आपकी और हमारी सुबह पूजा, नमाज़ से शुरू होती है। लेकिन हमारे समाज के एक वर्ग की सुबह मैला उठाने से शुरू होती है। अब सोच रहा हूं कि मैला का मतलब बताना चाहिए या नहीं, क्या आप जानते हैं? या जान कर भी अंजान बन रहे हैं?
भारत के विभिन्न हिस्सों में आज भी निचली जाति की महिलाएं (पुरुष तुलनात्मक रूप से कम संख्या में) घरेलू शौचालयों, सामुदाइक शौचालयों और खुले में शौच त्यागने वाले क्षेत्रों से टोकरी या टीन के कनस्तर में मल इकट्ठा कर उसे सिर पर रखकर रहवासी क्षेत्र से बाहर फेंकते हैं।
कुछ खास जातियों में सिर पर मैला ढोने की प्रथा सदियों से चली आ रही है, इनसे बहुत ही अस्वच्छ तरीकों से शौचालयों से मल को इकट्ठा कर उसे बाहर फेंकवाने का काम करवाया जाता रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 26 लाख से ज्यादा शुष्क शौचालय (Dry Toilet) हैं, जिनमें से अधिकतर शौचालयों में मैला ढोने की प्रथा जारी है। यह अमानवीय एवं भेदभावपूर्ण तो है ही, साथ ही यह पानी को प्रदूषित करने का भी एक बड़ा कारण है।
डॉ. मनमोहनसिंह ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में 31 मार्च 2009 तक देश से इस प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। इससे पहले 31 दिसंबर 2007 तक का समय इस लक्ष्य के लिए निर्धारित किया गया था। सिर पर मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन के लाख दावों के बावजूद हालत यह है कि देश के कई राज्यों में यह प्रथा आज भी मौजूद है।
इतना सब कहे जाने के बाद भी दुनिया में सबसे बड़ी मानी जानी वाली भारतीय रेल, खुद मैला ढोने का काम करवाने में लगी है। पटरी और रेलवे स्टेशनों पर ये प्रथा बदस्तूर जारी है। आज भी लोग इसे ख़त्म करने के प्रयास कर रहे हैं, इनमें एक बड़ा नाम है बेजवाड़ा विल्सन। भारत में मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन के लिए एक प्रभावशाली मुहिम चलाने वाले बेजवाड़ा विल्सन को वर्ष 2016 के लिए प्रतिष्ठित रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
विल्सन के उद्धरण में कहा गया है, “मैला ढोना भारत में मानवता पर कलंक है। मैला ढोना, शुष्क शौचालयों से मानव के मलमूत्र को हाथ से उठाने और उस मलमूत्र की टोकरियों को सिर पर रखकर निर्धारित निपटान स्थलों पर ले जाने का काम है, जो भारत के अछूत और दलित उनके साथ होने वाली संरचनात्मक असमानता के मद्देनजर करते हैं।”
50 वर्षीय विल्सन के प्रशंसात्मक उल्लेख में कहा गया है, “मैला ढोना एक वंशानुगत पेशा है और 1,80,000 दलित परिवार, भारत भर में 7,90,000 सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत शुष्क शौचालयों को साफ करते हैं। मैला ढोने वालों में 98 प्रतिशत महिलाओं एवं लड़कियों को बहुत मामूली वेतन दिया जाता है। संविधान एवं अन्य कानून शुष्क शौचालयों और लोगों से मैला ढोने का काम करवाने पर प्रतिबंध लगाते हैं, लेकिन इन्हें लागू नहीं किया गया है क्योंकि सरकार ही इनकी सबसे बड़ी उल्लंघनकर्ता है।”
इन्होंने एक बात कही “संविधान में प्रतिबंध होने के बाद भी ये प्रथा जारी है और हम इसी संविधान के भरोसे देश चला रहे हैं, आप मुझे अराजकतावादी मत समझ लेना कि मैंने इसके खिलाफ बोला, लेकिन उनको क्या बोलेगे जो संविधान में लिखी हुई बात नही मान रहे।”
कहीं आप सोचने तो नहीं लगे! अरे आप तो भारत माता की जय बोलो, क्या हुआ जो कोई अपने सर पर पखाना उठाए।हम तो और तेज़ आवाज़ में भारत माता की जय बोलेंगे जिससे उनकी आवाज़ ही न सुनाई दे। 15 अगस्त आने वाला है और हमें अपने झंडे को खूब ऊंचा लहराना है जिससे देश ऊंचा हो। एक काम करते हैं ये जो Dirty People हैं, इनके पखाने वाले डब्बे पर अपने देश का झंडा बना देते हैं। अरे माफ़ कीजिए मैं भी क्या बोल गया, ऐसे तो झंडा गंदा जो हो जाएगा, इनको गन्दा होने दो झंडा हम और ऊंचा उठा देंगे।
आप तो स्मार्ट सिटी बनाने वाले हैं, अब उसमें तो आप जैसे sweet people रहेंगे न! अब इन डर्टी लोगों को क्या करें? एक काम करते हैं, बोल देते हैं ये हमारे देश के नागिरिक ही नहीं ये ठीक रहेगा। खूब सारे sweet people को इम्पोर्ट कर लेते हैं, जैसे हम दालों को करते हैं। अरे मैं तो भूल ही गया कि आप लोग तो busy लोग हैं, आपके पास कहां टाइम है ये सब सोचने का?
मैं भी न सोचने लगा कि कहीं आप सोचने लगो, इसलिए आपके दूसरे मुद्दों को सामने रखा। आपको तो अभी कश्मीर भी हासिल करना है, अब ऐसे में इन डर्टी पीपल का क्या करेंगे? अब ये लोग बने ही पखाना उठाने के लिए तो आप इसमें क्या करोगे? एक डर्टी सिटी बना लेते हैं, जहां इनको छुपा दें जिससे बाहर वाले जान न पाएं कि हमारे यहां ये सब भी होता है।
आप अपना अमूल्य समय पखाने वालों के बारे में सोच कर बर्बाद न करें, आपके थोड़े ही न सर पर पखाना गिर रहा है या आपको कौन सी उसकी दुर्गन्ध आ रही है? आप कश्मीर जीतें, स्मार्ट सिटी बनाएं। पखाने उठाने का कानून तो बन गया लेकिन हुआ क्या जानते ही हो।
आप सीरियस मत होना, ये पखाने वाला मुद्दा एकदम बेकार है। आपके पास कई मुद्दे हैं उन पर ध्यान दें, पखाना उठाने वाले तो उठाएंगे ही छोड़ो इन्हें।