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ना बिकेगी शराब, ना झूमेंगे शराबी

शराब आजकल सिर्फ़ नशा नहीं बल्कि स्टेटस सिम्बल बन चुका है। कुछ लोग इसे पीकर मस्त हो जाते हैं, कुछ मानसिक उत्तेजना वश और कुछ संसार की मोह माया से कुछ पल दूर होने या चिंताओं से मुक्ति के लिए के लिए इसका सेवन करते हैं। या यूं कह लीजिए दिन भर काम की थकान के बाद अच्छी नींद आ सके इसलिए शराब का सेवन करते हैं।

अच्छा हमारा समाज जुगाड़ी भी बहुत है। इसीलिए तो हर समस्या का समाधान पाने में सफल हो जाता है। अब एक जुगाड़ यही देख लीजिये। मान लीजिये कल ड्राई डे है। कुछ याद रहे या ना रहे लेकिन कल ठेका बंद होगा ये सबको याद रहता है। अरे कितना भी ड्राई डे हो हम घंटा नहीं बाज आयेंगे। एक दिन पहले से स्टॉक का इंतज़ाम कर लेंगे। दुनिया मनाए ड्राई डे, हमें तो धरनी (पीनी) है तो हम धरेंगें।

सिर्फ एक दिन दुकान बंद कर देने से समाज में कोई बदलाव नहीं आने वाला। अगर सच में ही परिवर्तन लाना है तो इसका अस्तित्व ही क्यूं नहीं मिटा दिया जाता? इंसान हर उस चीज़ के पीछे भागता है जिसका अस्तित्व समाज में स्थापित है। तो अगर अस्तित्व ही मिटा दिया जाएगा तो कोई क्यूं उसके पीछे भागेगा? हो सकता है शराबबंदी के बाद कई जाने जाएं, कइयों को हार्ट अटैक तक आ जाएं। लेकिन जो रोज़ ये हज़ारों जाने जाती हैं, कभी घरों में होने वाली कलह की वजह से, कभी सड़कों पर होने वाले एक्सीडेंट की वजह से, कभी महिलाओं से छेड़छाड़ तो कभी रेप जैसी घटनाएं और ना जाने ऐसी कितनी और घटनाएं हैं जिससे हमारे समाज का ढांचा चरमरा रहा है।

शराब बिक रही है इसीलिए लोग ख़रीद रहे हैं नहीं बिकेगी तो नहीं खरीदेंगें। कुछ दिन विरोध करेंगें, सड़क पर प्रदर्शन भी करेंगें आख़िर में थक कर बैठ जाएंगे। सरकार भी शराबबंदी के फ़ैसले को लेकर कई बार सोच-विचार करती है, क्योंकि सरकार को उससे इतना ज़्यादा राजस्व जो प्राप्त होता है। लेकिन क्या सरकार को ये नहीं दिखता रोज़ाना शराब की वजह से हज़ारों घर बर्बाद होते हैं? सरकार तो राजस्व इकठ्ठा कर रही है और वहीं दूसरी ओर समाज का एक हिस्सा कर्ज़दार होता जा रहा है।

शराब से सिर्फ़ एक इंसान नहीं बल्कि पूरा घर बर्बाद होता है। शराब घर का एक इंसान पीता है, लेकिन उसके परिणाम पूरे परिवार को झेलने पड़ते हैं। कुपोषित मानसिकता से ऊपर उठ कर देखेंगें तो पाएंगे कि हमारा समाज बढ़ तो रहा है लेकिन तरक़्क़ी नहीं कर पा रहा है।

जहां कमाने वाला इंसान शराब पीकर सड़कों, नालियों में पड़ा हो। उसके घर में आर्थिक तंगी के कारण कई दिनों तक चूल्हा नहीं जलता और इसी कारण उसके बीवी और बच्चों को खून के घूट पीकर भूखा सोना पड़ता है। ऐसे में उसके परिवार वालों को आर्थिक, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से गुज़रना पड़ता है। साथ ही साथ समाज उसके परिवार को भी अपराधी की नज़र से देखने लगता है। जब कुछ नहीं बचता है तो चोरी, डकैती, घर में पड़े जेवर बेच देना और ना जाने कितने कुकर्म इंसान के अंदर जन्म लेते हैं। कई बार घर तक गिरवी रखने की नौबत आ जाती है और इन सबके पीछे कारण सिर्फ़ एक शराब का सेवन। शराब हमारे समाज का कलंक बन चुकी है।

सिर्फ़ शराबबंदी के फ़ैसले से ही कई अपराधों को जड़ से ख़त्म किया जा सकता है। ये एक विचार करने योग्य विषय है। हमें समाज को मानसिक और आर्थिक रूप से कुपोषित नहीं बल्कि इसे कुशल एवं मज़बूत बनाने के लिए अहम फ़ैसले लेने चाहिए। जिससे कि आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुनिश्चित हो सके और उसे गर्त में जाने से बचाया जा सके।

समाज और देश के हित के लिए शराबबंदी का फैसला एक विशेष भूमिका निभा सकता है। समाज को अपाहिज़ होने से बचाना है और इसके लिए इस ज़हर की बिक्री पर रोक लगाना ज़रूरी है।

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