Site icon Youth Ki Awaaz

बिना इंसानों के टापू पर फैले हुए 17 टन प्लास्टिक का क्या है राज़?

अगर समंदर के बीचों-बीच एक ऐसे द्वीप की कल्पना करें जहां कोई इंसान न हो तो दिमाग में हरियाली से घिरे एक सुन्दर बीच की तस्वीर आती है। दक्षिणी प्रशांत महासागर के हैंडरसन द्वीप की बात करें तो यहां भी यह सब कुछ है। उजले सफ़ेद बीच और बीच से आगे फैला हरा भरा छोटा सा टापू लेकिन साथ ही यहां बिखरा पड़ा है 17 टन कचरा, जिसमें 38 मिलियन प्लास्टिक के और कचरे के टुकड़े मौजूद हैं।

कहां है हैंडरसन द्वीप:

हैरत की बात लगती है कि जिस जगह एक भी इंसान ना रहता हो वहां इतना सारा कचरा कैसे आ गया? यहां के बीच पर अमेरिका, चीन, जापान, चिली, यूरोप और दक्षिण अमेरिकी देशों तक का कचरा मिल जाएगा। इसमें ज़्यादा तादात मछली पकड़ने के जाल के टुकड़ों, प्लास्टिक की बोतलों, हेलमेट और अन्य चीज़ों की है। चिली और न्यूज़ीलैंड के बीच स्थित हैंडरसन द्वीप खुले समुद्र में ब्रिटेन के अधिकार में आने वाला आखिरी द्वीप है। पिटकेयर्न द्वीपसमूह के चार द्वीपों में से एक इस द्वीप पर इंसानी आबादी नहीं है और 100 कि.मी. दूर स्थित द्वीप पिटकेयर्न पर ही इंसानी आबादी है जो 50 से भी कम है। यहां से किसी भी देश की सबसे करीबी दूरी कम से कम 5 हज़ार कि.मी. है।

वापस हैंडरसन द्वीप की बात करें तो 37.3 स्क्वॉयर कि.मी. क्षेत्रफल वाले इस द्वीप पर पायी जाने वाली 50 पेड़-पौधों की प्रजातियों में से 10 प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं और साथ ही यहां पाई जाने वाली चारों पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इतने कम क्षेत्रफल के बावजूद यहां मिलने वाली जैव विविधता को देखते हुए यूनाइटेड नेशंस ने इसे विश्व धरोहर (World Haritage) और समुद्री अभयारण्य (Marine Reserve) घोषित किया है जो दुनिया के सबसे बड़े समुद्री अभयारण्यों में से एक है।

हैंडरसन द्वीप पर कचरे का घनत्व यानी कि वेस्ट डेंसिटी दुनियाभर में सबसे ज़्यादा (671 प्लास्टिक के टुकड़े प्रति स्क्वॉयर मीटर) है।

क्या है इस छोटे से द्वीप पर 17 टन कचरा फैले होने का कारण: 

क्या कारण है इंसानों की बड़ी आबादियों से कम से कम 5000 कि.मी. दूर एक द्वीप पर 17 टन कचरे के होने का? यह प्रशांत महासागर के सर्कुलर करंट (गोलाकार बहाव) के कारण होता है जिसे ‘साउथ पैसेफिक ज़ायर’ कहा जाता है। यह किसी  कन्वेयर बेल्ट की तरह होता है जो समुद्र में मौजूद तैरने वाले कचरे जैसे प्लास्टिक से बनी चीज़ों को हज़ारों किलोमीटर के दूरी से बहाकर लाता है और इस द्वीप पर छोड़ जाता है।

अगर इसे समझने की कोशिश करें तो एक नदी या किसी भी पानी के श्रोत के बारे में सोचें। इनका बहाव गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होता है, यानी कि पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है और नदियों के ज़रिए किसी समुद्र में जा मिलता है। नदी तो ठीक है लेकिन समुद्र में विशाल मात्रा में मौजूद पानी का बहाव की दिशा क्या होगी या इसे क्या प्रभावित करेगा?

समुद्र के पानी के बहाव की दिशा गुरुत्वाकर्षण, पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना, पृथ्वी का सूरज के चारों और अपनी ऑर्बिट में घूमना और साथ ही हमारे सोलर सिस्टम के अन्य ग्रहों से प्रभावित होता है। समुद्र में तय समय पर ज्वार-भाटा (low tide-high tide) का आना भी इन्हीं कारणों से होता है। जब चन्द्रमा और सूर्य, समुद्र के सबसे पास होते हैं तो इनके गुरुत्वाकर्षण के कारण ज्वार (high tide) आता है यानी समुद्र तट पर पानी का स्तर बढ़ जाता है। और ये दूरी बढ़ने पर पानी उतरने लगता है जिसे भाटा (low tide) कहते हैं। दुनिया के 7 महाद्वीपों की ही तरह 5 महासागर भी हैं जिनके बहाव की दिशा भी भौगोलिक परिथितियों के अनुसार अलग-अलग है, समुद्र के बहाव की इस दिशा को ही ज़ायर कहा जाता है। इंडियन ओसियन ज़ायर, नॉर्थ अटलांटिक ज़ायर, नॉर्थ पैसेफिक ज़ायर, साउथ अटलांटिक ज़ायर और साउथ पैसेफिक ज़ायर पांच प्रमुख ज़ायर हैं।

ये तो है हैंडरसन द्वीप पर इतनी बड़ी मात्रा में कचरा पहुंचने का कारण, लेकिन हमें याद रखने की ज़रूरत है कि ये सारा कचरा मानव निर्मित है जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में प्लास्टिक मौजूद है। समुद्र जीव वैज्ञानिकों (marine biologists) के अनुसार समुद्री कचरे में सबसे बड़ी मात्रा प्लास्टिक की ही है। जो समुद्री ताकतों जैसे लहरों, बहाव और सूरज की गर्मी के कारण बड़े-बड़े टुकड़ों से लेकर चावल के दानों और नंगी आँखों से ना दिखने वाले महीन दुकड़ों में टूटकर फैल चुका है। सन 1800 ईस्वी के आस-पास प्लास्टिक का आविष्कार हुआ और पहले विश्वयुद्ध (1914-1919) के बाद प्लास्टिक का उपयोग आम होने लगा। अगर इस द्वीप की तब की तस्वीर के बारे में सोचें तो शायद वो सफेद उजले बीच वाले एक हरे-भरे टापू वाली ही रही होगी।

फोटो आभार: The Cosmopolitan Post

Exit mobile version