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धर्म के नशे में ताकत का तड़का, इस देश के स्वाद को खराब कर देगा

Mob of young boys pelting stones on security forces.

नशे से तात्पर्य है ऐसी अवस्था मे होना, जिसमें सही और गलत का फर्क कुछ फीका पड़ जाए। जिसमे समझ अपना किरदार कुछ कम निभा पाए, जिस अवस्था मे एक खुमारी सी हो और सारी दुनिया अपने कदमों तले नज़र आए। नशा एक आदत बन जाता है इन्ही कारणों की वजह से। हर रोज़ नशे की तलब होती है और उस नशे को पाने के लिए जद्दोजहद भी चालू रहती है। नशा शराब का भी हो सकता है, सत्ता का भी और पूर्ण शक्ति का भी।

अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि “पावर करप्ट्स एंड एब्सॉलूट पावर करप्ट्स एब्सॉलुएटली।” मतलब की ताकत के नशे से भ्रष्ट होना तय है और पूर्ण ताकत से पूर्ण भ्रष्टाचार आता है। जब कोई सरकार जनता को नशा बेचती है और उसको उस नशे का आदि बनाती है तो मकसद बस ये होता है कि लंबे समय तक सत्ता बनी रहे। नशे में चूर जनता, अपनी लत पूरा करने के लिए उस सरकार को बनाए रखे। जितना नशा गहरा होगा, उतनी ही लंबी सत्ताधारियों के सत्ता में रहने की मियाद।

कल तक जो कामकाजी साधारण सा युवक अपनी पहचान के लिए लड़ता था, आज भगवा गमछा डाल के, गेरुए तिलक के साथ सड़कों पे लाठी लेकर खुद को गौ रक्षक कहता है। कल तक उसके बदन की ताकत का ज़ोर किसी पे शायद ही चल पाता, किन्तु आज वो किसी की जान तक लेने का दम रखता है। ताकत का ये नशा उसको और कहां मिलेगा?

कल तक जो पुलिस की वर्दी देख रास्ता बदल लेते थे आज उनपे बेवजह चांटे बरसा के निकल लें ये भी तो एक नशा है। इस नशे से मुक्ति असंभव सी जान पड़ती है। शराब के नशे से मुक्त करने को तो फिर भी समाज ने कई नशामुक्ति केंद्र बना रखे हैं, किन्तु इस ताकत के नशे से मुक्ति कैसे मिले? विपक्ष नाम की दुकान तो बंद पड़ी है।

समाज का कोई भी हिस्सा इस नशे में आकर किये गए उत्पातों से अछूता नही है। यूनिवर्सिटी, कॉलेज, मोहल्ले, कॉलोनी, हाईवे, जुलूस यहां तक कि घरों तक मे इसका तांडव देखा गया है। ताकत के नशे में धर्म का तड़का ऐसी रेसिपी है कि उसका स्वाद कभी फीका नही पड़ता। स्वाद के चक्कर मे ओवर ईटिंग और उसके चलते बदहज़मी होना तो लाज़मी है।

नशा करते-करते या नशा करते हुए देखते-देखते एक समय ऐसा आता है जब खुद को ज्ञात हो जाता है के इससे जो क्षती हो रही है, उसमें कोई सुधार संभव नही हो पाएगा। नुकसान जानलेवा होगा। ये पता होते हुए भी कुछ असमर्थ होकर फिर भी नशा करते हैं और कुछ छोड़ देते हैं। दोनों ही स्तिथि में पता होता है कि क्या गलत है और कितना गलत है।

जनता को भी पता होगा….बस चंद रोज़ और…

ये जनता है, इसे बहुत रोज़ तक नचाया नही जा सकता। आखिर में जनता ही सर्वोपरि है, जिस दिन रुख बदलेगी, सत्ता बदल जाएगी। सत्ताधारियों को चाहिए कि ये नशे की दुकानें जल्द बंद करें और विकास के मुद्दे पर ध्यान दें। वरना जनता का बैन आया तो फिर कोई भी दुकान लगाना मुश्किल ही होगा।

फोटो आभार: getty images 

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