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कभी अपनी ज़िन्दगी को खत लिखकर देखा है, अकेलेपन में एक साथी मिल जाएगा

डियर ज़िंदगी कैसी हो?

उम्मीद है कि तुम अच्छी ही होगी, आज तुम्हे खत लिखने को मन तो नहीं था पर कुछ मौका बन गया। अब तुम सोचोगी कि मौका कैसा? तो मौका ये था कि अपनी ज़िंदगी की गुफ्तगू करने के लिए जो चंद नंबर मेरे पास थे उन्हें जब फोन लगाया तो कुछ नंबर उठे नहीं, कुछ नंबर कहीं और व्यस्त थे। तब मुझे लगा कि छोड़ो यार दूसरों को, खुद अपनी ज़िंदगी से ही बातचीत कर ली जाए।

ज़िंदगी पता है तुम्हें, मेरे आसपास के लोग सब भाग रहे हैं, तेज़ बहुत तेज़। पर हर शाम या कहें कि कुछ एक शाम बाद जब उन्हें कहीं पहुंचते नहीं देखता तो मन दुखी होता है। हम सब या तो अपने गुज़रे पल का रोना रो रहे होते हैं या फिर अपने आने वाले पल के लिए समेट रहे होते हैं, इस पल में कोई नहीं रहना चाहता। पिछले साल जब मैं राजस्थान के अम्बेर फोर्ट में लाइट एंड साउंड शो देख रहा था तो मैंने जब बीच में एक बार नज़र उठा कर पीछे देखा तो ज़्यादातर लोग अपने कैमरे से उस नज़ारे को कैद करने में जुटे पड़े थे। कोई उस वक्त को अपनी आंखों में कैद नहीं कर रहा था, यही तो करते हैं हम।

बोर्ड एग्जाम के समय रिज़ल्ट उसके बाद अच्छे कॉलेज में एडमिशन वाला हाई प्रोफाइल ड्रामा होता है। इसके अलावा एंट्रेंस टेस्ट जैसे NIT और IIT जी के रिज़ल्ट के भी ड्रामे होते हैं। मेरे लिए सबसे ज़्यादा कठिन महीने होते हैं- मई से लेकर अगस्त तक, क्योंकि इस समय हमारे देश में सुसाइड रेट बहुत बढ़ जाता है।

जब भी मैं इस फैक्ट को बार-बार सुनता हूं तो मुझे बहुत बुरा लगता है कि हमारे देश में यूथ सुसाइड की समस्या बहुत गंभीर है। किसे दोष दें इन आत्महत्याओं का? बच्चों को, उनके मां-बाप को या सोसाइटी को? क्यूं हम कभी ये नहीं समझ पाते कि किसी भी बड़े कॉलेज में पहुंच जाना ज़िंदगी का आखिरी लक्ष्य नहीं हो सकता।

ज्ञान और अच्छे मार्क्स के बीच में कोई संबंध नहीं है, अच्छे मार्क्स लाना एक अच्छी प्लानिंग का नतीजा है न कि सिर्फ अच्छी पढ़ाई का। दुनिया बदलने के लिए अगर अच्छे मार्क्स लाना ही ज़रुरी होता तो कहां हैं सालों साल की मेरिट लिस्ट वाले वो बच्चे? क्यों गायब हो जाते हैं सिर्फ एक बार स्टार बनने के बाद वो? मैं अच्छे मार्क्स का विरोध नहीं करता पर मुझे लगता है कि सिर्फ अच्छे मार्क्स लाना ज़िंदगी की सफलता का सक्सेस मंत्र नहीं है।

मेरा भाई डॉक्टर है क्यूंकि वो ये चाहता है, मैं डॉक्टर नहीं हूं क्यूंकि मैं ये नहीं चाहता। मुझे मज़ा आता है दुनिया घूमने में, नए-नए लोगों से मिलने में, नई-नई कहानियां लिखने में, दुनिया भर के युवाओं से मिलने में और मैं इस बात से बहुत खुश हूं। कुछ एक दिन पहले मेरी चचेरी छोटी बहिन ने मुझसे एक बात कही, उसने कहा कि भइया मैं जब पूरे परिवार के सामने बड़े भइया की रिस्पेक्ट होते देखती हूं तो मुझे आपके लिए बुरा लगता है। आपको बाहर वाले तो इतना रिस्पेक्ट देते हैं पर परिवार वाले नहीं समझ पाते। मैं चाहती हूं कि आप इतने बड़े आदमी बन जाओ कि आप बड़े भइया को हरा दो। उसके सवाल पर मैं उसके मन को पढ़ पा रहा था कि कैसे सोसाइटी का इफेक्ट उसके दिमाग में ये असर पैदा कर रहा है कि वो दो भाइयों को उनके प्यार नहीं बल्कि उनके ओहदे की नज़र से देखे।

मैंने उसको जवाब दिया कि ये मेरी ज़िंदगी है और मैं जो कर रहा हूं वो किसी को हराने या किसी को कुछ दिखाने के लिए नहीं कर रहा हूं। जो मैं कर रहा हूं उसे मैंने चुना है और ये मेरी सच्चाई है, कोई उस पर क्या सोचता है ये मेरी दिक्कत नहीं है। मैं भाई को कैसे हरा सकता हूं जबकि हमारे रास्ते ही बिल्कुल अलग-अलग हैं और किसी को हराना ही क्यूं है? जब कभी लगे कि तुम भीड़ के साथ-साथ भाग रहे हो या तुम्हें किसी को हराना है तो रुक जाओ, वहीं पर सोचो कि क्या किसी को हराना इतना ज़रूरी है? अपनी ज़िंदगी जियो और खुश हो के जियो।

ये ज़िंदगी मेरी अपनी है, सबकी ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव चलते रहते हैं और ये उतार-चढ़ाव बताते हैं कि हम ज़िंदा हैं, बस हौसला नहीं खोना है हमें। कोई इंसान या सोसाइटी इतनी ताकतवर नहीं हो सकती कि उसके एक सवाल या आरोप से मेरा पिछला सारा अनुभव धरा का धरा रह जाए। बात करो, दुनियाभर में बहुत लोग हैं, उनसे अलग-अलग मुद्दों पर बात करो। उन्हें समझो कैसे उन्होंने खुद और अपने ज्ञान को खड़ा किया है। दूसरे के ज्ञान से घबराओ नहीं, अपनी समझ पैदा करो। खुद के लिए लक्ष्य रखो, खुद को हराओ तब देखो कि ज़िंदगी में कैसा नयापन आता है।

बात करो अगर परेशान हो तो, क्यूंकि बात करना बहुत ज़रूरी है, कहानी लिखो, कविता लिखो, फेसबुक पर लिखो, ऑडियो रिकॉर्ड करो, ब्लॉग लिखो कुछ भी हो खुद को ज़ाहिर करो हर हालत में। बस कभी अकेले मत परेशान हो।

आज के लिए बहुत बात हो गयी, तुमसे मिलते हैं फिर जल्द ही नए किस्सों के साथ…
तुम्हारा,

बिमल।

 

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