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मध्यप्रदेश के ओपन स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का बस भगवान मालिक

मध्यप्रदेश का राज्य ओपन स्कूल इन दिनों बोर्ड परीक्षा में फेल होने वाले छात्रों के लिए तारणहार बना हुआ है। ‘रुक जाना नहीं’ योजना के तहत हज़ारों छात्र पूरक परीक्षा देने के लिए यहां 800 से 1500 रुपये की फीस चुकाएंगे। लेकिन इस स्कूल की व्यवस्थाएं भी ओपन यानि कि लापरवाही से भरी हुई हैं।

यहां राज्य ओपन स्कूल संचालनालय के बाहर प्रदेश भर से भटकते छात्र रोज़ मिल जाएंगे। किसी को आज तक मार्कशीट नहीं मिली तो किसी की शिकायत सुनने वाला कोई नहीं है। यहां से साल 2016 जून में एक छात्र ने 12 वीं की परीक्षा दी, 4 माह बाद परिणाम तो आ गया किन्तु अप्रैल 2017 तक वह मार्कशीट के लिए भटकता रहा। 8 से 10 बार अध्ययन केंद्र और संचालनालय में संपर्क करने के बाद भी मार्कशीट कब और कहाँ से मिलेगी यह बताने वाला यंहा कोई नहीं।

थक-हार कर सी.एम. हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज करने के 3 माह बाद पता चला कि परीक्षा केंद्र से मार्कशीट मिलेगी। जैसे-तैसे मार्कशीट तो मिल गई लेकिन माइग्रेशन सर्टिफिकेट नहीं मिला। कहा गया कि जहां से फार्म भरा था यानी आइसेक्ट से मिलेगा। वहां पता चला की ऐसा कोई माइग्रेशन किसी का आया ही नहीं। अब यह कोई बताने वाला नहीं कि यह कहां से और कब तक मिलेगा।

राज्य ओपन स्कूल का फोन जिनमे से ज़्यादातर लम्बे समय से बंद हो चुके हैं पर वेबसाइट पर दिया गया है। कई घंटे के बाद एक नंबर 07552559943 लगता भी है तो उठाने वाला कोई नहीं। जिस ओपन स्कूल की व्यवस्था के भरोसे राज्य सरकार बोर्ड परीक्षा के पूरक व फेल छात्रों को मौका दिलाने की बात कर रही है उसकी यह हालत सुधरे बगैर शिक्षा व्यवस्था में सुधार मुश्किल है।

यह परेशानी किसी एक छात्र की नहीं बल्कि ओपन से पढ़ने वाले कई छात्रों की है। पहले भी ओपन स्कूल के नाम पर जारी फ़र्ज़ी मार्कशीट से कई छात्रों का भविष्य बर्बाद हो चुका है। इसकी दूसरी लापरवाही है कि तमाम फीस चुकाने के बाद न तो इसके अध्यन केंद्र में कोई क्लास लगती है न ही सभी पुस्तकें समय पर मिल पाती हैं।

सबसे बड़ी चिंता यह है कि देश-प्रदेश की भर्तियों में ओपन स्कूल मार्कशीट की कितनी मान्यता होगी? यहां शिकायत निराकरण की कोई ऑनलाइन व्यवस्था नहीं है। जो अधिकारी सुनवाई के लिए उपलब्ध हैं वे भी 3 बजे के बाद मिलते हैं। अब यदि कोई दूर-दराज़ से आता भी है तो उसे सुबह से 3 बजे तक इन्तज़ार करना होता है। जबकि शाम होते ही उसे अपनी गाड़ी भी पकडनी होती है, लेकिन इससे यहां के साहिबान को कोई फर्क नहीं पड़ता।

मध्यप्रदेश राज्य ओपन स्कूल की यह लापरवाही कब ठीक होगी, यह कहा नहीं जा सकता। फ़िलहाल छात्र अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने के लिए।

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