हम सभी ने बचपन में इन्द्रधनुष को हैरत भरी ख़ुशी के साथ देखा है, दो पत्थरों को टकराकर उनसे चिंगारी निकलते हुए देखा है, लेकिन ‘ऐसा क्यूं होता है?’ ये सवाल तब हम सभी के मन में ज़रूर आया होगा। बच्चों के मन में आने वाले ऐसे सहज सवालों के सही जवाब दिया जाना उनके विकास के लिए बेहद ज़रूरी है। आइये देखते हैं कुछ ऐसी ट्रिक्स जिनको बेहद आसानी से घर पर मौजूद चीज़ों का इस्तेमाल कर बच्चों को दिखाया जा सकता है और साथ ही उनके वैज्ञानिक कारणों को भी समझाया जा सकता है।
1)- कलर-व्हील या सतरंगी गोला: इंद्रधनुष के वैज्ञानिक कारण को समझाने के लिए एक सफ़ेद कार्डबोर्ड की शीट से 4 से 6 इंच तक के डायमीटर का एक टुकड़ा काट लें और इसे सात (या 6) बराबर हिस्सों में बांट दें। अब सातों हिस्से में एक-एक कर इन्द्रधनुष के सात रंग (लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैंगनी। केवल 6 रंगों का भी कलर व्हील बनाया जा सकता है जिसमे आसमानी रंग को छोड़ा जा सकता है) भर दें। इस तरह आपका कलर-व्हील तैयार हो जाएगा, अब इसके केंद्र में कंपास से एक छेद करें और व्हील को प्रकार की नोंक पर रखकर घुमाएं, या धागे में पिरोकर घुमाएं।
आप देखेंगे कि व्हील के घूमने पर वो सफ़ेद रंग का दिखाई देगा। कारण प्रकाश की किरण इन सात रंगों से मिलकर बनी होती है जो मिलकर सफ़ेद दिखती है, जब इसमें कोई बाधा आती है तो ये सातों रंग अलग-अलग दिखने लगते हैं। बारिश की बूंदें इसी बाधा का काम करती हैं और हमें इन्द्रधनुष दिखाई देता है।
यह न्यूटन के गति के पहले नियम को अच्छे से समझाता है, जिसके अनुसार कोई चीज़ अगर गतिमान है तो गति की अवस्था में ही रहेगी और अगर स्थिर है तो स्थिर ही रहेगी, जब तक कि उस पर कोई अतिरिक्त बल ना लगाया जाए। यहां पोस्टकार्ड को उंगली से मारने पर वो गतिमान हो गया जबकि सिक्का स्थिर ही रहा और पोस्टकार्ड के साथ आगे नहीं गया।
यह एक अच्छा तरीका है पोटेंशियल एनर्जी से काइनेटिक एनर्जी में परिवर्तन को दिखाने का, चाबी वाले खिलौनों से लेकर मशीनी घड़ियों (मैकेनिकल वॉच) में यही तरीका इस्तेमाल में लाया जाता है।
मोमबत्ती बुझने का कारण है कि आग को जलने के लिए इंधन (मोमबत्ती में मोम) के साथ हवा में मौजूद ऑक्सीजन की भी ज़रुरत होती है। मोमबत्ती को खाली ग्लास से ढकने पर वह तब तक जलती है जब तक कि गिलास में मौजूद ऑक्सीजन खत्म नहीं हो जाती। साथ ही जब गिलास में मौजूद ऑक्सीजन जलने के बाद ख़त्म हो जाती है तो उसकी जगह लेने अन्दर पानी आ जाता है और ग्लास के अन्दर पानी का लेवल बढ़ जाता है।
आवाज़ एक तरंग (वेव) के रूप में चलती है, जब कप में बोला जाता है तो उसके तली में होने वाले वाइब्रेशन रस्सी के ज़रिए दूसरे कप तक पहुँचते हैं और उसमे आवाज़ सुनाई देती है। टेलीफोन भी इसी सिद्धांत पर काम करता है, टेलीफोन का माइक्रोफ़ोन आवाज़ को इलेक्ट्रोनिक तरंगों में परिवर्तित कर देता है और उसका रिसीवर इन इलेक्ट्रॉनिक तरंगों को वापस आवाज़ में परिवर्तित कर देता है।