हम इतिहास क्यों पढ़ते हैं? एक सामान्य सा उत्तर हो सकता है कि इंसान ने अपने उद्भव से लेकर अब तक जो तरक्की की है या उसकी जो यात्रा रही है उसे समझने के लिए। इससे आगे यह भी कहा जा सकता है कि हम इतिहास इसलिए भी पढ़ते हैं कि किसी देश-समाज में भूतकाल में कैसी घटनाएं घटीं और उसके क्या निष्कर्ष रहे।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इतिहास हम अतीत से सीखने और अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए पढ़ते हैं जिससे कि हम आने वाले समय में पहले की हुई गलतियों को न दोहराएं। जो बेहतरीन काम हमारे पूर्वजों ने किए या जो ज्ञान मानव सभ्यता के लिए अर्जित किया उससे सीखें। अगर ये कहें कि समस्त ज्ञान विज्ञान का अंतिम उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि वह इस दुनिया को और बेहतर कर सके तो गलत न होगा।
लेकिन इतिहास एक और सन्दर्भ में महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि कुछ लोगों का मानना यह भी है कि इतिहास हमारे गौरव की भी कहानी है। अच्छी बात है। जो कुछ हमने भूतकाल में अच्छा किया हम उस पर इतरा सकते हैं, जैसे कि हम कभी ताजमहल पर इतराते हैं तो कभी शून्य के आविष्कार पर।
कुछ लोग आजकल इतिहास एक और काम के लिए भी इस्तेमाल में ला रहे हैं, वह है प्रतिशोध के लिए। उन्हें पहले घटी हर एक ऐसी बात का बदला लेना है, जिसका प्रतिकार उनके मुताबिक़ उनके पुरखे नहीं कर पाए। उदाहरण के तौर पर अयोध्या का मंदिर-मस्जिद विवाद। एक पक्ष का मानना है कि क्यूंकि वहां मंदिर था और उसे तोड़ के मस्जिद बनी तो जब वो ताकतवर थे तो उन्होंने मस्जिद तोड़ दी, अब वो और ताकतवर हैं तो वहां मंदिर भी बनाएंगे।
साथ ही वो ये भी कहते हैं कि अयोध्या के बाद काशी और मथुरा में भी यही करना है। अब क्या इस बात की गारंटी किसी के पास है कि ऐसे लोग बस तीन कामों का “बदला” लेंगे और उसके बाद रुक जाएंगे? इस देश का हज़ारों साल का इतिहास है, कभी किसी बौद्ध राजा ने मंदिर तोड़ा होगा तो किसी ने मस्जिद। हजारों ऐसे किस्से होंगे, तो ऐसा करते हैं कि सबकी लिस्ट बनाई जाए और सबका हिसाब लिया जाए!
फिर किसी के मन में अगला सवाल ये उठ सकता है कि बात केवल मंदिर-मस्जिद तक सीमित क्यों रखें। बहुत सी बातों का हिसाब बराबर किया जा सकता है। मसलन हम जब सन 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हारे तो क्यों हारे? कई लोगों ने धोखा दिया और अंग्रेजों का साथ दिया और उनकी भी लिस्ट बनायी जाए। गोरखों से लेकर राजपूत राजाओं तक ने अंग्रेजों का साथ दिया था तो अब क्या किया जाए? और 1857 ही क्यों प्लासी के युद्ध में गद्दारी करने वालों के वंशजों को भी खोजा जाए।
हकीकत तो ये है कि जब आप इस नज़रिये से सोचते हैं तो मसले ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेते हैं। कभी धर्म, जाति के नाम पर तो कभी किसी अन्य आधार पर।
इस वक्त की सबसे बड़ी त्रासदी एक मुल्क के तौर पर हमारे साथ ये है कि हमारा अपनी तरक्की की बजाय सारा ध्यान प्रतिशोध पर टिका हुआ है। एक मुल्क के तौर पर आज हमारे लिए क्या आवश्यक है? क्या हमें अपना ध्यान उस अंग्रेजी हुकूमत से बदला लेने के लिए लगाना चाहिए जिन्होंने दो शताब्दियों तक हमपे राज किया या फिर हम अपने देश की बढती जनसंख्या, बेरोज़गारी, अशिक्षा आदि पर ध्यान दें। एक देशभक्त होने के नाते हमारा पहला कर्त्तव्य पाकिस्तान को पानी पी-पी कर गाली देने से कहीं ज़्यादा यह है कि हम अपने देश की चुनौतियों और समस्याओं के समाधान के लिए कुछ करें।
आज जब हमारा किसान प्रधानमंत्री के दफ्तर के पास नग्न होकर प्रदर्शन कर रहा है उस वक्त हम इस बात में मग्न हैं कि मंदिर को बाबर ने तोड़ा या औरंगजेब ने।
निश्चित ही धार्मिक आस्था का महत्व होता है लेकिन इसी बात पर अदम गोंडवी का एक शेर भी प्रासंगिक है कि “अगर गलतियां बाबर की थी तो जुम्मन का घर फिर क्यों जले।”
फिलहाल जब बात इतिहास की हो ही रही है तो हम फ्रांस और इंग्लैंड के बीच के भीषण युद्धों को कैसे भूल सकते हैं। अगर दोनों मुल्कों ने बदला-बदला खेलना जारी रखा होता तो हम आज तीन कार्नाटिक युद्धों के बजाय कम से कम बीस-तीस युद्ध तो पढ़ ही रहे होते। आज आप जान ही रहे हैं कि दोनों मुल्को के बीच दोस्ताना सम्बन्ध हैं। केवल इंग्लैंड और फ्रांस ही क्यों, जर्मनी को क्यों भूल रहे हैं। क्या जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध को भूलकर आगे बढ़ने का प्रयास नहीं किया?
सार ये है कि मुमकिन हो सकता है इतिहास में जो कुछ हुआ वह आपको पसंद न आए लेकिन ये तो बुद्धिमानी हुई नहीं कि आप तलवार निकाल कर निकल पड़े प्रतिशोध लेने। पूरी दुनिया में सैकड़ों ऐसे उदाहरण हैं जहां आप ये देख सकते हैं कि कैसे इतिहास की गलतियों से सीखकर एक बेहतर भविष्य बनाया जा सकता है। ज़्यादा तो नहीं लेकिन जापान और अमेरिका का उदाहरण सबसे महत्वपूर्ण है। परमाणु हमले की विभीषिका झेलने के बाद जापान ने जो रास्ता अख्तियार किया वह सीख देता है। आज वही जापान परमाणु निशस्त्रीकरण की सबसे बुलंद आवाज़ उठा रहा है। उसके अमेरिका से घनिष्ठ सम्बन्ध भी हैं।
हकीकत तो ये है कि इतिहास को इस खास तरह से पेश करने में एक वर्ग का स्वार्थ निहित होता है और उसकी कीमत देश चुकाता है। देश में मुस्लिमो के खिलाफ घृणा और नफरत का जो माहौल बना रहे हैं उनकी सबसे अकाट्य दलील होती है “इतिहास”। अब तय हमें करना कि क्या हम औरंगजेब के किये किसी काम की सजा अपने मोहल्ले के जुम्मन चाचा को देना क़ुबूल करेंगे?
आज भी देर नहीं हुई है इससे पहले कि हमारे समाज में प्रतिक्रियावादी सोच कूट-कूट कर के भर जाए उससे पहले हमें ज़रूरत है नयी शुरुआत की। इतिहास भविष्य की तरक्की की कुंजी है, उस कुंजी का इस्तेमाल अंधेरी कोठरी में जाने के लिए करना आत्मघातक होता है। क्योंकि इतिहास गलतियों से सीखने के लिए होता है दोहराने के लिए नहीं।
फोटो आभार: Ahsan Habib