धारावाहिक शुरू से ही टेलीविज़न की आत्मा रहा है। धारावाहिकों ने परिवार को एक साथ बैठ कर कुछ समय बिताने का सुनहरा अवसर प्रदान किया है। धारावाहिकों ने कितने परिवार जोड़े तो कितने परिवारों में फूट डालने का भी काम किया है। लेकिन पहले के धारावाहिकों व आज के धारावाहिकों में बहुत अंतर आया है।
शुरुआती दौर में आए धारावाहिक ‘हम लोग’ को लेकर निचले और माध्यम वर्ग के लोगों में अलग ही जूनून था। ‘हम लोग’ की तरह ही 1986 में प्रसारित होने वाले ‘बुनियाद’ ने भी लोगों के बीच में खासी जगह बनाई थी। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित यह धारावाहिक भारत व पाकिस्तान बंटवारे पर आधारित था। इसकी लोकप्रियता इतनी ज़्यादा थी कि इसको भारत व पाकिस्तान दोनों जगहों पर देखा जाता था। सन् 1988 व 1989 में शुरू हुए रामायण व महाभारत ने आस्था के ज़रिये लोगों को जोड़ने का अभूतपूर्व काम किया। कानपुर की सीमा बताती हैं कि इस महाभारत को लेकर इतनी ज़्यादा आस्था थी कि इसको देखने से पहले लगभग पूरा मोहल्ला एक साथ हाथ-मुंह धोकर अगरबती जलाने के बाद इसे देखना शुरू करता था।
भारतीय टेलीविज़न का पहला सुपर हीरो ‘शक्तिमान’ था। अमन ने बताया कि पहले ये रविवार को नहीं आता था और यह बच्चों में इतना ज़्यादा लोकप्रिय था कि हम लोग इसको देखने के लिए घर में स्कूल न जाने के तरह-तरह के बहाने बनाते थे। जिसके कुछ समय बाद से ये रविवार को आने लगा। इस धारावाहिक का नकारात्मक असर भी पड़ा कि बच्चे छत से ये कह के नीचे गिर जाते थे कि शक्तिमान आकर बचा लेगा और इसके चलते कुछ बच्चों की मौत तक हो गई थी।
सीमा जी ने बताया कि ‘कसौटी जिंदगी की’ देखने के लिए मेरे पति मना किया करते थे तो मैं पड़ोस के घर में बहाने से जाकर देखा करती थी। ‘बालिका वधू’ ने तो समाज में अपनी एक अलग ही छाप बना दी थी। इस धारावाहिक के बाद से समाज में बाल विवाह को लेकर काफी हद तक जागरूकता बढ़ी।
पहले के धारावाहिक ज़मीनी स्तर से जुड़ कर लोगों के बीच आते थे। धारावाहिक के किरदार हर घर का एक पसंदीदा सदस्य बन जाते थे। लेकिन आज के धारावाहिक दर्शकों को उस ज़मीनी स्तर से जोड़ पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। अब तो कई धारावाहिक मात्र विज्ञापन दाताओं के कहने पर ही चल रहे हैं। दर्शक भी पहले की तरह धारावाहिक को महसूस नहीं कर पा रहा है। आज धारावाहिक कब शुरू होते हैं और कब बंद हो जाते पता ही नहीं चलता है। पहले के धारावाहिकों ने महिलाओं के साथ पुरुषों और बच्चों हर वर्ग के दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया था, लेकिन आज के धारावाहिकों से बच्चे और पुरुष ज़्यादातर दूर होते ही नज़र आ रहे हैं। धारावाहिकों के प्रति दर्शकों की कम होती लोकप्रियता, आने वाले समय में टेलिविजन के लिए घातक साबित हो सकती है।
रोहित Youth Ki Awaaz हिंदी के फरवरी-मार्च 2017 बैच के इंटर्न हैं।