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भारत की आईटी इंडस्ट्री पर क्यों मंडरा रहा है छंटनी का खतरा?

साल 2009 के अगस्त महीने के आखरी दिन, पुरानी जॉब जा चुकी थी और मैं नई जॉब की तलाश में गुड़गांव आया हुआ था। रात के 10 बजे एक दोस्त मुझे लेने आया, उसने आसरा भी दिया, हिम्मत भी और उस रात का खाना भी। दूसरे दिन नए ऑफिस में सीधा काम पर लगा दिया गया और 5 दिनों के बाद मुझसे पूछा गया कि आप पिछली कंपनी के मुकाबले कितनी कम सैलरी लेंगे? खर्चों के हिसाब से गुड़गांव, लुधियाना से बहुत महंगा है और लुधियाना से कम आमदनी पर यहां किस तरह मेरे खर्चे पूरे होते? मेरे ना कहने के बाद तय हुआ कि मुझे लुधियाना में मिल रही सैलरी जितना ही पैकेज यहां दिया जाएगा। मुझे इतनी तसल्ली थी कि अब सैलरी का मीटर चलता रहेगा।

बस इसी सैलरी के मीटर के पीछे तबसे भाग रहा हूं। एक एम्प्लॉई के लिये सैलरी क्या होती है, ये कहने की ज़रूरत नहीं। लेकिन कहते हैं ना कि समय करवट लेता है, साल 2008 में जिस तरह IT उद्योग को मंदी का सामना करना पड़ा था, उसी तर्ज पर साल 2017 की शुरुआत हो चुकी है। इस बार मंदी नहीं अमेरिका में वीज़ा के कड़े किये गये नियम हैं, जिस कारण अब अमेरिका में किसी भी कंपनी को रोज़गार के लिए अमेरिकन नागरिक को ही प्राथमिकता देनी होगी।

इस स्थिति में जहां भारतीय कर्मचारी के मुकाबले सैलरी का फर्क जमीन आसमान होगा, वहीं पिछले दो तीन महीनो में डॉलर 68 रुपये से 64 रुपये के आस पास आ गया है। इसका मतलब, अमेरिकन डॉलर में व्यपार करने वाली IT कंपनीयों के मुनाफे में काफी कमी आयी है। साल 2008-09 के बाद, पहली बार सभी मुख्य IT कंपनियों के मुनाफे में कमी आयी है। अब इन सब घाटों को पूरा करने के लिये IT कंपनियां अपने कर्मचारियों की छंटनी कर सकती हैं, लेकिन इनकी तादाद कितनी होगी ये कहना मुश्किल है।

जानकार इस परिस्थति के लिये कुछ और कारण भी बता रहे हैं। इसमें दो मुख्य कारण हैं एडवांस डिजिटल टेक्नोलॉजी की बढ़ती मांग और इस मांग के हिसाब से स्तरीय इंजीनियर ना तैयार कर सकना। भारतीय कंपनियां IT सेक्टर में बस सर्विस प्रोवाइडर के रूप में ही व्यवसाय कर रही हैं, इस कारण आज भारत की मुख्य IT कंपनियां विश्व बाजार के अनुरूप खुद को पेश नहीं कर पा रही हैं। वहीं ऑटोमेशन को एक और कारण के रूप में देखा जा रहा है। सभी क्षेत्रों की कंपनियों में एडवांस मशीनों और ऑटोमेशन तकनीक के इस्तेमाल से जहां नौकरियों में कमी आई है, वहीं IT सपोर्ट की मांग में भी भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। वर्ल्ड बैंक के एक सर्वे के अनुसार ऑटोमेशन के कारण भारत में 66% और चीन में 77% नौकरियों पर खतरा मंडरा है।

आज IT कर्मचारियों की जॉब पर मंडरा रहे खतरे का एक मूलभूत कारण शिक्षा भी है। अगर भारत के कुछ चुनिंदा शिक्षण संस्थानों को छोड़ दें तो बाकी जगह पर IT कॉलेज की पढ़ाई का स्तर काफी नीचे है। यहां जिन सॉफ्टवेयर तकनीकों को पढ़ाया जाता है वह काफी पुरानी या कहें कि मार्केट से एक तरह से गायब हो चुकी हैं। सॉफ्टवेयर तकनीक में बहुत जल्द बदलाव आते हैं, लेकिन उसके हिसाब से हमारे कॉलेज की पढ़ाई नहीं बदलती। आज बहुत से सॉफ्टवेर बहुत कम खर्च पर या मुफ्त उपलब्ध होने के बाद भी जानकारों की कमी के कारण बहुत से कॉलेज अपने आप को बाज़ार की ज़रूरत के हिसाब से अपडेट नहीं कर पाते। नतीजन ज़्यादातर विद्यार्थी पढ़ाई बाद सॉफ्टवेयर मार्केट में खुद को साबित नहीं कर पाते। हमे इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिये कि हमारी शिक्षा प्रणाली बौद्धिक स्तर को विकसित करने में सक्षम नहीं है और ना हम इस तरफ कोई प्रयास कर रहे हैं।

एक और वजह है जो हमे स्वीकार करनी चाहिये कि हम IT के क्षेत्र में किसी भी तरह की कोई इनोवेटिव या ख्याति प्राप्त खोज नहीं कर पा रहे हैं और ना ही इस तरफ कोई प्रयास किये हैं। सीधे शब्दों में कहें तो Google, facebook, WhatsApp, ebay या amazon, जैसे बिज़नस कांसेप्ट हम नहीं बना पाए हैं, हां इनकी नकल के तौर पर कुछ करने की कोशिश ज़रूर की गयी है।

आज भारत में IT क्षेत्र ज़िन्दा है तो इसका एक बड़ा कारण है रुपये और अमेरिकन डॉलर में जमीन-आसमान का फर्क। शायद यहां वर्तमान ही मायने रखता है और भविष्य की कोई योजना नज़र नहीं आती। अब ऐसे में जब-जब अमेरिकन डॉलर और भारत के रुपये का फर्क कम होगा या अमेरिकन वीज़ा के नियमों में बदलाव आएगा, IT कंपनियों का घाटा कर्मचारियों को जॉब से हटाकर ही पूरा किया जाएगा। इस तरह की स्थिति से बचने के लिए हमारे IT सेक्टर को आत्मनिर्भर होना होगा और हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को विकसित करना होगा। साथ ही बौद्धिक स्तर के विकास पर ध्यान देना होगा ताकि IT क्षेत्र के साथ-साथ हम हर क्षेत्र में नई खोज कर सकें।

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