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छुआछुत में बिखरता मेरा हिंदुस्तान…

कहने को तो मैं दुनिया के सबसे बड़े गणतन्त्र मुल्क में रहता हूँ,मैं यहाँ का एक ऐसा हिस्सा हु जिसके बिना हिंदुस्तान तो है लेकिन अपने आप में अधूरा… यहाँ का हर एक इंसान अपने हिस्से के हिंदुस्तान को पूरा करता हैं, मतलब साफ है हर एक इंसान में, जीव जन्तु में, भू-भाग में, पेड़-पौधों में अपने अपने भाग का हिंदुस्तान पनप रहा है, और इसी के दम पर आज हम दुनिया के सामने अपने हिंदुस्तान को परिपूर्ण करते है…!

 

मेरे हिंदुस्तान के बारे में जब भी जिक्र होता है “वसुधैव कुटुंबकुम” और “अनेकता में एकता” 2 पक्तियां कहो या नारे सबसे पहले जहन में आते है, लेकिन मेरे देश की गहराइयो में पंहुचा जाये तो हम बिखर रहे है #छुआछुत के नाम पर, क्योकि मेरे देश में सिर्फ जन्म लेने से ही उस नन्हे बच्चे का भविष्य तय कर दिया जाता है और तुरन्त उसका काम भी समाज के सामने रख दिया जाता जाता है,…

 

हम लोग विश्व को ज्ञान देने के लिए जाने जाते है क्योकि मेरे देश ने स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द से लेकर डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसी शख्सियत दुनिया के सामने रखी है, मेरा ही देश है जहाँ एक धाय माँ अपने बेटे को न बचाकर राजवंश के चिराग को बचाती है, मेरा ही देश है जहाँ की श्रीमती गायत्री देवी जी अपने शहीद पती की शवयात्रा को अंतिम संस्कार तक छोड़ने जाती है…

 

अगर मेरे देश में इतना हो सकता है तो हम क्या जन्म से किसी का भविष्य तय कर पाने में सक्षम हैं? हम एक सामने वाले इंसान से सिर्फ इस बात नफरत करने बैठ जाते है की सामने वाला दूसरे के घर में झाड़ू लगा रहा है या सड़क पर बैठकर जूते पोलिश कर रहा है… हम किस आधार पर हमेशा यह भूल बैठते है की अपने घर में तो प्रत्येक इंसान झाड़ू से लेकर जूते पोलिस करने का काम करता है… क्यों सफाई कर्मचारियों की भर्ती में फिक्स समाजो के लोगो को ही जगह मिलती है… लेकिन हमे क्या हम तो ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य जैसे समाजो से आते है जो हमे तो हक है किसी की भी जाती देखकर हंसने का…

 

हम हर एक क्षेत्र को ढकने के लिए प्रयासरत हैं जो भारत में विविधता लाता हो, यहाँ तक की छुआछूत मिटाने के लिए भी बहुत सारे कानून बने हैं पर हम पालन नही कर पाते… किसी दलित या महादलित के साथ गलत हो तो अखबारो में सुर्खियां बनती है “दलित के घर××××××” और दूसरी तरफ उच्च जाती वाले कुछ गलत भी करे तो उन्हें “दबंग” बता दिया जाता है…!

 

यही एक ऐसा अंतर है जो जिस दिन मिट जायेगा मेरा देश अंदर से मजबूत हो जायेगा, मेरा देश अंदर ही अंदर इन मुद्दों से लड़ रहा है और अंदर ही अंदर एक समाज दूसरे समाज के जहर के बीज बो रहे है और उनसे खड़ी हुई फसल को नेता और राजनैतिक पार्टियां काट ले जाते है।

 

Bittu Meena AB

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