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वाह, गोंडा की तुलना की दिल्ली-मुंबई से और बता दिया सबसे गंदा

केंद्र सरकार के स्वच्छ सर्वेक्षण-2017 में गोंडा को देश का सबसे गंदा शहर दिखाए जाने पर मेरा प्रश्न है कि, आप नगर निगम और नगर पालिका को एक ही पैमाने से कैसे माप सकते हैं ?

आप जब सर्वे करने आए तो प्रदेश चुनाव में था, आचार संहिता लागू थी ऐसे में क्या जनता के विचार लेना उनका राजनीतिक झुकाव, चुनाव का असर और सरकार के प्रति ग़ुस्सा नहीं दर्शाएगा? तो इससे निष्पक्षता कहां रह गयी। फिर आपकी सर्वे टीम को ये तक नहीं मालूम कि इमामबाड़ा रिहाइशी इलाक़ा है या व्यवसायिक, एक ही पब्लिक टॉयलेट की दो ऐंगल से तस्वीरें लगाना भी आपकी सर्वे टीम की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करता है।

रेवेन्यू और एक्स्पेंडिचर ये दोनो म्यूनिसिपल फ़ाइनैन्स के अहम पहलू हैं, ऐसे में एक लाख चौदह हज़ार की आबादी वाली नगरपालिका को दिल्ली, मुंबई और सूरत जैसे शहरों के महानगर निगम के सामने खड़ा करना ही एक नासमझी का फ़ैसला है। दिल्ली का लुटियन बंगलो ज़ोन और एक आर्थिक रूप से स्थिर शहर की नगरपालिका की तुलना करना ही ग़लत है। ये सर्वे जनता से ज़्यादा प्रशासनिक बिंदुओं पर आधारित है, जनता को ऐसे में गंदा कहना ग़लत होगा और इस सर्वेक्षण से छोटे शहरों को पूरे देश में बेइज्ज़त करके मनोबल ही गिराया गया है।

अपनी अर्बन प्लानिंग की पढ़ाई के दौरान हमने एक पूरा सेमेस्टर, स्कूल अॉफ़ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में इसी विषय पर लगाया है। देश के बहुत से छोटे-बड़े शहरों और गोंडा को जितना हमने पढ़ा और समझा है उसके बिना पर ये कह सकते हैं कि जिस आधार और जिस पैमाने पर गोंडा की तस्वीर, मुल्क के नक़्शे पर बनाई और दिखायी गई वो निराधार और निंदनीय है।

गोंडा एक ऐतिहासिक शहर है, जहां महाराजा देवीबक्श सिंह ने अंग्रेज़ी शासन का विरोध किया, जहां क्रान्तिकारी महानायक राजिंद्रनाथ लाहिड़ी ने शहादत पायी, बग़ावत के कवि अदम गोण्डवी भी यहीं के थे और गोंडा जिगर और असग़र की सरज़मीं है। ऐसे ऐतेहासिक शहर को जिस प्रकार से दर्शाया गया हम उस प्रक्रिया की और ऐसे सर्वे की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं।

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