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छोटे शहर की लड़की का पीरियड्स

ए़डिटर्स नोट- पीरियड्स के टैबू को तोड़ने के मकसद से शुरू हुए YKA के कैंपेन #IAmNotDown के तहत पहली बार युवाओं ने बड़े स्तर पर हिंदी में इस मुद्दे पर खुलकर निजी अनुभव साझा करना शुरू किया। इसके बाद कई और मीडिया हाउस ने इस दिशा में काम किया।

#IAmNotDown कैंपेन के तहत सैनटरी नैपकिन पर लगे टैक्स का भी लोगों ने सोशल मीडिया पर जमकर विरोध किया था। सोशल मीडिया से बने दबाव को देखते हुए YKA की टीम को वित्तमंत्री अरुण जेटली ने चर्चा के लिए बुलाया था।

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पीरियड्स यानि उजले स्कर्ट में लग जाने वाले खून के धब्बों से होने वाली शर्मिंदगी, चार लड़कियों की उपाय निकालने वाली फुसफुसाहट ,घर के मर्दों से पैड को छुप- छुपाकर रखने से लेके यूज करने की कोशिश, पूजा ना करने से लेके दादी, बुआ,मर्दों को खाना- पानी ना देने की अनुमति वाली अशुद्धता।[envoke_twitter_link]पीरियड्स यानि छूआआछूत,पूर्वाग्रह, घृणा और  फिर कई सारी मिथ्याएं।[/envoke_twitter_link]

हमारे लिए पीरियड्स के मायने कुछ ऐसे ही रहे हैं। हम, कभी ना रूके, कभी ना झुके, आगे- आगे बढ़ते ही रहे – स्टे्फ्री वाली लड़की की तरह नहीं थे। हम उन छोटे शहर, कस्बों में रहने वाली लड़कियों में से थे जहां लड़कियों को पीरियड्स आते हैं तो उन्हें ऐसा एहसास कराया जाता है मानो वो उस नाली के पानी से भी ज्यादा गंदी हो। किसी बंद कमरे में कपड़ा या पैड थमा दिया जाता है और कुछ पूछने, कुछ आपत्ति जताने पर बस स्ससससससससस………..[envoke_twitter_link]भैया, पापा को कुछ मत बताना कहकर चुप करा दिया जाता है।[/envoke_twitter_link] फिर भाई के साथ खेलना बंद- वो जिद्द करता है, क्या हुआ इसे, खेलने दो न। जवाब मिलता है- बड़ी हो गई है अपने उम्र के लड़कों के साथ खेलो।

पापा के पैर दबाते हुए आपको अपने कमरे में जाने की हिदायत मिल जाती है। फिर पापा को कहा जाता है- वो बच्ची नहीं रही, पैर दबवाने की आदत छोड़ो, बेटे से दबवाया करो।

भाई के बार- बार पूछने पर कि बहन हमारे साथ पूजा में शामिल क्यों नहीं हो रही के सवाल पर वो नहाई नहीं है आज, जैसे बचकाने बहाने बनाकर आपको शर्मिंदगी महसूस करायी जाती है।

[envoke_twitter_link]यूज की हुई पैड को किसी कोने में सबसे छुपाकर रखा करो।[/envoke_twitter_link] कितनी बार बताऊं कि पुरूषों की नज़र नहीं पड़नी चाहिए उस पर, नज़र पड़ जाने से उनकी आयु छिन्न हो जाती है। जब सुबह सभी सोए रहें तभी पैड फेंक दिया करो….जैसी ना जाने कितनी निराधार हिदायते मिलती हैं।

पर कुछ चीज़ें वैसी की वैसी ही रह जाती हैं। [envoke_twitter_link]लड़कियों को ऐसी स्थिति में भी एक अच्छी डायट नहीं मिलती।[/envoke_twitter_link] उनके लिए दूध- घी जैसी चीज़ें नहीं होती। चर्बी हो जाने का डर होता है। फिर प्रेगनेंसी में प्रॉब्लम होगी। फल, ड्राई फ्रूट्स वगैरह तो लड़कों के खाने की चीज़े हैं। वो बाहर खेलते- कूदते हैं, लड़कियों का क्या घर में ही तो रहना है। मैंने अक्सर लड़कियों को इन दिनों में बेहोश होते, दर्द से कलपते ,रोते देखा है।

घर में चार बहने हों तो पैड का खर्च एक मिडल क्लास फैमिली कैसे उठाएगी? वैसे भी कपड़ों से काम चल ही जाता है। फिर वो कैसे भी कपड़े हों….चार दिन की ही तो बात है। वैसे भी साफ- सफाई सदियों से चली आ रही मिथ्याओं के आगे कुछ मायने नहीं रखती। पैड को लेकर कई मिथ्याएं गांव- घर में प्रचलित है। आप गांव जाएंगे तब हैरानी होगी यह देखकर की माहवारी को लेकर जागरूकता की कितनी कमी है वहां। काले- ऊजले पॉलिथिन में पैड देने और मंदिर में प्रवेश की लड़ाईयों के इतर इनकी दुनिया हमारी दुनिया से कितनी पिछड़ी है।

[envoke_twitter_link]मैंने देखा है महावारी वाली लड़कियों को अपने यूज किए हुए कपड़ों को धोकर – सुखाते हुए।[/envoke_twitter_link] गंदी जगहों पर कपड़ों को सुखाने के बाद वापस उनका इस्तेमाल करते। अधिकतर गरीबी में ऐसा करने पर विवश हैं मगर कुछ ऐसी भी हैं जिन्हें लगता है पैड यूज करना हराम है। पैड यूज करने से औरतें प्रेगनेंट नहीं हो पाती जैसी चीज़ें भी सुनने को मिलती हैं। कभी- कभी उनकी प्रतिक्रियाएं हास्यास्पद लग सकती हैं मगर हमें उन पर हंसने की बजाय खुद पर हंसना चाहिए कि हमने अपने स्तर पर क्या कोशिश की थी ? हमने क्या कोशिश की थी पीरियड्स से जुड़े टैबू से लड़ने की?

मैंने की थी। उस टैबू से लड़ने की जिसे दूर करने में अभी भी दशक लगेंगे। [envoke_twitter_link]पीरियड्स में मैं अशुद्द होती हूं, यह वाली बात जमती नहीं थी मुझे।[/envoke_twitter_link] पूजा ना करने का लॉजिक समझ नहीं आता था इसलिए पीरियड्स के बारे में किसी को बिना कुछ बताए मैं पूजा करती थी। कभी- कभी मां को पता चलता तो वह खूब पिटाई करतीं। मगर मैं बाज़ नहीं आती। घर में हंगामा बढ़ता ही गया। मैं बहस करती कि क्यों ना करूं पूजा? नहाया तो है मैंने। मुझे उतना ही कोसा जाता। [envoke_twitter_link]भगवान के सामने कान पकड़ के माफी मांगने, सर पटकने तक को कहा जाता।[/envoke_twitter_link] पाप हो गया है, लड़की है, माफ कर दीजिए ऐसी बातें मां भगवान को बोलती। मां का भी दोष नहीं था। वो तो वही कर रही थी जो उसे सिखाया गया था बचपन में। पर उसकी बेटी जिद्दी थी। मान ही नहीं रही थी। मां भी परेशान थी, डर रही थी कि कहीं पाप न लगे। रोज की खिच- खिच, डांट, मारपीट से आखिरकार मैंने पूजा करना छोड़ ही दिया।

[envoke_twitter_link]अब मैं पीरियड्स के दिनों में पूजा नहीं करती।[/envoke_twitter_link] आम दिनों में भी नहीं करती। मगर दोस्तों के कहने पर पीरियड्स में मंदिर जरूर चली जाती हूं। हां, वहां मां नहीं है न, घरवाले नहीं है, मगर देखो न कितना अनोखा है सबकुछ। जिसने अपने परिवार की मानसिकता के सामने हार मान लिया आज वो तुमसे बदलाव की उम्मीद लगाए बैठी है। यही विरोधाभास है, यही तो हास्यास्पद है। इस पर हंस लेना मगर उसके पहले मेरी कि कोशिश को नज़रअंदाज मत करना। कोई ऐसी कोशिश , ऐसा संघर्ष करता दिखे तो उसका बस साथ देना, तुम लड़की हो और आर्थिक रूप से सक्षम हो तो [envoke_twitter_link]किसी गरीब व्यस्क लड़की को एक पैड गिफ्ट करना क्योंकि सरकार भी पितृसत्ता से ग्रसित है।[/envoke_twitter_link] कई साल लगेंगे सैनिटरी पैड्स को टैक्स फ्री करने में इसलिए अपनी कोशिश बरकरार रखना। याद रहे तुम एक लड़की को हैप्पी मेन्सट्रुएशन वाली फील दे सकती हो।  #IAmNotDown

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