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मुझे समझे बिना ही लोगों ने मुझे पागल करार दिया था

आज हमारे देश मे हर बीस में से एक व्यक्ति अवसाद (depression) से ग्रसित है। हमारे देश मे युवा इस गर्त मे तेज़ी से गिरते जा रहे हैं। कुछ समय पहले तक मैं भी अवसाद से ग्रसित थी। हमारे समाज में अवसाद से पीड़ित व्यक्ति को बीमार नहीं, पागल समझा जाता है। आज मुझमे इतना साहस है कि मैं अपनी कहानी पूरी दुनिया को बता सकती हूं।

मै एक बोर्डिंग स्कूल मे पढ़ती थी। बेहतर प्रदर्शन करने के कारण, मेरे अभिवावक और शिक्षकों को मुझसे बहुत उम्मीदें थी। बचपन से ही बहुत मेहनती होने के कारण मुझे भी लगता था कि मैं बहुत कुछ कर सकती हूं। बारहवीं कक्षा में आते-आते मेरे मन मे एक डर बैठ गया कि मैं कुछ नहीं कर सकती हूं। मैंने 59 बार आत्महत्या का प्रयास किया। फिर मेरे लगातार बुरे प्रदर्शन के कारण मेरे माता-पिता को स्कूल में बुलाया गया।

मेरे दोस्तों ने मेरे अभिवावकों को मेरे बारे में बताया और वो लोग मुझे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने बोला कि मुझे अब घर पर ही रहना होगा और मुझे हॉस्टल से घर ले आया गया। लेकिन, मेरा असली संघर्ष तो अब शुरू हुआ था, मैं पढ़ना चाहती थी पर पढ़ नहीं पाती थी। इसी बीच मेरे पहले प्री-बोर्ड आ गए। उनमें मैं ज़्यादा अच्छे अंक नहीं ला पाई लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी, पर डॉक्टर ने मेरी दवाओं की डोज़ दुगनी कर दी। घर पर सब मुझे ऐसे देखते थे जैसे मैंने कुछ गलत किया हो। मेरे इस बुरे वक्त में सिर्फ मेरे दोस्तों ने मेरा साथ दिया।

अगर मुझे बुखार होता तो सब अच्छे से देखते, पर पूरी दुनिया तो मुझे पागल समझ बैठी थी। मेरे बोर्ड एग्जाम भी खत्म हुए, JEE Mains की परीक्षा भी मैंने दी। चार महीने पहले तक मेरे अभिवावक मुझे कोटा भेजने को तैयार थे, पर अब डॉक्टर ने मुझे बाहर भेजने से भी मना कर दिया था। मेरे बोर्ड एग्जाम का भी परिणाम आया और मुझे 72.8% मार्क्स मिले, लेकिन मैं JEE Mains नहीं निकाल पाई। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी और मैने B.Sc. मे एडमिशन लिया।

मेरे अनुभव से जो मैंने सीखा वो आपके साथ साझा कर रही हूं-

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