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सीरिया में हमला करने के लिए अमेरिका ने टॉमहॉक मिसाइल ही क्यों चुनी

सीरिया में संदिग्ध रासायनिक हमले के बाद बीते गुरुवार को अमेरिका ने फारस की खाड़ी और लाल सागर में मौजूद अपने 2 नौसैनिक युद्धपोतों से सीरियाई सरकार के कब्ज़े वाले शयरात एयरबेस पर हवाई पट्टी, विमानों और ईंधन स्टेशन को निशाना बनाते हुए कम से कम 59 क्रूज़ मिसाइलें दागी थीं, जिसके बाद से टॉमहॉक मिसाइलें अचानक चर्चा में आ गई थीं। टॉमहॉक मिसाइल के प्रयोग के बाद दुनिया भर के देशों की विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। यहां हर किसी के मन में सवाल उठ रहा होगा कि अमेरिका ने हमला करने के लिए टॉमहॉक मिसाइलों को ही क्यों चुना?

रूस ने सीरियाई एयरबेस पर अमेरिकी मिसाइल हमलों को एक ‘संप्रभु राष्ट्र’ (सीरिया) के खिलाफ आक्रमण बताते हुए कहा था “इन हमलों से अमेरिकी-रूस संबंधों को एक बड़ा झटका लगा है, जो पहले से ही काफी खराब स्थिति में थी। ” वहीं, ईरान ने इस मामले में कहा था कि सीरियाई एयरबेस पर अमेरिकी हमले की वजह से आतंकवादी जश्न मना रहे हैं। हालांकि, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस और सीरीया के विद्रोही गुटों ने अमेरिका के इस कदम का स्वागत किया है।

टॉमहॉक मिसाइलें अमेरिका के लिए खाड़ी युद्ध के समय से ही प्रमुख हथियार बने हुए हैं

सीरियाई एयरबेस पर जिन टॉमहॉक क्रूज़ मिसाइलों से हमला किया गया, अमेरिका उनका इस्तेमाल खाड़ी युद्ध (पर्सियन गल्फ वार, 1990-91) के समय से ही करता आ रहा है। ये मिसाइलें अमेरिका की सेना के लिए रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण रही हैं। टॉमहॉक मिसाइलों का निशाना 90% एक दम सटीक रहता है। साथ ही, यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने सीरिया पर इन मिसाइलों से हमला किया हो। अमेरिका ने सितंबर, 2014 में भी सीरिया में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आई.एस.) के ठिकानों को नष्ट करने के लिए टॉमहॉक मिसाइलों का प्रयोग किया था। इसे बनाने वाली रेथियान नामक कंपनी के मुताबिक, युद्ध में अब तक इस मिसाइल का प्रयोग 2,000 से अधिक बार हो चुका है और 500 से अधिक बार इसका परीक्षण भी हो चुका है। अमेरिका इसका इस्तेमाल पिछले 20 वर्षों से अधिक समय से करता आ रहा है। ऐसा माना जाता है कि यह दुनिया की सबसे आधुनिक क्रूज़ मिसाइल (हवा से हवा में मार करने वाली) है।

इस वर्ष की शुरुआत में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने रक्षा बजट में कटौती को देखते हुए इन मिसाइलों के कम उत्पादन करने की योजना बनाई थी लेकिन रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पदभार संभालते ही ट्रंप प्रशासन ने इस योजना को बदल दिया। रेथियान को अमरीकी सेना के लिए 214 टॉमहॉक ब्लॉक-4 मिसाइलें बनाने के लिए 30 करोड़ डॉलर का ठेका मिला है जिसकी आपूर्ति कंपनी को अगस्त 2018 तक करनी है। नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन  (नाटो) की ओर से मुअम्मर गद्दाफ़ी के कार्यकाल में लीबिया पर 2011 में हुए हमले में भी टॉमहॉक मिसाइलों का प्रयोग किया गया था।

यमन पर किए गए हमलों में भी टॉमहॉक मिसाइलों का हुआ था प्रयोग

अमेरिकी अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ की खबर के मुताबिक, अक्टूबर, 2016 में भी यमन में हाउती विद्रोहियों पर हमला करने के लिए टॉमहॉक मिसाइलों का प्रयोग किया गया था। ये मिसाइलें लाल सागर से यमन में तीन कोस्टल रडार साइट्स को निशाना बनाते हुए दागी गई थीं। अमेरिका सेना के मुताबिक, उन्होंने यह कदम अमेरिकी युद्धपोतों पर हाउती विद्रोहियों के हमलों के बाद किया था।

टॉमहॉक मिसाइल की विशेषताएं-

करीब 1500 किलोग्राम वज़न और 885 किलोमीटर/घंटा की रफ्तार वाली यह मिसाइल 1600 किलोमीटर दूरी तक स्थित लक्ष्य को भेद सकती है। जीपीएस तकनीक से संचालित इस मिसाइल का लीबिया हमलों (2011) में भी प्रयोग हुआ था। इस मिसाइल की लंबाई करीब 6.2 मीटर है और इसके विंग्सपैन करीब 2.6 मीटर बड़े हैं। इस मिसाइल में टर्बो जेट इंजन और इंफ्रारेड कैमरा भी लगा हुआ है। साथ ही, यह मिसाइल परमाणु हथियारों को भी ले जाने में सक्षम है। यह क्रूज मिसाइल अपने साथ 454 किलो तक के हथियार ले जा सकती है। इन मिसाइलों को युद्धपोत या पनडुब्बी दोनों से फायर किया जा सकता है।

टॉमहॉक मिसाइल क्यों है सबसे अलग?

इस मिसाइल को प्रयोग करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि संभावित लक्ष्य को भेदने के लिए इसमें पॉयलट की ज़रुरत नहीं पड़ती है। जब भी दुश्मन की वायु सुरक्षा प्रणाली का सामना करना पड़ता है तो ये मिसाइलें नौसेना विध्वंसक पोतों से 1600 किलोमीटर दूर तक लॉन्च की जा सकती हैं। इन मिसाइलों ने सीरिया की वायु सुरक्षा प्रणाली को भेदते हुए उनके एयरबेस पर मौजूद कई हथियारों और विमानों को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद ही, सीरिया की वायु सुरक्षा प्रणाली पर रूस ने कहा था कि उनका देश सीरिया की हवाई सुरक्षा को मज़बूत करने में मदद करेगा। रूस ने यह भी कहा था कि सीरिया की हवाई सुरक्षा प्रणाली को प्रभावी बनाने हेतु देश के सबसे संवेदनशील ढांचे की रक्षा के लिए निकट भविष्य में कई कदम उठाए जाएंगे। सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद की सेना सतह से हवा में मार करने वाले ‘s-200’ मिसाइल सिस्टम का प्रयोग करता है और यह तकनीक रूस ने ही दी है। हालांकि, रूसी सेनाओं के पास इससे उन्नत मिसाइल सिस्टम ‘s-300’ और ‘s-400’ हैं। s-200 की अपेक्षा इन सिस्टम में ज़्यादा उन्नत रडार सिस्टम है। साथ ही, ये मिसाइल सिस्टम ज़्यादा तेज़ी से सतह से हवा में मार करने में सक्षम हैं।

रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, अमेरिकी सेना EA-18G ग्रोवलर जेट और अन्य तरीकों के इस्तेमाल से रूसी सेना के कई रडार को जैम कर सकता है। यह बात तो काफी हद तक सही है कि अमेरिकी सेना में इन मिसाइलों का होना एक बड़ी और फायदेमंद बात है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि रूस की वायु सुरक्षा प्रणाली अप्रासंगिक हो गई हो। इसके अलावा, मानव चालित लड़ाकू विमानों द्वारा गिराए गए बम की अपेक्षा टॉमहॉक मिसाइलें कम विस्फोटक होती हैं। इन मिसाइलों से पूरा रनवे भी नष्ट नहीं हो सकता है जितना कि लड़ाकू विमान से लॉन्च किया हुआ बम नष्ट कर सकता है।

टॉमहॉक मिसाइल द्वारा हमला करना क्या ट्रंप के ऊपर बढ़ता राजनीतिक दबाव था?

इस मसले पर यह भी सवाल उठ रहे हैं कि सीरिया में टॉमहॉक मिसाइलों द्वारा हमला करना अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऊपर बढ़ते राजनीतिक दबाव का परिणाम है। क्या यह हमला ट्रंप की विदेश नीति में आया बदलाव है? सवाल ये भी हैं कि अमेरिका को इस हमले से क्या हासिल हुआ है? इस क्षेत्र में सीरिया के सबसे नज़दीक इन्किरलिक एयरबेस है, जो तुर्की में स्थित है। सीरियाई सरकार के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए अमेरिका को तुर्की की अनुमति लेनी पड़ती। अगर अमेरिका तुर्की के एयरबेस का इस्तेमाल करता, तो पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व) के दूसरे देशों के साथ संबंधों में तल्खियां आ सकती थीं।

अगर ट्रंप प्रशासन सीरिया पर हमले के लिए मैन्ड एयरक्राफ्ट्स का प्रयोग करता तो सबसे बेहतर नौसैनिक विमान होता। इसमें हरियर लड़ाकू विमान भी शामिल होते। अमेरिका सेना द्वारा जारी की गई तस्वीरों के मुताबिक, ये लड़ाकू विमान बीते बुधवार को भूमध्य सरगर में नौसेनिक पोत में थे जिसकी वजह से मैन्ड एयरक्राफ्ट्स द्वारा हमला करना भी संभव नहीं था। अब ट्रंप प्रशासन के पास अंतिम विकल्प टॉमहॉक मिसाइलों से ही हमला करना रह गया था।

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