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ना बिजली ना सड़क ना टॉयलेट ना पानी, फिर भी इस गांव में रह रहें 77 परिवार

गांव के संदर्भ में आज़ादी के बाद से हर दौर में जो भी चर्चाएं हुई हैं उनका केंद्र बस एक ही रहा है। ग्रामीण भारत का संघर्ष, गांवों में असुविधा, गांव से पलायन, कृषि व्यवस्था से रोज़गार के तौर पर खत्म होता भरोसा, ग्रामीण युवाओं की बेरोज़गारी, अशिक्षा और जातिवाद का दंश। हममें से बहुत लोग ग्रामीण पृष्ठभूमी के बिना भी अपनी राय बना लेते हैं गांव से जुड़े अधिकतर मसलों पर।

आइये आज आपको एक ऐसे ही गांव के बारे में बताएं जो UP के वर्तमान मुख्यमंत्री के संसदीय क्षेत्र से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर है। ये है “सोनचिरैया” गांव। मतलब सोने कि चिड़ियां। पोस्ट- कोल्हुई बाजार, जनपद- महाराजगंज, उत्तर प्रदेश।

इस गांव में कुल 77 घर हैं, जिनमें से 45 घरों में आज भी टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है। इन 45 घरों के लोग आज भी बाहर खुले में शौच करते हैं, फिर चाहे वो किसी भी लिंग के क्यूँ न हों। जब थोड़ी और पूछताछ की गई तो पता चला कि सर्वे करने वाली टीम आई तो थी पर ब्लॉक से ही सलाम-दुआ करके निकल गई।

यहां नलों में जो पानी आता है वो इतना दूषित है कि सबसे ज्यादा बीमारियों की जो शिकायत आती है वो पानी से ही होती है। पेशे से शिक्षक हरिहर प्रसाद ने बताया कि जो परिवार वाटर प्यूरीफायर लगवा सकते हैं उन सभी के घर में आप प्यूरीफायर पाएंगे । अगर प्यूरीफायर नहीं है तो बिसलेरी का कंटेनर अब कुल्होई बाजार में आने लगा है। पैसा दीजिए और अच्छा पानी पीजिए । पर नल की दशा नहीं सुधरेगी।  वहाँ के लोगों की मानें तो शिकायत करने के बाद भी प्रशासन इनकी बात को अनदेखा कर देता है ।

शिक्षा का बड़ा हल्ला मचा रहता है पूरे देश में। पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया। क्या लाइन है। असल स्थिति बड़ी बुरी है। टॉयलेट तो है पर नल नहीं है। लेट्रिन से सीट भरी पड़ी है। मुश्किल से 10-12 बच्चे रोज़ स्कूल आते हैं जबकि दाखिलों की संख्या 100 तक पहुँचती है। कक्षों की स्थिति चित्र में आप देख ही रहे हैं।

झूलों की हालत देख लीजिए, भला एक छोटा बच्चा निराश होकर घर न लौटेगा ? कब तक हम ऐसे ही निराश करते रहेंगे अपने युवाओं को ? अपने देश को ? अति तो हो गई जब पता चला कि स्कूल में बच्चे नहीं आते थे तो एक बिल्डिंग किराए पर दे दी गई है। मतलब अब आप समझ लीजिए कि कितना पढ़ रहा है इंडिया और कितना बढ़ रहा है इंडिया।

किसान की बात हर नेता करता है। गृहमंत्री ने किसानी में ज़्यादा लोगों को बोझ तक बता दिया। इस गाँव के किसान भी अब नौकरी की तलाश में हैं। और जो थोड़ा बहुत किसानी कर भी रहे हैं वो साथ में पशु पालन का व्यवसाय शुरू कर चुके हैं क्यूंकि किसानी पर निर्भर रह कर कुछ होना जाना नहीं है।

खेतिहर हरगोविंद राय ने बताया कि गांव के क्रय केंद्र पर इतना भ्रष्टाचार है कि वहां पर बैठने वाले सरकारी कर्मचारी हमारी फसल खरीदते ही नहीं हैं। बिचौलियों का यहां प्रकोप है। तंत्र इस तरह से दूषित हो चुका है कि जब तक आप किसी नेता या पत्रकार को नहीं जानते तब तक आप का काम हो ही नहीं सकता । अब खुद हु बताइए, क्यूं न भागे किसान शहर की ओर? क्यूं न वो कोई “वाइट कालर” काम करना चाहे जिसमें उसको इतनी परेशानियां न झेलनी पड़ें ?

बंद पड़ी चीनी मिल

गोरखपुर से सोनचिरैया के बीच ना तो कोई इंडस्ट्री है और ना ही कोई कारखाना। रोज़गार कहां से मिले ? कुछ सालों पहले तक एक चीनी मिल हुआ करती थी। नेताओं के बीच लड़ाई ने उसे भी बंद करवा दिया। पिछले 10 साल से चीनी मिल बंद पड़ी है। गांव में जब रोज़गार के मौके नहीं मिलेंगे तो शहरों की ओर गांव के लोगों का पलायन करना स्वाभाविक है।

बिजली की स्थिति इस गांव में देख लीजिए। एक हफ्ते सुबह 9 से शाम को 5 बजे तक रहती है। और दूसरे हफ्ते भोर में 3 से सुबह 6 बजे तक और फिर सुबह 9 बजे से शाम को शाम को 5 बजे तक। गाँव में शायद ही किसी के घर पर मीटर लगा हुआ हो और बिजली का बिल सालों में एक बार आता है ।

सामाजिक विकास बस नाम मात्र का है, आज भी जात-पात व्याप्त है और निचली जातियों का कोई ख़ास विकास नहीं हो पाया है। आज भी वो अपने अस्तित्व की तलाश में ही मानों लगे हुए हैं।

वहां के लोगों की कुछ मांग थीं। बताते चलता हूं। गांव के ही निवासी गिरीश चन्द्र के अनुसार सबसे बड़ी मांग यह थी कि 14 घंटे किसानों को बिजली मिले ताकि वे खेत की तराई कर सकें। दूसरी कि क्रय केंद्र की स्थिति में त्वरित बदलाव होना चाहिए। बिचौलियों पर लगाम लगाई जाए और क्रेडिट की जगह सीधे पैसा खाते में डाला जाए। पानी के लिए यदि हर घर को सहायता न प्राप्त हो सके तो भी सामूहिक स्तर पर इसका निदान होना चाहिए।

पानी की समस्या तो हमारे समाज ने ही खड़ी की है। तालाब, कुआं, नहर, पोखरा, अब इन सब में से कुछ भी नहीं दिखता है। हमने इनकी उपयोगिता को नज़रंदाज़ किया जिसका खामियाज़ा आज हम भुगत रहे हैं। इंसान ने अपनी समस्याओं का सृजन खुद ही किया है। कुछ सरकार ने तो कुछ आमलोगों ने।

गांव की खस्ताहाल सड़क

बधाई हो, आप गांव की सैर कर आए। वो भी बिना हचकों के। गांव की रोड की स्थिति दिखाते दिखाते, अलविदा।

श्रेयस Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।

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