खबर आई कि यूपी के मेरठ में शनिवार को डायरेक्ट्रेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) ने रिटायर्ड कर्नल देवेंद्र कुमार के घर पर छापा मारा। मेरठ के सिविल लाइंस इलाके में जब डीआरआई जांच अधिकारियों की टीम पहुंची तो किसी को यकीन नहीं था कि एक रिटायर्ड कर्नल के घर से ऐसा सामान बरामद हो सकता है, जिसे देख सभी की आंखें फटी रह जाएंगी। मुख्य आरोपी रिटायर्ड कर्नल का बेटा और नै शनल शूटर प्रशांत बिश्नोई बहुमंजिली मकान के द्वितीय तल पर बने प्लाईवुड के कमरे को गोदाम के तौर पर प्रयोग में ला रहा था। दो लाख कारतूस! रिटायर्ड कर्नल के घर से बरामद हुए कारतूस इतने हैं कि जितने पूरे जिले की पुलिस फोर्स के पास नहीं हैं। 140हथियार(कुछ लाइसेंसी एवं बाकि अवैध), तेंदुआ एवं चिंकारा के खाल,जानवरों के कुछ अंग, 177 किलो नीलगाय का मीट। कुल मिलाकर इतना की 3 गाड़ियों में भरकर ले जाना पड़ा।
राष्ट्रीय स्तर का शूटर या कहें सरकार से मान्यता प्राप्त हत्यारा प्रशांत बिश्नोई तो सिर्फ एक उदाहरण है न जाने कितने और ऐसे असमाजिक लोग हमारे आपके बीच रह रहे हैं जो सारे नियम-कानूनों को ठेंगा दिखाकर सरकार की आड़ लेकर नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं।
पिछले साल जून में बिहार सरकार ने नीलगायों को मारने के लिए शूटर बुलवाने का फैसला किया तो बहुत से पर्यावरणप्रेमियों ने इस फैसले को गलत बताया। सरकार के इशारे पर दो सौ से अधिक बेकसूर नीलगायों को केवल इसलिए मार गिराया गया क्योंकि इंसानों ने जंगलों को खेत में बदल दिया है और नीलगाय एवं अन्य जानवर कभी-कभी उधर आ जाते है जिससे फसल ख़राब हो जाती है। किसानों की फसल तबाह होना तो तात्कालिक कारण है वरना आदमी एवं जानवरों में संघर्ष तो कई दशकों से जारी है। हिमाचल प्रदेश में बंदरों को मारने का आदेश दे दिया गया एवं महाराष्ट्र तथा गुजरात पर्यावरण मंत्रालय से गुहार लगा रहे हैं कि जंगली सुअरों को भी मारने के आदेश जारी हों। मानो हम उपनिवेशी राज में लौट आये हो एवं पर्यावरण मंत्रालय विशाल स्तर पर जानवरों का संहार करने के खेल में रम गया हो। उन्हें मारने हेतु कोई प्रक्रिया नहीं, कोई जवाबदेही नहीं यहां तक की मारने के बाद उनके लाश के भी गलत उपयोग पर रोक नहीं।
कारण इतना था की किसानों के हज़ारों रुपए की लागत और हड्डी तोड़ मेहनत से तैयार होती फसल को छुट्टा जानवर बर्बाद कर देते हैं, कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, केवल अनुमान है। लेकिन नुकसान काफी होता है क्योंकि इनके झुण्ड एक आधी रात में पूरी फसल चट कर जाते हैं। पर क्या सरकार ने यह पता करने की कोशिश की कि क्यों ये जानवर उनके खेतों को नष्ट कर रहे है?जंगलों को लगातार काटा जा रहा है जिससे उनके भोजन में कमी आ रही है। कानूनी एवं गैर-कानूनी रूप से जंगलों में मानवों का अतिक्रमण दूसरा कारण है। इको सिस्टम में संतुलन ख़त्म होना भी एक कारण है। तो क्या इन समस्यायों को ख़त्म करने की कोशिश की गई? जवाब है नहीं।
क्यों करेंगे ऐसे काम जिसमें लोग आकर्षित ना हो एवं वोट न मिले। यानि एक बार ऐसा हुआ तो आगे भी हो सकता है एवं इसके गलत प्रभाव तो देखने को मिल ही रहे हैं एवं मिलेंगे भी। गोवा मोर को ख़त्म करना चाहता है, उत्तर प्रदेश में बंदरों से परेशानी है, पश्चिम बंगाल में सरकार हाथी को दुश्मन समझते हैं और पर्यावरण मंत्रालय सबको लाइसेंस देने में बड़ा जल्दी सहयोग कर रहा है। लेकिन तथ्य ये है कि इस संभावित खतरे से बचने के लिए किसी नस्ल विशेष को ख़त्म कर देना कोई उपाय नहीं है। हमने इको सिस्टम को पहले ही ख़राब करके इनके शिकारी (बाघ) को ख़त्म कर दिया है, अब इन्हें ख़त्म करके हम कौन सी फसल बचा रहे हैं? क्या धरती पे मानव को ही रहने का अधिकार है? इस परिस्थिति में सबसे बड़ा दोष भारत के वन विभाग का है जिसने समय रहते, जब इनकी संख्या कम थी तब पुनर्वास की कोई योजना नहीं बनाई और आज भी नहीं बनाई गई। मारना समाधान नहीं है।
कुछ उपाय (आभार किसान हेल्पलाइन)
1) खेत के चारों ओर कंटीली तार, बांस की फंटियां या चमकीली बैंड का प्रयोग करके फसल की सुरक्षा की जा सकती है।
2) खेत की मेड़ों के किनारे पेड़ जैसे करौंदा, जेट्रोफा, तुलसी, खस, जिरेनियम, मेंथा, एलेमन ग्रास, सिट्रोनेला, पामारोजा का रोपण करके फसलों को नीलगाय से सुरक्षित रखा जा सकता है।
3) खेत में आदमी के आकार का पुतला बनाकर खड़ा करने से रात में नीलगाय देखकर डर जाती हैं। रात में खेत की रखवाली करके भी फसलों की सुरक्षा की जा सकती है।
4) नीलगाय के गोबर का घोल बनाकर मेड़ से एक मीटर अन्दर फसलों पर छिड़काव करने से अस्थाई रूप से फ सलों की सुरक्षा की जा सकती है।गधों की लीद, पोल्ट्री का कचरा, गोमूत्र, सड़ी सब्जियों की पत्तियों का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से नीलगाय को फसलों से दूर रखा जा सकता है।
5) एक लीटर पानी में एक ढक्कन फिनाइल के घोल के छिड़काव से फसलों को बचाया जा सकता है।देशी जीवनाशी मिश्रण बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से नीलगाय दूर भागती हैं।नीलगाय के आतंक से परेशान किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने कई घरेलू और परंपरागत नुस्ख़े बताए हैं जिससे काफी कम कीमत में किसानों को ऐसे पशुओं से आजादी मिल सकती है। गोमूत्र, मट्ठा और लालमिर्च समेत कई घरेलू चीजों से तैयार हर्बल घोल इस दिशा में कारगर साबित हो रहा है। हर्बल घोल की गंध से नीलगाय और दूसरे जानवर 20-30 दिन तक खेत के आसपास नहीं फटकते हैं। कृषि के जानकार, वैज्ञानिक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित किसान कॉल सेंटर (1800-180-1551) के किसान सलाहकार किसानों को इऩ देसी नुस्ख़ों को आजमाने की सलाह दे रहे हैं।