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BHU में 24X7 लाइब्रेरी मामले में निलंबित छात्रों की ऐतिहासिक जीत

बीते 4 मई को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बीएचयू के 24×7 लाइब्रेरी आन्दोलन में निलंबित हुए छात्रों का निलंबन निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने विकास सिंह व अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया व अन्य (सिविल) रीट संख्या – 306/2017 की सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बीएचयू प्रशासन को इन सभी छात्रों की बची हुई परीक्षाएं जून-जुलाई महीनों में कराये जाने, शोध छात्र विकास सिंह की रोकी गयी फ़ेलोशिप को 14 दिनों के अंदर रिलीज़ करने व छात्रों के खिलाफ दर्ज सभी फर्जी मुकदमें रोकने सम्बन्धी आदेश भी दिए।

सुनवाई की अगली तिथि 28 अगस्त 2017 मुकर्रर करते हुए कोर्ट ने छात्रों से यह भी कहा कि अगली बार कोर्ट में सफेद शर्ट और वेल मेंटेंड होकर आएं। छात्रों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अधिवक्ता निधि ने उनका पक्ष रखा।

अक्सर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसलों के आगे एक शब्द लगा दिया जाता है ‘ऐतिहासिक’। लेकिन 4 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नम्बर-दो में जो कुछ हुआ सच में ऐतिहासिक ही था, शायद इस तरह की सुनवाई पहले कभी न हुई हो। हम लोंगो का केस 54 नम्बर पर लगा था, पर न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने कहा यह केस एंड ऑफ़ कोर्ट सुनेंगे। इस तरह सारे मुकदमे खत्म होने के बाद हम लोंगो के केस की सुनवाई शुरू हुई। जज साहब ने दोनों पक्षो के वकीलों को चुपचाप बैठा दिया, फिर शुरू हुई हम लोगों की ‘सुप्रीम क्लास’ और ‘सुप्रीम एग्जाम’।

अपने विषय राजनीति विज्ञान से लेकर दर्शन शास्त्र तक के ढेर सारे सवालों से हम मुखातिब हुए। सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ तो एकबारगी हम भूल ही गये थे कि हम सुप्रीम कोर्ट में खड़े हैं या किसी क्लासरूम में! न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की यह टिप्पणी थी “वाकई ये छात्र पढ़ने वाले है और  इन्हें परीक्षा देने का अवसर मिलना चाहिए।” इस एक साल में छात्रों के अथक और अंतहीन संघर्ष के आखिरी में यह बात हम छात्रों को सुकून देने वाली है कि हमें न्याय मिला और हां जज साहब अगली डेट पर हम वाइट शर्ट ज़रुर पहनकर आएंगे।

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