सन 2014 कीगर्मियां आ चुकी थी और बिजली ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए थे। इन्वर्टर भी कब तक साथ देता, बरसात के कोई आसार नहीं थे और मार्च बस बीता ही था। गांव भी लू की चपेट में थे। कूलर की गर्म हवा शरीर जलाने वाली रहती थी, कहां दिन बिताए जाएं यह बहुत बड़ी समस्या थी। बहरहाल इन सबके बीच रोज़मर्रा की ज़िंदगी भी चलनी थी।
मैं नॉर्वे से कुछ महीने पहले ही लौटा था, दानिश भी विदेश से वापस आ चुका था। दो-चार बार की स्काइप कॉल और इमेल्स के दरमियान ‘यूथ इन सोशल एक्शन’ नाम से एनजीओ रजिस्टर करवा लिया गया। छोटे-मोटे धरने, कैंडल मार्च, जिला प्रशासन से मिलकर जिले के बारे में लगातार कुछ न कुछ दिया जाता रहा। इमरान भी लोकल पत्रकारिता और खुद की तलाश के बीच कुछ न कुछ आइडियाज ले आता था, यही हाल सबका था।
फंडिंग की कोई गुंजाईश कहीं से नहीं थी, जो करना था हम लोगों को अपनी जेब से ही करना था।
बिजली के बिल बढ़ते जाते थे और सप्लाई काम होती जाती थी।बकायेदारों से वसूली के लिए बिजली विभाग लगातार कैंप लगाता था, लेकिन विभाग की स्थितियों में कोई सुधार नहीं दिखाई देता था। जो बिल भरते थे उनमे एक कुंठा और क्रोध था, जो नहीं भरते थे या चोरी करते थे वे चीजें मैनेज कर पा रहे थे। वोल्टेज फ्लक्चुएशन ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी थी। हम लोग परेशान थे इन सबसे, इसलिए इस पर कुछ करने की योजना बनाई गयी।
एक पुराने कागज पर दस-बारह सवाल लिखे गए जो बिजली सप्लाई और विभाग के बारे में कुछ जवाब तलाश सकते थे। मसलन जिले में कुल कितने कनेक्शन हैं, जिले में बिजली विभाग में कुल कितने कर्मचारी हैं और बिजली विभाग की कुल बकाया राशि कितनी है। हमने सोचा कि यदि हम केवल अपने ज़िले के बारे में जानकारी मांगते हैं तो कहीं इसे वैयक्तिक द्वेष का तरीका न समझा जाए, इसलिए पूरे प्रदेश के लिए ही सूचना मांग ली।
करीब साल भर तक अलग-अलग ज़िलों से सूचनाएं आती रही। हमने उस पर अख़बारों के लिए लेख लिखे, सोशल मीडिया पर लिखा और तत्कालीन मुख्यमंत्री कार्यालय और बिजली विभाग को चिट्ठी भेजी। उस पर कुछ खास नहीं हुआ, बयान कई बार आए। हमने अपने सुझाव लगातार लिखे, बताए और उन पर बहस की विभाग के लोगों से और विभाग के बाहर के लोगों से भी। आने वाले मंगलवार (11 अप्रैल) को गोविन्द और आज़ाद शक्ति सेवा संगठन के कुछ लोग रायबरेली जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को इस बाबत फिर ज्ञापन देने की तैयारी कर चुके हैं। पिछले मंगलवार को रामनवमी की छुट्टी थी इसलिए इसे अगली बार के लिए पास कर दिया गया था।
बहरहाल, आज 7 अप्रैल 2017 को वर्तमान उ.प्र. सरकार ने शहरों को चौबीस घंटे और गांवों को अट्ठारह घंटे बिजली देने की बात कही है। इसे 14 अप्रैल 2017 से लागू करने की योजना है। यदि इस फैसले का ढंग से पालन होता है, तो उत्तर प्रदेश के दिन कुछ तो बहुरेंगे ही। बाकी उम्मीद हम सब को तब भी थी और आज भी है।