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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की इन तस्वीरों से हमें डरना चाहिए

अगर आप न्यूज़ चैनलों के प्राइम टाइम कार्यक्रमों के दर्शक हैं और अभी पाठक की भूमिका निभा रहे हैं तो आप अवश्य ही इस बात से अवगत होंगे कि आज तक जितनी भी सरकारें आई हैं उन्हें लाने वाले अधिकांश गांवों के मतदाता रहे हैं। आज भी देश में शहरी मतदाता घर से निकल कर मतदान करने में हिचकता है। शायद इसीलिए नेताओं की जुबान से गांव और गरीब जैसे शब्द चुनाव के दौरान सबसे ज़्यादा सुनने को मिलते हैं। किसान जिसकी बात नेहरु, शास्त्री, इंदिरा, अटल और मोदी, लगभग देश के हर नेता ने की है उसकी क्या स्थिति है ये गांव में देख के आइये, अगर नेता और राजनीति पर से भरोसा न उठ गया तो बोलिएगा।

समृद्धि या विकास तो तब एक ध्येय होता है जब व्यक्ति स्वस्थ रहे और अपनी शत प्रतिशत क्षमता से काम करे। 14 मार्च 2017 को यूथ की आवाज़ इसी सिलसिले में पहुँच गया बादुरी बाज़ार स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र। यह स्वास्थ्य केंद्र जनपद महाराजगंज उत्तर प्रदेश में आता है। केंद्र के बाहर साफ़ सफाई संतुष्ट करने वाली थी। सामने एक पोखर भी था जिसका पानी पीने लायक तो नहीं था पर देखते ही मन हर लिया था। केंद्र के अन्दर यदि आप प्रवेश करेंगे तो आपके बाएँ हाथ पर एक खिड़की पड़ेगी जहां पर दवाइयों का वितरण होता है। ये दवाइयां भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं। जो भी डॉक्टर केंद्र पर रहता है वो मरीजों को इन्हीं दवाइयों में से दवाई लिख कर देता है। जब वहां पर मौजूद फार्मासिस्ट से बात की गई तो उन्होंने बताया कि, “यहां दवाइयां तो रहती हैं। पर रेबीज के टीकाकरण के लिए जो दवाई प्रयोग में लाई जाती है, वो आज कल में खत्म हो जाएगी।”

प्रा. स्वास्थ्य केंद्र बादुरी बाज़ार, महाराजगंज उ.प्र.

जब इनसे पूछा गया कि क्या यहां पर जेनेरिक दवाइयां वितरित की जाती हैं? तो, फार्मासिस्ट को पता नहीं समझ आया भी या नहीं, पहली बार में जवाब ही नहीं दे पाए। पुनः पूछने पर उनका जवाब आया, “जो दवा सरकार भेजवा रही है, वो दवा दी जा रहीं हैं।”

जब पूछा गया कि कितने समय में रेबीज की दवाई आ जाएगी तो फार्मासिस्ट ने बोला –“एक हफ्ता लग जाएगा।”

फार्मासिस्ट से जब यह पूछा गया कि ये दवाई कहां से आती है और इतना समय क्यूं लग जाता है, तो उन्होंने बताया कि या तो 10-12 किलोमीटर दूर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से आएगी या फिर ज़िला चिकित्सालय महाराजगंज से। समय के बारे में वो बस ये बोल पाए कि सरकारी काम है, हम भी क्या ही कर सकते हैं। फार्मासिस्ट महोदय की नियुक्ति अभी कुछ महीने पहले ही वहां पर हुई है।

12 किलोमीटर और 7 दिन। गणित पढ़े हो तो डिलीवरी की गति निकाल लीजिए!!

फिर वहां पर 2009 से नियुक्त MOIC (मेडिकल ऑफिसर इनचार्ज) डॉ. शम्सुल होडा से बात की गई। उन्होंने बताया कि, “यहां पर लोग बुखार, चर्म रोग, लूज़ मोशन, सर्दी खांसी जैसी आम बीमारियों से ज्यादा परेशान रहते हैं।”

जब उनसे पूछा गया कि कुपोषण की कितनी शिकायतें आती हैं? तो उन्होंने कहा, “कुपोषण के मरीज़ तो इस इलाके में कम हैं। पिछले 6 माह में बस एक ही बच्चा कुपोषण का शिकार था।”

खून तथा बाकी जांच की सुविधा भी इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध है। जिस दिन यूथ की आवाज़ वहां पहुंचा उस दिन तो कक्ष बंद पड़ा था। पर जब कुछ मरीजों से बात की गई तो उनका जवाब सकारात्मक था। उन्होंने बताया कि जांच तो यहीं पर हो जाती है और ज़्यादा परेशानी भी नहीं उठानी पड़ती है।

डॉ शम्सुल ने बताया कि वह रोज़ 100 मरीज़ देखते हैं। उनकी बात मानें तो उस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर अभी 2 डॉक्टरों की नियुक्ति है। 14 मार्च 2017 को सुबह 11:30 बजे तक सिर्फ डॉ शम्सुल ही वहां पर उपस्थित थे। दूसरे डॉक्टर साहब केंद्र पर से नदारद थे।

बादुरी बाज़ार प्रा. स्वास्थ्य केंद्र का खस्ता हाल डिलिवरी रूम.

जब उन्होंने बताया कि यहां पर डिलीवरी की सुविधा है तो हमने डिलीवरी रूम का भी मुआयना किया। हमने किसी को इस बात से अवगत नहीं कराया कि हम डिलीवरी रूम की तरफ जा रहे हैं।  ये डिलीवरी रूम स्वास्थ्य केंद्र से थोड़ा सा आगे बाएं हाथ पर स्थित है। जब हमने कक्ष में प्रवेश किया तो वहां की स्थिति चौंका देने वाली थी। इस रूम में भला कैसे किसी बच्चे का जन्म हो सकता है? ये तस्वीरें उसी डिलीवरी कक्ष की हैं। ना तो साफ़ सफाई और ना ही बिजली का कोई ख़ास बंदोबस्त। जब बेसिन पर लगे नल को चला कर देखा, तो पानी भी नहीं आ रहा था।

वहां उपस्थित दाई से पूछा गया कि पानी की समस्या कितने दिनों से है तो उन्होंने बोला कि करीबन 15 दिन से। जब बात उठी कि इसे सही क्यूं नहीं करवाया गया तो पता चला कि 15 दिन पहले नल ठीक करने वाले को बुलाया गया था। उसने बोला कि टंकी से आने वाली पाइप में कुछ दिक्कत है, जिसे अगले दिन ही सही किया का पाएगा। उसके बाद से ना किसी ने उस नल ठीक करने वाले को बुलाया और ना ही कोई और प्रयास किया गया। पाठक अब खुद ही सोचें कि किस स्थिति में बच्चों को जन्म दिया जा रहा है और क्यूं हमारा देश और हमारे गांवों में इतने नवजात बच्चे मर जाते हैं और बहुत सी माएं जीवित नहीं रह पाती हैं। केंद्र पर 3 नर्स की नियुक्ति है जिनमें से 1 नर्स मेडिकल लीव पर है और बाकी दोनों 14 को वहां मौजूद नहीं थीं। जब पूछा गया कि बाकी दोनों क्यूं नहीं उपस्थित हैं तो वहां के कर्मचारियों ने बोला कि होली का पर्व था कल, तो शायद इसीलिए लेट हो गया हो।

इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 12 स्थायी कर्मचारी और 3 अस्थाई कर्मचारी हैं। जिनमें से 14 मार्च 2017 को 12 बजे तक सिर्फ 4 उपस्थित थे। जब पूछा गया कि बाकी कहां हैं तो डॉ. शम्सुल ने बताया कि, “बाकी लोग फील्ड विजिट पे निकले हुए हैं।”

केंद्र पर इन्वर्टर और जनरेटर दोनों की व्यवस्था थी पर एम्बुलेंस गायब थी। यदि एम्बुलेंस की आवश्यकता है तो 10-12 किलोमीटर दूर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से बुलानी पड़ती है।

इसी बीच मोदी सरकार नयी राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना को लाने का विचार कर रही और कैबिनेट ने प्रस्ताव को मंजूरी भी दे दी है। मोदी जी, लेते तो आप आएँगे और आप ही क्यूं? हर सरकार कुछ न कुछ लाती ही है, पर इस योजना का क्रियान्वन किस तरह से आप करेंगे ये देखने की बात होगी।

डिलीवरी कक्ष के बाहर ही 52 साल की एक वृद्धा खड़ी थी, जब उनसे पूछा गया कि इस कक्ष की स्थिति तो बड़ी बुरी है, लोगों को कोई दिक्कत नहीं होती क्या? तो उनका जवाब था- “अरे ई ता तबहूं बहुते बढ़िया बा, 5 साल पाहिले ऐसन कच्छु नइखे रहल।”

मतलब ये फिर भी काफी बढ़िया है, पांच साल पहले ऐसा कुछ भी नहीं था। [envoke_twitter_link]विकास के सबके अपने पैमाने हैं, जानते रहिये और समझते रहिये।[/envoke_twitter_link]

श्रेयस  Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।

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