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स्कूली बच्चों को पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदार बना रही है युवाओं की ये टोली

देश में बढ़ती आबादी के साथ पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं की चुनौतीयां भी तेजी से बढ़ रही हैं, वर्तमान समय की चुनौती यह है कि हम भावी पीढ़ी को कैसी पृथ्वी देना चाहते है? जहां एक ओर पर्यावरण को लेकर कई विश्वस्तर के सम्मेलन हो रहे हैं, लेकिन इनका कोई खास प्रभाव ज़मीन पर उतरते नहीं दिख रहा है। वहीं दूसरी तरफ युवाओं की टीच फॉर ग्रीन नाम की टीम जिसमें गांधी फेलो, इंडिया फेलो, एस.बी.आई. फेलो सहित आई.आई.एम.सी. जैसे संस्थानों के युवा मिल कर पर्यावरण की चुनौतियों के लिए आने वाली जनरेशन को लेकर एक फौज तैयार करने में जुटे हुए हैं।

इसके लिए टीच फॉर ग्रीन स्कूल स्तर पर बच्चों को पर्यावरणीय शिक्षा के बारे में व्यवाहरिक जानकारी दे रही है। शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही संस्था टीच फॉर ग्रीन के पास जहां एक ओर सैद्धांतिक समझ वाली टीम है वहीं जमीनी स्तर पर काम करने का अनुभव, युवाओं को प्रेरित भी कर रहा है। आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए आज युवाओं को आगे आने की और पर्यावरण को बचाने के लिए व्यक्तिगत रुप से कदम उठाने की ज़रूरत है।

टीम के संस्थापक अजय कुमार कहते हैं कि हमारा प्रयास है कि पर्यावरण से संबंधित गतिविधियों को किताब से निकाल कर ज़मीनी स्तर पर उतारा जाए। इससे स्कूलों के साथ-साथ आस-पास के समुदाय भी पर्यावरण के प्रति जागरुक होकर इस दिशा में ज़रूरी कदम बढ़ा सकेंगे। अजय आगे बताते है कि हम डू ईट योर सेल्फ के तरीके से बच्चों के साथ वर्कशॉप के दौरान लोकल संसाधनों का उपयोग करते हैं। जैसे प्लास्टिक की बोतल या गत्ते की पेटियों का उपयोग करके सौर-ऊर्जा से चलने वाले टेबल लैम्प, टॉर्च, मोबाईल चार्जर, सोलर कुकर, सोलर कार, बायो गैस प्लांट एवं नर्सरी इत्यादि बनाना सिखाया जाता है।

बच्चे अपने परिवेश में मौजूद चीजों से पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाले प्रोडक्ट को बनाकर, मौजूदा संभावनाओं को समझते हुए समुदाय को भी जागरुक कर सकते हैं। साथ ही स्कूलों और समुदायों के बीच बढ़ रही खाई को भी दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

अभी तक यह टीम देश के 12 राज्यों के 20 जिलों में 30 वर्कशॉप आयोजित कर चुकी है, जिनमें बच्चों एवं युवाओं सहित लगभग 2000 लोग शामिल हो चुके हैं। स्कूलों में इस तरह की गतिविधियां बच्चों में ठहराव, पढ़ाई के प्रति रोचकता एवं अनुसाशन का विकास भी होता है। देश के अंदर चल रहे इन छोटे-छोटे प्रयोगों को अपनाकर ही एक सुन्दर और स्वच्छ भारत की कल्पना की जा सकती है। इसलिए ज़रूरत है कि इन प्रयोगों को मीडिया और विभागीय प्रशासन को बढ़ावा देना चाहिए और अपनाना भी चाहिए।

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