दिल्ली पर गिद्धों की नजर
सुनील जैन ”राही”
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खबर अच्छी है। गिद्ध बढ़ रहे हैं। ऐसा एक अखबार का कहना है। गिद्धों का बढ़ना पर्यावरण के लिए अच्छी खबर है। गिद्धों का बढ़ना अच्छा लग रहा है। लोग खुशी मना रहे हैं। गिद्ध बढ़ रहे हैं। गिद्ध बढ़ने का मतलब? लोग समझ रहे हैं, गिद्ध बढ़ रहे हैं। लोग नहीं समझ रहे-कचरा बढ़ रहा है। उनका बढ़ना देश के लिए हितकारी है। ऐसा लोगों का मानना है।
गिद्ध वहीं पाये जाते हैं, जहां कचरा होता है। मानवीय कचरा हो या बचाखुचा सामान। गिद्धों को प्रकृति की सफाई करने वाला भी कहा जाता है। जहां पर पर्याप्त मात्रा में पानी और कचरा हो वहां गिद्ध मंडराने लगते हैं।
दिल्ली में कचरे के ढेर पर ढेर होते जा रहे हैं। दिल्ली पर गिद्धों की नजर जम गई है। यह खुशी की बात है। दिल्ली में गिद्ध बढ़ रहे हैं। जब-जब गिद्धों को कचरा दिखाई देता है शोर मचाने लगते हैं। दिल्ली में शोर मचा हुआ है। हर तरफ गिद्ध ही गिद्ध नजर आ रहे हैं। अल सुबह से गिद्धों का शोर शुरू हो जाता है। दिल्ली को साफ-सुथरा बनाना है। हर गिद्ध का यही नारा है। झुण्ड के रूप में गिद्ध आते हैं, शोर मचाते हैं, कचरा करते हैं, बाद में जोर-जोर से चिल्लाते हैं, कचरा हम साफ करेंगे। बाकी सब झूठे हैं, मक्कार हैं, कचरा हम साफ करेंगे। दिल्ली साफ करेंगे। कचरा मुक्त बनायेंगे। गंदगी भगायेंगे। एक बार मौका दो।
गिद्ध कचरा साफ करेंगे, गैस नहीं बनेगी, गैस चैम्बर भी नहीं बनेगा।
बच्चे कचरे के ढेर पर बैठे हैं। परीक्षा कचरे पर बैठ कर दे रहे हैं। परीक्षा से सरकार को क्या, निर्वाचन आयोग को कोई लेना-देना नहीं। जब कचरा साफ करना है, तो गिद्धों को आमंत्रित करना होगा। गिद्ध आएंगे तो चील भी साथ होंगी, कौऐ भी होंगे।
गिद्ध अब हर जगह पाए जाते हैं। समाज के गिद्ध, राजनीति के गिद्ध, शिक्षा के गिद्ध, साहित्य के गिद्ध, देश के गिद्ध, मंदिर के बाहर बैठे गिद्ध, मस्जिद के बाहर खड़े गिद्ध, आफिस के गिद्ध। गिद्ध मूलत: कचरा साफ करने वाले, प्रकृति को दूषित होने से बचाने वाला नभचर प्राणी है। लेकिन ये दूसरे प्रकार के गिद्ध हैं। विभिन्न प्रकार की टोपियां धारण किए होते हैं, कोई सूटबूट में तो कोई रेनकोट में। ये न तो प्रकृति का कचरा साफ करते हैं और ना ही अपना। ये कचरा बढ़ाते हैं। जब भी आते हैं, कचरा करके जाते हैं। जनता बेचारी गिद्धों के बीच कचरे के समान है। चारों तरफ गिद्ध हैं।
पुराने गिद्ध हटाये जा रहे हैं। नये गिद्ध लाए जा रहे हैं। नए गिद्ध साफ सुथरे समाज को गंदा करने के लिए तत्पर हैं। अब नए गिद्धों को नए नाम दिए जा रहे हैं। इन्हें सचिव/एम्बेसेडर नाम से पहचाना जा रहा है। गिद्ध सिर्फ अपना पेट भरते हैं। ये गिद्ध सड़के खा रहे हैं। स्कूल खा रहे हैं। बांध खा रहे हैं। व्यवस्था खा रहे हैं। मॉ-बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा रहे हैं। एक बार आते हैं पांव छूकर जाते हैं और बाद में जमीन खींच ले जाते हैं। आप जमीन ढूंढते रह जाते हैं। जमीन, जंगल और समाज सभी कुछ खा जाते हैं।
अब छोटे-छोटे इलाकों में छोटे-छोटे गिद्ध और बड़े इलाकों में बड़े गिद्ध तैनात किए जा रहे हैं।
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