई के मामले में भी ऐसा ही हुआ। बास्गाई और उसकी बीवी ने अपनी किडनी बेच दी थी। जब उन्हें ये पता चला कि मानव अंगों की तस्करी से काफी पैसा कमाया जा सकता है तो वो इसी बिज़नेस में आ गएं। उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाना शुरु किया कि एक ज़िंदा रहने के लिए एक किडनी काफी है।- सतीश शर्मा, फोरम ऑफ पीपल्स राइट्स, काठमांडू।

श्रेष्ठा और कई महिलाओं की चमड़ी महज़ कुछ पैसों के एवज में दलालों ने खरीद ली।

सतीश ने ये भी बताया कि स्किन के इस पूरे बिज़नेस में महिलाओं की तस्करी इसलिए ज़्यादा होती है क्योंकि उनकी त्वचा पुरुषों के अपेक्षा बेहतर स्थिति में होती है,क्योंकि वो सिगरेट या शराब नहीं पीती हैं। नेपाली महिलाओं को तस्करी में खासकर इसलिए डाला जाता है क्योंकि वो गोरी होती हैं और उनकी त्वचा बिलकुल सफेद नस्ल के लोगों की तरह होती है।

शक्ति समुहा NGO की कार्यकर्ता जिवंती ने बताया “स्किन ट्रैफिकिंग के मामले सबसे पहले मैंने सिंधुपालचौक में देखे। स्थानीय लोगों में से कुछ ने बताया कि कॉस्मेटिक सर्जरी के लिए मानव त्वचा की तस्करी की जा रही है। हमने बहुत कोशिश की इस मामले में  कुछ करने की लेकिन लोग डर की वजह से कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं  हुए।”

चरम पर भारत की कॉस्मेटिक सर्जरी इंडस्ट्री

ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 2005 से 2007 के बीच कॉस्मेटिक सर्जरी इंडस्ट्री के रेवेन्यू में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। अनुमान के मुताबिक पूरी कॉस्मेटिक इंडस्ट्री 110 मिलियन डॉलर की है। ऐलोडर्म या इंसानी त्वचा की बिक्री में 2002 से पूरे विश्व में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

नाम ना बताने की शर्त पर इंसानी त्वचा से बने प्रॉडक्ट्स को डिस्ट्रिब्यूट करने वाली कंपनी के एक कर्मचारी ने बताया कि अमेरिका में बड़े टिशू प्रॉसेसर्स के बीच काफी मुकाबला है।

अपने पेपर ह्यूमन सेल्स एंड टिशूज़: द नीड फॉर ए ग्लोबल एथिकल फ्रेमवर्क, में जीन पॉल पीरने ने लिखा था-

सॉलिड अंगो (जैसे किडनी) की तस्करी के मुकाबले गरीब देशों से मानव त्वचा की तस्करी सबसे ज़्यादा होती है। जिसे बाद में अमीर देशों और विकासशील देशों के प्राइवेट क्लिनिक्स पर बेचा जाता है। 

भारत-नेपाल सीमा पर गाहे-बगाहे ही कहीं सुरक्षा जांच होती है।1800 किमी लंबी सरहद में घुसना काफी आसान है।

वो शवों से, टिशू बैंक्स, पैथोलॉजिकल लैब्स, और ऐसे बायोटेक्नोलॉजी फर्म्स जहां टिशू बैंक नहीं होता है वहां से स्किन टिशू लेते हैं। पॉल बताते हैं कि भारत में बस दो-तिहाई मेडिकल संस्थाओं के पास ही टिशू बैंक है, लेकिन इन बैंक्स के पास जो टिशू होती है वो बहुत ही गंभीर बीमारियों जैसे कि 90% जल जाने पर इस्तेमाल में लाइ जाती है। “भारत से कच्चा माल अमेरिका भेजा जाता है,अमेरिका में प्रॉडक्ट तैयार किया जाता है और दुबारा भारत में बेच दिया जाता है। पूरा मार्केट ऐसे ही चल रहा है।” -जीन पॉल

ज़ोखिम भरा व्यवसाय

टिशू उत्पादों का पेटेंट रखने वाली कंपनी LifeCell का एक प्रॉडक्ट एलोडर्म की बिक्री में हर साल 41% और मुनाफे में हर साल 72% बढ़ोतरी हो रही है। एलोडर्म की बढ़ती बिक्री की वजह से कंपनी लगातार मज़बूत हो रही है। LifeCell के हिसाब से  ”उनके उत्पाद US American Association of Tissue Banks से जुड़े टिशू बैंक से मिले मानव त्वचा के टिशू से ही तैयार की जाती है।”

LifeCell की तरह 13 और कंपनियां त्वचा और टिशू के उत्पाद बनाती है। इनमें से सभी FDA(फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) के मानव अंगो से बनने वाले उत्पाद की सूची में आती है जिसे 21 CFR 1271 (HCT/Ps) से नियंत्रित किया जाता है।

इससे साफ पता चलता है कि जिन कंपनियों के पास टिशू उत्पाद बनाने का पेटेंट है वो साफ छवी के नहीं हैं। सवाल उठता है कि ये भारत और नेपाल से कैसे संबंधित है? रिपोर्ट्स की मानें तो ऐसी बहुत सी कंपनियों के लिए कच्चा माल भारत और नेपाल जैसे देशों से जाता है और भारत और नेपाल के वैश्यालयों से ही इसकी शुरुआत होती है। इस कंपनी के खिलाफ 2006 में काफी मुकद्दमें दायर किये गए थे। आरोप लगा था किसी मृत के परिवार वालों की इजाज़त के बिना शव से टिशू निकाल लेने का। ब्रुकलिन डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी ने मामले की पड़ताल की और चार लोगों को दोषी पाया गया। हालांकि LifeCell ने पूरी तहकीकात में मदद की और अपने उत्पादों को रद्द कर दिया लेकिन जांच से पहले तक ये कंपनी भी दोषी टिशू बैंक्स से कच्चा माल लेने का दोषी रहा।

अमेरिकन असोसिएशन ऑफ टिशू बैंक के उपाध्यक्ष(नीती), स्कॉट ए ब्रुबाकर बताते हैं: “हालांकि मानव शरीर से निकले दूसरी चीजें  जैसे-जैसे रक्त कोशिका, प्लेटलेट्स आदि पर नज़र बनाए रखने के लिए बकायदा एक सिस्टम है लेकिन अभी वो स्किन टिशू के लिए इस्तेमाल में नहीं है।”

नेपाल के काभ्रेपलाञ्चोक, नुवाकोट और सिंधुपालचौक गांव मानव अंगो की तस्करी के मुख्य केंद्र बन चुके हैं।

नामी गिरामी मेडिकल संस्था ये दावा करती है कि एलोडर्म और ऐसे ही अन्य मानव त्वचा टिशू से निर्मित उत्पाद (जो ये कंपनियां आयात करती हैं) अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन(FDA) के द्वारा अप्रूव्ड होती है। लेकिन FDA ने बार-बार ये कहा है कि उनके पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे कि इन उत्पादों के श्रोत का पता चल पाए।

वहीं भारतीय और नेपाली सरकार इस मुद्दे पर बिल्कुल दिशाहीन है कि कैसे ये देश इन प्रॉडक्ट्स के सप्लायर बन गए हैं। और पूरे नेटवर्क में सेंध लगाना इतना मुश्किल कैसे हो गया है कि FDA भी मदद नहीं कर पा रहा है।

भारत,नेपाल और अमेरिका की इस कहानी और अमीरों की शौक के बीच नेपाल और भारत के वैश्यालयों में सैंकड़ों महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं और ये पूरी इंडस्ट्री तेज़ी से बढ़ रही है।

(पीड़ितों का नाम बदला गया है)

सभी फोटो लेखक द्वारा प्रकाशित।
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