सीबीएसई का रिज़ल्ट आ गया है। इस बार लाखों की संख्या में छात्रों ने नब्बे प्रतिशत से भी ज्यादा अंक पाए हैं। लेकिन किसी के चेहरे पर कोई ख़ास ख़ुशी नहीं दिख रही है। किसी को बधाई भी दीजिये तो वह खुश होने के बजाय यह पूछ लेता है की दिल्ली विश्विद्यालय के नार्थ कैंपस में या लेडी श्रीराम में एड्मिसन हो जायेगा? ऐसा लगता है मानों नॉर्थ कैंपस या लेडी श्रीराम में न पढ़े तो फिर पढ़ना बेकार है। कभी बचपन में, मेरे गाँव वाले मुझे कहते थे कि पढ़ना कभी बेकार नहीं होता।
मेरा भी 10वी का रिज़ल्ट आया था। गाँव का पहला व्यक्ति फर्स्ट डिविजन से पास किया था। पूरा गाँव खुश था, सबने मिलकर भोज दिया था। 12वी में भी फर्स्ट क्लास हुआ था। खुश होकर पापा ने नयी पैंट-शर्ट दिलायी थी। मैं रिज़ल्ट से ज़्यादा, नए कपड़े पाने की वजह से खुश था। पटना में जाँडिस की बीमारी जोरों पर थी सो दिल्ली चला आया। फिर दिल्ली विश्वद्यालय के कट ऑफ़ के आंकड़ों को न छूने के कारण, स्कूल ऑफ़ ओपेन लर्निंग में फर्स्ट इयर में दाखिला लिया, फिर वहां से सत्यवती कॉलेज मोर्निंग में माइग्रेशन। वहां से पहले प्रयास में ही जवाहरलाल नेहरु विश्विद्यालय में एम की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण हो गया। उस वर्ष का एंट्रेंस टॉपर भी था। फिर यूजीसी की नेट परीक्षा से जेआरएफ भी पास किया। उसके बाद MPhill फिर पीएचडी। MPhill के दौरान ही दिल्ली विश्विद्यालय के कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की नौकरी भी लग गयी। अब मैं अपने इलाके का पहला पीएचडी हो गया हूँ, वो भी JNU जैसे संस्थान से।
समझना यह है कि सिर्फ नॉर्थ कैंपस या लेडी श्रीराम में पढ़ने वाले ही कामयाब नहीं हैं। वो लोग भी ठीक-ठाक ही कर रहे हैं जिन्होंने दिल्ली विश्विद्यालय में कभी कदम नहीं रखा है। ये बात सही है कि इन कॉलेजों में अच्छी सुविधाएँ हैं लेकिन फिर आप बिहार में आनंद कुमार के ‘सुपर-30’ पर क्या कहेंगे। अच्छे कॉलेज आपके संघर्ष को थोड़ा कम कर देते हैं, पर कॉलेज आपको सफल नहीं बनाते। सफल तो आप खुद की मेहनत से होते हैं। हाँ! अगर कम सुविधा वाले कॉलेज में होंगे तो थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी, बस और कुछ नहीं। कभी, किसी लेडी श्रीराम या नार्थ कैंपस के छात्रों को, उनके कॉलेज की वजह से नौकरी नहीं मिलती। उन्हें भी तपना पड़ता है।
तो क्या हुआ जो रिज़ल्ट में कम नंबर आएं और दिल्ली विश्विद्यालय में दाखिला नहीं ले पाए। अपने शहर के कॉलेज में एड्मिसन लीजिये, और ऑक्सफ़ोर्ड, कैम्ब्रिज, डीयू और जेएनयू का लेक्चर युट्यूब पर सुनिए। याद रखिये! विश्विद्यालय से आप अच्छे नहीं बनते बल्कि आपसे विश्विद्यालय अच्छा बनता है। असल में आप अच्छे हैं, किसी भी कॉलेज या विश्विद्यालय से ज्यादा बेहतर। अंक आपकी सफलता का द्योतक नहीं हो सकता। अंक तो बस आंकड़े हैं और आप बेहतर इंसान हैं। कोई बेहतर देश, बेहतर आंकड़ों से नहीं बनता बल्कि बेहतर इंसानों से बनता है।
मैं स्कूल ऑफ़ ओपन लर्निंग के बच्चों को कुछ लेक्चर पढ़ाने जाता हूँ, मुझे कई बच्चे कैम्पस कॉलेज के बच्चे से ज्यादा सजग, मेहनती और सामाजिक सरोकार वाले मिलते हैं. तो घबराना क्या है! दुखी क्यूँ होना है! पढ़ना हैं और अंत-अंत तक पढ़ना है।
आपकी मेहनत का परिणाम आया है तो पार्टी कीजिये, मजे लीजिये। एड्मिसन के टेंशन में, ये समय क्यूँ खो रहे हैं। माँ-बाबूजी को बोलिए की वो आपकी चिंता न करें। हर हाल में, आप अपने जीवन को बेहतर बना ही लेंगे। सोचिये, अगर, लोगों को आपके नब्बे प्रतिशत अंक भी ख़ुशी नहीं दे रहे है तो वो आपके IAS बनने पर भी खुश नहीं होंगे। याद रखिये! पढाई से जगह बनती है, जगह से पढाई नहीं होती। सो! जो होगा, वो देख लेंगे। इसीलिए, जाइए पार्टी कीजिये। यू नीड टू सेलेब्रेट।