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जलवायु परिवर्तन की मुश्किलों को और बढ़ा देगा अमेज़न रीफ़ में तेल खनन

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पेरिस समझौते से पीछे हटने की धमकी दे रहे हैं। पिछले हफ्ते ट्रंप ने भारत और चीन जैसे देशों पर पेरिस समझौते पर कोई योगदान नहीं देने का आरोप लगाया। पेरिस समझौते में 197 देशों ने इस बात पर सहमति जतायी थी कि वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक कम करने की कोशिश की जाएगी।

अमेज़न रीफ़ का एक दृश्य

लेकिन पेरिस समझौते पर मंडरा रहे खतरे के बीच कुछ और भी खतरे हैं जिन पर अगर वक्त रहते नहीं चेता गया तो पर्यावरण के संकट से निजात पाने में दुनिया को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। इसी में से एक खतरा अमेज़न रीफ़ पर मंडरा रहा है। 2016 में अमेज़न रीफ़ दुनिया के सामने आई। वैज्ञानिकों के अनुसार यह अमेज़न नदी के मुहाने पर 9500 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है। जहां एक तरफ दूसरी चट्टाने साफ, धूप-पानी में मिलती हैं, वहीं अमेज़न चट्टान अमेज़न के बहुत गंदे मिट्टी और गाद में सारोबार, तलछट से भरे पानी में स्थित है और असामान्य रसायन-संश्लेषण का एक उत्पाद है। जहां एक तरफ समकालीन रीफ़ शृंखलाओं में प्रकाश संश्लेषण (फोटो सिनथेसिस) के द्वारा अपनी उर्जा आवश्यकताओं का भरण प्रचलित है, वहीं रसायन-संश्लेषण के फलस्वरूप जन्मी अमेज़न रीफ़ ने वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों की रूचि को अपनी ओर ख़ासा आकर्षित किया है।

इस अमेज़न रीफ़ की खास बात है कि यह एक विशिष्ट जैवविविधता वाले इलाके में स्थित है। फिलहाल कई वैज्ञानिक इस क्षेत्र में अध्ययन कर रहे हैं और उम्मीद है कि अभी और भी कई प्रजातियां यहां पर खोज निकाली जाएंगी। रीफ़ प्राकृतिक रूप से कार्बन सिंक का भी काम करती है, अमेज़न रीफ़ के साथ खास बात है कि यह दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव जंगल से घिरा हुआ है जो बड़े पैमाने पर कार्बन सिंक करने का ज़रिया है।

लेकिन इस अमेज़न रीफ़ पर तेल खनन की वजह से खतरा पैदा हो गया है। साफ है कि इस रीफ़ पर किसी भी तरह का खतरा धरती पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों के लिये झटका साबित होगा।

ब्राज़ील सरकार के आकड़ों के अनुसार तेल कंपनियों द्वारा इस इलाके से 14 बिलियन बैरल तेल निकालने का अनुमान लगाया है। अब अगर इस तेल की खपत से पैदा होने वाले कार्बन उत्सर्जन को भी जोड़ा जाए तो साफ है कि धरती पर कार्बन उत्सर्जन में और बढ़ोतरी होगी और जलवायु परिवर्तन का खतरा और बढ़ जाएगा।

इस रीफ़ के इतिहास को देखें तो दशकों से इस इलाके के मछुआरे इस जगह पर ऐसी मछलियों को देखते थे जो रीफ़ क्षेत्र में ही पाई जाती हैं। वैज्ञानिकों ने लगभग 2012 में इस रीफ़ के बारे में शोध शुरू किया और 2016 में इसे आधिकारिक रूप से दुनिया के सामने घोषित किया गया। 2017 में पहली बार ग्रीनपीस ने इस रीफ़ की तस्वीर और विडियो बनाने में सफलता हासिल की। अभी भी बहुत सारे शोधकर्ता इस रीफ़ का अध्ययन कर ही रहे हैं।

इस इलाके पर दशकों से तेल कंपनियों की नज़र है। लेकिन इस क्षेत्र में लैंडस्लाईड होता रहता है क्योंकि समुद्र तल अस्थिर है। आखिरी बार ड्रिल करने की खोज में जो जहाज़ इस इलाके में पहुंचा वह भी बह गया। लेकिन फिर भी सरकार तेल कंपनियों को खनन के लिये यह क्षेत्र देने का फैसला करने वाली है। इसके लिये ज़रुरी पर्यावरण मंज़ूरी भी 2013 में ले ली गयी है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि यह अमेज़न चट्टान (रीफ़) उस वक्त तक लोगों की नज़र में नहीं आई थी, इसलिए मंज़ूरी देते समय अमेज़न रीफ़ पर होने वाले कुप्रभाव पर विचार ही नहीं किया गया। अब जब यह रीफ़ दुनिया के सामने आ चुकी है, तो ज़रुरी हो जाता है कि पहले के पर्यावरण आकलन और मंज़ूरी को खत्म करके फिर से फैसला लिया जाए।

अमेज़न रीफ़ और जैव विविधता

वैसे भी यह देखा गया है कि जहां भी तेल खनन होता है वहां तेल के लीक होने की संभावना भी काफी होती है। ऐसे में एक महत्वपूर्ण जंगल के पास तेल खनन की इजाज़त देने का मतलब होगा कि पूरे जंगल पर संकट पैदा करना। साथ ही जंगल और रीफ़ के आस-पास रह रहे स्थानीय लोगों की जंगल पर जीविका निर्भरता पर भी तेल खनन से खतरा पैदा हो जाएगा और उनके जान-माल दोनों का नुकसान होगा।

कोरल रीफ़ का समुद्र के नीचे अपनी जैवविविधता होती है। इनकी जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका है। वातावरण और समुद्र के बीच गैसों का आदान-प्रदान होता है, जिनमें मुख्य कॉर्बन डॉय आक्साईड और ऑक्सीजन है। समुद्र ऑक्सीजन निकालता है, वहीं कार्बन डॉयआक्साईड को सोखता है। लगातार हो रहे औद्योगिक विकास और जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल की वजह से हम कार्बन डॉय आक्साईड का बहुत उत्सर्जन कर रहे हैं, जिसका एक परिणाम है कि समुद्र में एसिड की मात्रा बढ़ रही है। ये एसिड कोरल सिस्टम को नुकसान पहुंचा रहा है।

इन्हीं सब खतरों को भांपते हुए पूरी दुनिया में अमेज़न रीफ़ को बचाने का अभियान शुरू किया जा रहा है। पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस द्वारा जारी अभियान को पूरी दुनिया से दस लाख लोगों ने अब तक अपना समर्थन दिया है। अपनी प्रकृति और बेहतर दुनिया को बचाने के लिये दुनिया के एक कोने में लड़ाई शुरू हो चुकी है। इस अभियान में अब तक लियोनार्डो डी कैप्रियो जैसे बड़े अभिनेता भी जुड़ चुके हैं।

पेरिस समझौते के बाद से ही भारत को पर्यावरण संकट से जूझने में एक लीडर के बतौर देखा जा रहा है। खुद भारत में अब तक 6 हज़ार से ज़्यादा लोग इस अभियान के समर्थन में आ चुके हैं।

आज पूरी दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करने की कोशिश हो रही है, तेल का जरुरत से अधिक भंडार हमारे पास उपलब्ध है, वैसे में कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाने वाला एक और तेल खनन हमारे पर्यावरण के लिये खतरनाक साबित होगा। अमेज़न रीफ़ न सिर्फ अपने आस-पास बल्कि पूरी दुनिया में पर्यावरण को बचाए रखने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक है। इसलिए इसे बचाया जाना ज़रुरी है जिससे हम वैश्विक तापमान को 1.5 सेल्सियस डिग्री से आगे नहीं बढ़ने दें और तेल कंपनियों द्वारा राजनीतिक व आर्थिक सत्ता पर कब्ज़ा करने की कोशिशों को रोका जा सके। अगर हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित भविष्य देना है तो अमेज़न रीफ़ को बचाना ही होगा तथा जीवाश्म ईंधनों के खात्मे की ओर बढ़ना होगा।

फोटो आभार: ग्रीन पीस

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