हमारा लोकतंत्र सिकुड़ता हुआ लोकतंत्र बनता जा रहा है, हर जगह एक भीड़ नज़र आने लगी है जो एक विशेष धर्म और जाति के लोगों को टारगेट कर रही है। ऐसा नहीं है कि पहले नहीं हुआ, बस ये नफरत बहुसंख्यक समाज के मन में अल्पसंख्यक या पिछड़े समाज के लिए होती है। दंगे चाहे सिख समाज के खिलाफ हो रहे हों या मुस्लिम समाज या दलित समाज या किसी अन्य समाज के खिलाफ। समय-समय पर सरकारों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन दंगाइयों को समर्थन और संरक्षण मिलता रहा है।
हमारे देश का स्वर्णकाल कब था ये तो नही मालूम, लेकिन शायद ये वक़्त हमारे देश का सबसे भयावह काल है। आज ये भीड़ कभी भी आपको आपके घर में आकर मार सकती है, आप अगर एक विशेष धर्म या समुदाय से आते हैं तो इस भीड़ के खिलाफ कोई कुछ नही बोलेगा। हकीकत तो ये है जनाब कि ये सत्ता के लोगों द्वारा संगठित भीड़ होती है। पिछले कुछ समय में जो कुछ हुआ वो हमारे समाज की संवेदनहीनता को दर्शाता है। सिर्फ शक और अफवाह के आधार पर लोगों की हत्या हो रही है और समाज चुप है, दलितों की बस्तियों में आग लगा दी जा रही है। बच्चों और औरतों के साथ जो हो रहा है उससे भयावह और क्या हो सकता है?
सरकारें बस तमाशबीन हैं। जो लोग चुनाव ये कहकर ही जीते हैं कि इस प्रदेश की कानून व्यवस्था ख़राब है और हम इसे ठीक करेंगे, साहब! क्या आपको मालूम नहीं है कि ये आपके ही लोग हैं? ये आप से ही जुड़े हैं, इनकी सोच और विचार आपसे ही मिलते हैं, इनके आदर्श आप ही तो हैं।
कल ये भीड़ आपको भी बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक बनाकर मार सकती है। हम राष्ट्रवादी पत्रकारिता की तो बात करते ही नहीं, ये तो उनके लिए स्वर्णकाल है। बस ये समझ लीजये कि कल आप भी किसी भीड़ के सामने होंगे और उस वक़्त ये भीड़ आपको बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक के रूप में नही देखेगी, बस मार देगी। आप इस समाज को हत्यारा बनाने के लिए खुद ज़िम्मेदार हैं। इस समाज में आपके बच्चे हैं, आप हैं, हमारी नही तो खुद की ज़िंदगी के बारे में सोचये… हां मुझे डर लगता है लिखने से, खाने से, बोलने से, पहनने से, दाढ़ी रखने से, आज डर ही सच्चाई है और यही उनकी ताकत है। देशद्रोही बोलना तो अब मजाक हो गया है, राष्ट्रवाद भी मजाक ही है…ह मारा समाज बस अच्छा हो, महान बन कर क्या करेंगे?