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ये इंटर्नशिप नहीं आसान, ट्रांसलेशन का दरिया है और टाइप करके जाना है

“ये इंटर्नशिप नहीं आसान इतना समझ लीजिए ट्रांसलेशन का दरिया है टाइपिंग कर के जाना है।”

जब हम हिन्दी पत्रकारों या पत्रकारिता की बात करते हैं तो हम भूल जाते हैं कि इसी जमात का एक हिस्सा है ‘इंटर्न’। इनकी बात आज तक ना लिखी गयी और ना सुनी गई, ये बस ऑफिस के अंदर तक ही रही। ये जमात धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है, आज इंटर्न वो गुलाम हैं जो वक़्त पर आते हैं और वक़्त के बाद जाते हैं। इनको पैसे तो दूर की बात कई बार इज्ज़त तक सही से नहीं मिलती है। आज इनकी संख्या इतनी है की आप इंटर्न के लिए नया चैनल लॉन्च कर सकते हैं।

आज हम पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं, बिना बोले बस कीबोर्ड की गुलामी कर रहे हैं। जैसे ही आप पत्रकार बनने का सफर शुरू करते हैं, पहला सवाल यही होता है कि आपको कीबोर्ड की गुलामी आती है या नहीं। यानि हिंदी टाइपिंग आती है या नहीं। अगर आप कीबोर्ड के गुलाम नहीं तो आप पत्रकार नहीं। जितनी तेज़ टाइपिंग उतने तेज़ पत्रकार। आप सोचते होंगे ये ज्ञान वाली जो पत्रकारिता है वो कहां से आयी, अगर आप ऐसा सोच रहे तब ये आपकी गलती नहीं, आप बच्चे को सिर्फ बड़ा देख रहे हैं, भूल रहे है उसका बचपन, यानि एक “इंटर्न” की ज़िंदगी। इंटर्नशिप हर पत्रकार का बचपन होता है।

अब बात इंटर्न की ज़िंदगी की करें तो इंटर्न वो गुलाम है जो खुशी-खुशी गुलामी करता है, वो रोज़ इतनी टाइपिंग करता है कीबोर्ड भी बोल पड़ता है, “भाई इंटर्न हो क्या?” वो केवल कीबोर्ड से ही रोज़ बात नहीं करता, वो रोज़ खूब सारी साइट्स से भी बात करता है, देखता है कि किसको ट्रांसलेट करना है। ट्रांसलेशन इंटर्न का दूसरा धर्म है और ऐसा कैसे हो सकता है कि उसे धर्म ना आए? अगर इस धर्म के पालन में आपसे चूक होगी तो आप इंटर्न बनने के लायक नहीं। आप कितना भी बोल लो हम हिंदी जर्नलिज्म करके आए हैं, तो क्या हुआ क्या तुम इंटर्न का धर्म नहीं निभाओगे। इंटर्न की ज़िंदगी यहीं नहीं रूकती उसको सब आना चाहिए जो शयद वहां पर किसी को न आता हो।

आज देश में दो विषयों के लिए पढ़ाई की जगह की कमी नहीं है, एक बी.टेक और दूसरी पत्रकारिता। आपको गली-गली में इंस्टिट्यूट मिल जाएंगे। अब तो चैनल भी अपने इंस्टिट्यूट खोल कर बैठ गए हैं। अब सोचो इतने बच्चे पास होकर कहा जाएंगे? कौन देगा इन्हे नौकरी? नौकरी तो बाद की बात है इनको इंटर्नशिप भी कौन देगा?

हर चैनल सच दिखाने का दावा करता है, लेकिन वो अपने इस सच से भागता है। एक इंटर्न की व्यथा हर पत्रकार जानता है, लेकिन वो इसे बोलना नहीं चाहता। जो चैनल हर चीज़ में आगे हैं वो भी इस बात में पीछे दिखते हैं। जो तेज़ हैं उनकी इसमें कोई रफ़्तार नहीं दिखती। यहां तक कि सबसे अलग दिखने वाले चैनल भी इस पर कुछ अलग नहीं दिखते।

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