उ.प्र. के शैक्षणिक रूप से अति पिछड़े ज़िले बलरामपुर में वर्ष 2014 से साक्षर भारत मिशन की योजना चल रही है। हर ग्राम पंचायत में एक लोक शिक्षा केंद्र स्थापित किया गया है, जिसमें दो प्रेरकों की नियुक्ति की गयी है। नियुक्त प्रेरक गांव की निरक्षर महिलाओं/पुरुषों एवं स्कूल छोड़ चुके 14 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को बुनियादी शिक्षा दे रहे हैं।
बताते चलें कि बलरामपुर ज़िले के शिक्षा क्षेत्र- श्रीदत्तगंज के अंतर्गत लोक शिक्षा केंद्र- लखमा में नियुक्त प्रेरक सुनील कुमार की नियुक्ति नवंबर-2014 से है। वे पूरी लगन से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इन्हें अभी तक केवल 9 महीने का मानदेय वर्ष- 2015 में प्राप्त हुआ था। अगस्त 2015 से मार्च- 2017 तक 20 महीने का मानदेय विभाग के पास बकाया चल रहा है। वर्ष- 2016 के अंत में प्रेरक संघ बलरामपुर के धरना प्रदर्शन के बाद फरवरी- 2017 में कुछ प्रेरकों को 4 महीने का मानदेय प्राप्त हुआ, लेकिन फिर भी सुनील के खाते में कुछ नहीं आया।
इसके बाद सुनील कुमार ब्लॉक संसाधन केंद्र- श्रीदत्तगंज के दफ्तर का चक्कर लगाने लगे तो पता चला की खाता संख्या गलत हो जाने के कारण पैसा इनके खाते में नहीं पहुंचा है। उसके बाद ब्लॉक समन्वयक शशि शेखर मिश्रा द्वारा फरवरी- 2017 में उपस्थिति प्रपत्र जमा करवाए गए और आश्वासन दिया कि जल्द ही आपका बकाया मानदेय आपके खाते में पहुंच जाएगा।
जब मार्च में मिश्रा से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि चेक बना कर बैंक में जमा करवा दिया गया है, बहुत जल्द ही आपका मानदेय आपके बैंक खाते में ट्रान्सफर कर दिया जायेगा। लेकिन जब सुनील कुमार ने 12 अप्रैल 2017 को मिश्रा से संपर्क किया तो उन्होंने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि विभाग के खाते में अभी पैसा नहीं है, चेक जमा हो चुका है, जैसे ही विभाग के खाते में पैसा आएगा तुरंत आपका मानदेय आपके बैंक खाते में ट्रान्सफर कर दिया जायेगा।
ये है सच्चाई साक्षर भारत मिशन के तहत काम करने वाले प्रेरकों की, 2000/-रु० प्रति महीने मिलने वाला मानदेय भी न कभी किसी त्यौहार पर मिलता है, न कभी अपने किसी निजी ज़रूरतों पर और यदि मानदेय की मांग करो तो कार्यालय के चक्कर लगाते-लगाते थक जाओ लेकिन निष्कर्ष वही ढाक के तीन पात।
तो अब सवाल ये है कि प्रेरकों के आर्थिक बदहाली का असली ज़िम्मेदार कौन है? क्या सरकार को प्रेरकों की जीवन शैली के बारे में पता नहीं है? इस महंगाई के दौर में क्या कोई 2000/-रु० में परिवार चला सकता है वो भी जब मानदेय 2 साल बाद मिले?
फोटो आभार:Anwar Ahmad और Sahanur Mia
फोटो प्रतीकात्मक हैं