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भगत सिंह के साथ आज ‘पाश’ को भी याद करने का दिन है

23 मार्च, इस तारीख का इतिहास हमें याद दिलाता है कि किस तरह से कभी साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा तो कभी कट्टरपंथी ताकतों द्वारा हमेशा विचारों को कुचलने की नाकाम कोशिशें की जाती रही हैं। ये ताकतें विचारों के सामर्थ्य से इतना डरती हैं कि उनका जवाब नहीं दे पाने कि स्तिथि में बौखला जाती हैं और जब कुछ नहीं सूझता तो तर्क करने वालों कि हत्या करने से भी ये नहीं चूकती।

इतिहास में इस तारीख पर अलग-अलग दो बार विचारों को ख़त्म करने की नाकाम कोशिशें की गयी लेकिन सच तो यही है कि विचारों को कौन मार पाया है। भगत सिंह ने कहा था कि “किसी व्यक्ति विशेष को तो मारा जा सकता है लेकिन उसके विचारों को नहीं। बड़े-बड़े साम्राज्य समाप्त हो जाते हैं लेकिन विचार हमेशा जिंदा रहते हैं।“

इनमें पहला नाम हैं भगत सिंह का। इनका चेहरा हमारे जवान जोश का एक ऐतिहासिक प्रतीक बन कर उभरा है। यह क्रांतिकारी जुझारू युवा इन्कलाब का नारा भी लगाता था और इसी के साथ इस नारे को विचारों की शक्ति से और समृद्ध भी करता था। भगत सिंह को वर्ष 1931 में, इसी दिन आनन-फानन में ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी दे दी गयी।

वहीं दूसरा नाम हैं अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश का। इस युवा ने भी बहुत कम उम्र में विचारों की ताकत का अहसास कर लिया था और मात्र 20 वर्ष कि उम्र में ही इस युवा का पहला कविता संग्रह लौह कथा प्रकाशित हुआ। पाश की प्रेरणा भगत सिंह रहे और कभी-कभी इस क्रांतिकारी कवि की तुलना चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह से की जाती रही। इनकी भी आज ही के दिन सन 1988 में खालिस्तानी चरमपंथियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी।

लेकिन इन दोनों हत्याओं से ना भगत सिंह मरे और ना ही पाश। उनके शब्द, उनके विचार आज भी हमारे साथ हैं और इस समय में जहां फिर कभी ऐसी परिस्तिथियां खड़ी होंगी, हमारे पास पाश और भगत सिंह होंगे उनसे लड़ने के लिये।

आज के दिन पाश की यह कविता हमें जरुर पढ़नी चाहिये जिसे वो भगत सिंह को फांसी दिए जाने के बाद के दृश्य की कल्पना करते हुये लिखते हैं और इसका शीर्षक हैं 23 मार्च

उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग, किसी दृश्य की तरह बचे

ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की, देश सारा बच रहा बाक़ी

उसके चले जाने के बाद, उसकी शहादत के बाद

अपने भीतर खुलती खिड़की में, लोगों की आवाज़ें जम गयीं

उसकी शहादत के बाद, देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने

अपने चेहरे से आँसू नहीं, नाक पोंछी

गला साफ़ कर बोलने की, बोलते ही जाने की मशक की

उससे सम्बन्धित अपनी उस शहादत के बाद, लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए

कपड़े की महक की तरह बिखर गया, शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह

लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था। – अवतार सिंह संधू ‘पाश’ 

हितेश Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।

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