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भगवान चुनाव के बाद

भगवान चुनाव के बाद

रविवार का दिन था। सभी काम निपटा चुके थे। जब कुछ नहीं बचा तो सोचा भगवान से मिला जाए। रविवार को सुबह तो भगवान से मिलने हर कोई चला आता है, लेकिन शाम को आरती के बाद कौन जाता है। चुनाव हो चुके थे। भगवान की सारी व्यस्तता समाप्त हो चुकी थी। जिसे जो देना था वह ले चुका था। जिसे पाने की उम्मीद थी उसकी उम्मीद पूरी नहीं होने से वह भी अब दिखाई नहीं देता। चुनाव के बाद इलेक्शन कमीशन के तरह भगवान भी निठल्ले हो गए थे। वही उनके दो-चार पुराने भक्त शाम को टहलते-टहते पहुंच जाते। थोड़ा सा प्रसाद पा जाते और फिर भगवान को अकेला छोड़ चल देते।

मंदिर में कदम रखते ही आवाज आई। मिल गई फुरसत चुनाव से। मैं हैरान था भगवान ने मुझ पर ही व्यंग्य दे मारा। झिझकते हुए कहा- नहीं भगवन वह बात नहीं थी। बात तो ये थी मैं आपके यहां नंगे पैर आना चाहता हूं। एक कारण तो यह है कि पूरी श्रद्धा के साथ भक्ति हो जाती है और दूसरी बात महंगी चप्पल चोरी जल्दी हो जाती है। चप्पल चोरी हो जाए उसका दुख नहीं। लेकिन भगवन मेरी चप्पल से किसी गरीब आदमी का सिर गंजा हो जाए उसका दुख है।

खैर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा -आपके यहां चुनाव की तारीख तक इतनी भीड़ होती थी कि आना संभव नहीं था और चुनाव में इतनी गंदगी फैली कि सड़क पर रैम्प की तरह उछल-उछल कर कैट वाक करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में आप ही बताइए कि कैसे आपके दर्शन किए जाएं और आपको तो छोड़ सकते हैं। लेकिन उनकी शिकायत नहीं कर सकते। आपके पूजने वाले जीत गए। आपके पूजने वाले भी हार गए। आपकी महिमा महान है। हारने वाले भी धन्यवाद कर  रहे हैं और जीतने वाले भी लडडू पर लडडू सटकाये जा रहे हैं। जब उनका पेट भर जाएगा तब आपके पास आने वाली सड़क पर बहता हुआ सीवर का पानी बंद हो जाएगा।

मैंने आपसे पहले ही कहा था कि ऐसे लोगों को मुंह न लगाओ जो पांच  में पांच बार आते हैं। आपकी आरती रिकाडिंग कर रखी है। जहां होते हैं वहीं चला लेते हैं। एक हाथ में आपकी आरती हो रही होती है दूसरे हाथ में पेय———–आपकी आरती खतम होते ही हाथ जैसे ही खाली होता है। पता नहीं किसकी कमर पर चल देता है दूसरी आरती के लिए। खैर अब तो ढोलढमाके के साथ तो क्या अकेले आने में शर्म आती है। आपके मंदिर के कोने में जो बड़ा बल्ब चुनाव के पहले लगा था] चुनाव समाप्त होने के बाद बंद पड़ा है। मैंने एक से पूछ लिया भई इसे भी चालू करवा दो। उसका कहना है- सर-जीतने के बाद नेताजी का नाम ने कहा है- भगवान कौनसा हमको देख रहा है। हमने ही तो जाना है देखने। उसके उपर तो बल्ब लगा रखा है ना। अभी कोई त्योहार भी ना है। त्योहार आने पर चालू करवा देंगे। तब तो पब्लिक के बीच भाषण भी देना पड़ेगा ना।

खैर भगवान ने हां में हां मिला दी। वे बोले-तेरा क्या विचार है तू आयेगा कि नहीं। तेरी सरकारी नौकरी लग गई। लुगाई घर में आ गई। डी डी एक फ्लैट निकल आया। बाप मर लिया। भाई से ज्यादा हिस्सा भी मार लिया। अब तो कोई कमी ना है। अब बता- आएगा कि नहीं।

मैं तो सोच रहा था कि भगवान तो अंधेरे में बैठे हैं। इनकी कौनसी सी बी आई शाखा है जो इन्हें सब मेरे घोटाले मालूम हैं। जरूर सामने वाले ने बताया होगा। लेकिन वो कैसे बतायेगा। उस साले की तो जब से टांग तोड़ी है। तब बिस्तर पर पड़ा-पड़ा भगवान का नाम ले रहा है। खैर जब नेता इतने झूठ बोलकर जाते हैं तो मैं भी एकाध झूठ बोल दूंगा तो ये भगवान मेरा के कर लेगा। ये तो कहीं जाएगा नहीं और मैं इसके पास आउंगा नहीं।

भगवान आप तो जानते ही हैं कि हमारे नेताजी का कितना विश्वास है मुझ पर। मेरे बगैर उनका एक भी काम नहीं हो पाता। हां मैं आने की कोशिश करुंगा। पर ये सड़क का गंदा पानी। रोशनी का न होना। चप्पल का चोरी होना। पाकेट मारों का धंधा थोड़ा कम करवा दो तो अच्छा रहेगा। हमारे यहां की पुलिस तो अंधेरे में आपकी तरह खड़ी रहेगी। आपको तो अंधेरे में सब कुछ दिखता है लेकिन उसको तो दिन के उजाले में भी नहीं दिखता। आप पेड़ के नीचे और पुलिस वाला पेड़ के पीछे। आप भी गरीबों को ढूंढते हो और वो भी गरीबों को टटोलता है। मंदिर में आपका प्रताप और सड़क पर उसका ताप।

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सुनील जैन राही

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