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रिपोर्ट कार्ड- मोदी सरकार के 3 साल कितने बेमिसाल

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अच्छे दिनों के वादे के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स या एन.डी.ए. ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल कर सरकार बनाई। नरेन्द्र मोदी को उस वक्त एक ऐसे नेता के तौर पर देखा जा रहा था जो भारत को सही मायनों में विकास के रास्ते पर लेकर जाएगा। एक ऐसा नेता जो आज़ादी के बाद के 60 सालों से भी लम्बे कांग्रेसराज की असफलताओं से परे, भारत के करोड़ों लोगों को गरीबी से निजाद दिलाएगा। इस साल 26 मई को मोदी सरकार के 3 साल पूरे होने जा रहे हैं, मोदी सरकार के इन तीन सालों के बाद भारत अब भी एक संभावनाओं से परिपूर्ण देश है, जहां पिछले कुछ समय में साम्प्रदायिकता, नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे विषय किसी भी और मुद्दे से ज़्यादा चर्चा का केंद्र बने हैं।

मोदी सरकार की शुरुआत काफी अच्छी रही जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई जिसका सकारात्मक असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी दिखा। लेकिन राजनीतिक रूप से मोदी सरकार का यह अच्छा समय ज़्यादा लंबा नहीं रहा। दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों में BJP को करारी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि BJP ने महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड और जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्र रूप से या गठबंधन में सरकार बनाने में सफलता हासिल की।

इसके बाद 2017 में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में BJP ने मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड राज्यों में शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन BJP ने सबसे बड़ी सफलता उत्तर प्रदेश में हासिल की जहां BJP ने एकतरफा जीत हासिल करते हुए 300 से भी ज़्यादा सीटों पर जीत दर्ज की। यूपी में BJP की इस जीत को प्रधानमंत्री मोदी की एक निजी जीत के रूप में देखा गया, जहां उन्होंने ज़बरदस्त चुनावी कैंपेन की अगुवाई की। अब आइये एक नज़र डालते हैं मोदी सरकार के तीन सालों पर-

1. प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक नीतियां


आर्थिक नीतियों के नज़रिए से प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी छवि एक क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले के उलट अर्थव्यवस्था पर गंभीरता से विचार करने वाले की बनाई है। 2014 से ही प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक नीतियों का लक्ष्य देश की अर्थव्यवस्था को उबारने के साथ-साथ इसे और प्रतिस्पर्धी बनाने और विदेशी प्रभाव के प्रति लचीला बनाने का रहा है। धीमी पड़ी अर्थव्यव्स्था में जान फूंकने के शुरुआती क़दमों के मद्देनज़र सरकार के हालिया कदम काफी ठोस नज़र आते हैं। नोटबंदी में 500 और 1000 रु. के नोट बंद कर देने का कदम कुछ ऐसा ही है, जिसे टैक्स-चोरी, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और कैशलेस सोसाइटी के निर्माण के इरादे से लागू किया गया।

इसी तरह सरकार संसद में जी.एस.टी. (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) को पारित करवाने में भी कामयाब रही जिससे पहले की टैक्स कलेक्शन की जटिल प्रक्रिया का केन्द्रीयकरण कर उसे बेहतर बनाया जा सके।

इस तरह देखें तो प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक नीतियों के नतीजे अब तक मिलेजुले ही रहे हैं। स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी महत्वाकांक्षी स्कीम्स के बावजूद, अब भी देश में नया व्यापार शुरू करना या उसे चला पाना एक मुश्किल काम ही है। नोटबंदी को सरकार की तरफ से एक क्रांतिकारी कदम की तरह प्रोजेक्ट किया गया लेकिन उसके आर्थिक विकास पर तुरंत नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिले साथ ही लम्बे समय के बाद इसके अन्य नकारात्मक प्रभावों की आशंका भी जताई जा रही है।

2. बेरोज़गारी और युवा भारत

युवा देश भारत के युवाओं के लिए ज़्यादा से ज़्यादा रोज़गार के अवसरों को पैदा करने के चुनावी वादे पर मोदी सरकार बड़े पैमाने पर असफल रही है, जो शायद इस सरकार की सबसे बड़ी असफलता है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न तकनीकी आंकड़ों में बढ़त और जीडीपी में 7.5% की बढ़त तब तक बेमानी है कि जब तक उसका असर ज़मीन पर ना देखने को मिले, जब तक कि आम लोगों के जीवन के स्तर में कोई सकारात्मक बदलाव ना आए खासकर कि युवाओं के जीवन में। अगर बेरोज़गारी की बात की जाए तो 2011 में 3.8% की बेरोज़गारी की दर, 2017 में बढ़कर 5% हो चुकी है।

3. भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने पर मोदी सरकार: दादरी, कैंपस विवाद से लेकर इनटॉलरेंस की बहस तक

संस्कृति और प्रशासन के विषय पर मोदी सरकार कई पहलुओं पर घिरी नज़र आती है। ‘सबका साथ सबका विकास’ का वादा बस एक वादा ही बनकर रह गया है, जिसे पूरा करने में सरकार पूरी तरह से विफल होती दिखती है। चाहे वो गोमांस के सेवन के आरोप में दादरी के अख़लाक़ की बेकाबू भीड़ द्वारा हत्या किया जाना हो या कथित ‘लव ज़ेहाद’, ‘घर वापसी’ और गोमांस पर प्रतिबंध। इन सभी ‘मुद्दों’ पर सरकार ने सांप्रदायिक और अराजक तत्वों को अनकही छूट देने के साथ उन्हें एक लांचपैड भी दिया है, जिससे देश के अल्पसंख्यक समुदाय में असुरक्षा की भावना बढ़ी है।

हैदराबाद यूनिवर्सिटी, जे.एन.यू. और जाधवपुर यूनिवर्सिटी की घटनाओं ने न केवल पूरे देश को वैचारिक रूप से दो हिस्सों में बांटा बल्कि एंटी-नेशनल और इनटॉलरेंस जैसे शब्दों को आम बोलचाल की भाषा में शामिल कर दिया। इनसब के बीच सरकार की नीतियां और बातें तीन तरीकों से और तीन अलग-अलग आवाजों में सबके सामने आती रही। पहली आवाज़ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की होती थी जहां वो राजनीतिक तौर पर सटीक और अच्छी बातें कर खुद को विकास पुरुष के तौर पर पेश करते रहे। दूसरी आवाज़ सोशल मीडिया पर वो लोग या ट्रोल जो सरकार की नीतियों और बातों को सही ठहराने के लिए किसी भी हद तक जाने और किसी भी भाषायी बंदिश को लांघने के लिए तैयार थें। और तीसरी अनाधिकारिक आवाज़ जिसे उन अतिवादी नेताओं के बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो समुदाय विशेष के हित के लिए फायरब्रांड नेता के तौर पर उभरे।

यानी कि नीति साफ थी समुदायों के बीच फूट डालने वाले मुद्दों को उठानाऔर उनकी आवाज़ को दबाना जो इसकी निंदा करते हैं या चर्चा करना चाहते हैं।

4. मोदी की विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय दौरे

नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी सफलता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने को माना जा सकता है। मोदी ने जहां साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देशों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया, वहीं जापान और अमेरिका के साथ चीन की नीतियों से निपटने के लिए कूटनीतिक संबंध मज़बूत करने का भी काम किया। मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो ऐसे काम एकसाथ करने शुरु किये जो शायद अबतक के प्रधानमंत्रियों के लिए ज़रूरी तो थी लेकिन प्राथमिकता नहीं। पहला, योग, संस्कृति और दर्शनशास्त्र के रूप में भारत की ताकत को दुनिया के सामने रखना और दूसरा दुनियाभर में फैले भारतीय समुदाय से सीधा संवाद। पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल और मालदीव से संबंध भले ही आज भी बेहतर नहीं हुए हों, लेकिन इन सरकारों ने भी भारतीय हुकूमत को उसके किसी भी पहले की सरकारों के मुकाबले ज़्यादा मज़बूती से लेना शुरु कर दिया है।

5. भ्रष्टाचार मुक्त मोदी सरकार

यूपीए सरकार के कार्यकाल में समय-समय पर सामने आने वाली घोटालों की ख़बरों की तुलना में मोदी सरकार के तीन सालों में इस तरह की कोई भी खबर सामने नहीं आयी है। इसे मोदी सरकार की एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा सकता है। इन तीन सालों में जो एक चीज़ नहीं बदली है वो है प्रधानमंत्री मोदी की लगातार बढ़ती लोकप्रियता। नोटबंदी के मुश्किल दिनों में भी जनता के एक बड़े तबके से मोदी को लगातार समर्थन मिलता रहा।

आज के समय में जब जनता का काफी हद तक नेताओं पर से विश्वास उठ चुका है, ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगातार बढ़ती लोकप्रियता अपने आप में काफी कुछ कह जाती है। उनके कार्यकाल के बचे हुए दो साल काफी अहम होंगे। संभव है कि वो अपनी इस बढ़ती लोकप्रियता से खुश हों, लेकिन जनता अभी भी उनके ‘अच्छे दिनों’ के वादे के पूरे होने की राह देख रही है।

प्रधानमंत्री पद फिर से हासिल करने के लिए ये ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री मोदी, विकास के वादों को हकीकत की ज़मीन पर लाएं और जनता को विश्वास दिलाएं कि उनकी अगुवाई में भारत सही में विकास की दिशा में अग्रसर होगा।

हिन्दी अनुवाद : सिद्धार्थ भट्ट

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