बलरामपुर: उ०प्र० का एक जिला है; बलरामपुर जो की नेपाल सीमा से सटा हुआ है, जिसे भौगोलिक दृष्टि से तराई क्षेत्र कहा जाता है। यह जिला शैक्षणिक और आर्थिक रूप से अति पिछड़े जिलों की श्रेणी में आता है। यह घटना इसी जिले के एक छोटे से गाँव लखमा की है, जहाँ पर एक किसान परिवार रहता है; जिनके मुखिया जगदम्बा प्रसाद के पास मात्र एक एकड़ जमीन सरकारी पटटे के रूप में है। लगभग ५ वर्ष पूर्व इन्हें सिर और कंधे में दर्द की शिकायत हुयी तो इन्होंने इलाज करवाना शुरू किया, अंततः कोई फायदा न होने पर लखनऊ के विवेकानंद हॉस्पिटल में जांच करवाया तो पता चला की इन्हें सर्वाइकल स्पोंडिलिसिस नामक गंभीर बीमारी हो चुकी है। जिसका एकमात्र इलाज ऑपरेशन ही है। लेकिन इस गरीब परिवार के लिए इतना महंगा इलाज करवा पाना संभव न हुआ, क्योंकि इसका ऑपरेशन करवाने के लिए १५००००.००(एक लाख पचास हजार) रु० की आवश्यकता थी। अंततः इन्होंने सन् २०१४ में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को मन की बात कार्यक्रम के तहत एक पत्र भेजा और अपने इलाज हेतु आर्थिक सहायता हेतु अनुरोध किया। कुछ दिनों बाद इन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमे उल्लेख था की उपरोक्त के सन्दर्भ में राज्य सरकार के मुख्यसचिव को अवगत करा दिया गया है, और आपका यथोचित सहायता किया जायेगा। लेकिन लगभग एक वर्ष बीत जाने के बाद भी इन्हें कोई सहायता या आश्वासन राज्य सरकार से नहीं मिला। पुनः इन्होंने मन की बात में पत्र भेजा, तत्पश्चात करीब ६ माह बाद क्षेत्रीय लेखपाल ने सूचना दिया की आपको मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से आर्थिक सहायता हेतु मंजूरी मिल गयी है, इसलिये आप अपने इलाज का एस्टीमेट बनवाकर दें, क्योंकि उसी के आधार पर आपको इलाज हेतु पैसा जारी किया जायेगा।
गरीब अन्नदाता को यह यह जानकर बहुत ख़ुशी हुयी की शासन द्वारा उनकी आवाज सुन ली गयी है, और वह किसी तरह डॉ०राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ पहुँचे और वहां से अपने इलाज का इस्टीमेट बनवाकर लेखपाल को दिया। उम्मीद की किरणे जगी तो थी लेकिन लगभग ६ माह पश्चात पुनः लेखपाल ने बताया की आपका प्रार्थना पत्र वापस हो गया है, क्योंकि आपने अपना आय प्रमाण पत्र नहीं दिया था। अतः फिर लेखपाल ने आय प्रमाण पत्र के साथ आवेदन भेजा, लेकिन करीब ६ माह होने को है
खैर….ये तो सिर्फ एक झलक है सरकारी योजनाओ का….योजनाये तो बनती ही है सिर्फ कागजों तक सीमित रहने के लिए। योजनाओ के असली हकदारों तक तो कभी इसका लाभ पहुच ही नहीं पता है…..और गरीब अन्नदाता का क्या इनका कष्ट तो सिर्फ ऊपर वाला ही दूर करेगा।
रिपोर्ट: सुनील सिंह चौहान